पटना उच्च न्यायालय का फैसला: पंजीकरण के चार साल बाद वसूली गई स्टांप शुल्क की मांग रद्द — 2025

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: पंजीकरण के चार साल बाद वसूली गई स्टांप शुल्क की मांग रद्द — 2025

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए दरभंगा जिले के एक भूमि विक्रय मामले में लगभग चार साल बाद की गई अतिरिक्त स्टांप शुल्क व जुर्माने की मांग को रद्द कर दिया। यह मामला “स्टांप केस नंबर 1/2019–20” से जुड़ा था, जिसमें सहायक निबंधन महानिरीक्षक (AIG), दरभंगा प्रमंडल ने खरीदार को ₹6,69,960 रुपये का कमी वाला स्टांप शुल्क और ₹66,996 रुपये का जुर्माना, कुल ₹7,36,956 रुपये जमा करने का आदेश दिया था।

अदालत ने स्पष्ट कहा कि भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 की धारा 47A (बिहार संशोधन सहित) के तहत रजिस्ट्री अधिकारी केवल पंजीकरण से पहले ही दस्तावेज को जिला पदाधिकारी (कलेक्टर) के पास मूल्यांकन हेतु भेज सकता है। पंजीकरण के कई साल बाद ऐसा भेजना कानून के दायरे से बाहर है। साथ ही, कलेक्टर को भी अगर स्वयं जांच करनी हो (सुओ मोटू), तो उसे दो वर्ष के भीतर करनी होगी।

मामले के तथ्य के अनुसार, संबंधित भूमि की रजिस्ट्री 13 अप्रैल 2015 को दरभंगा जिले के केवटी अंचल के अंतर्गत मौजा छटवान में हुई थी। खरीदार ने रजिस्ट्री के समय सभी स्टांप और पंजीकरण शुल्क जमा किए थे। परंतु 2019 में एक शिकायत आने पर उप निबंधक (Sub-Registrar) ने इस रजिस्ट्री को पुनः जांच हेतु AIG, दरभंगा को भेज दिया। जांच के बाद अधिकारी ने यह कहते हुए कि भूमि “वाणिज्यिक” प्रकृति की है, खरीदार से ₹7,36,956 रुपये की मांग कर दी।

याचिकाकर्ता (खरीदार) ने इस आदेश को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। मुख्य तर्क यह था कि धारा 47A(1) साफ कहती है कि उप निबंधक को यदि यह लगे कि भूमि का मूल्यांकन या वर्गीकरण गलत है, तो वह दस्तावेज को पंजीकरण से पहले ही कलेक्टर के पास भेज सकता है। इस धारा में एक अपवाद है — यदि रजिस्ट्री के बाद अधिकारी को कोई ठोस कारण मिले तो वह उचित कारण दर्ज करते हुए मामला भेज सकता है, परंतु यह प्रक्रिया भी तुरंत और वाजिब समय में होनी चाहिए, वर्षों बाद नहीं।

राज्य सरकार ने यह तर्क दिया कि शिकायत मिलने के बाद जांच में पता चला कि भूमि “भिथ” नहीं बल्कि “वाणिज्यिक” क्षेत्र में आती है, इसलिए अतिरिक्त स्टांप शुल्क बनता था। लेकिन अदालत ने माना कि चार साल बाद की गई कार्रवाई कानून के विपरीत है, क्योंकि न तो उप निबंधक और न ही कलेक्टर को इतने लंबे समय बाद ऐसी कार्रवाई का अधिकार है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार में संपत्ति की रजिस्ट्री और स्टांप शुल्क से जुड़े सभी लोगों के लिए एक मार्गदर्शक निर्णय है।

  • आम जनता के लिए: यदि कोई व्यक्ति जमीन खरीदता है और सही तरीके से स्टांप शुल्क और रजिस्ट्री शुल्क भरकर दस्तावेज का पंजीकरण करवा लेता है, तो अब उसे वर्षों बाद अचानक “स्टांप शुल्क की कमी” के नाम पर नोटिस आने का डर नहीं रहेगा। यह फैसला नागरिकों को कानूनी सुरक्षा और निश्चितता प्रदान करता है।
  • सरकारी विभागों के लिए: यह निर्णय निबंधन कार्यालयों को यह याद दिलाता है कि यदि उन्हें किसी दस्तावेज के मूल्यांकन या वर्गीकरण पर संदेह है, तो वे कार्रवाई पंजीकरण से पहले करें। यदि बाद में करनी भी पड़े, तो उचित कारण दर्ज कर समयसीमा के भीतर करें।
  • राजस्व प्रशासन के लिए: यह निर्णय राजस्व विभाग को अपनी प्रक्रियाओं को पारदर्शी बनाने की दिशा में प्रेरित करेगा। विभाग यदि समय रहते निरीक्षण कर ले, तो न केवल विवाद कम होंगे बल्कि अनावश्यक मुकदमेबाजी से भी बचा जा सकेगा।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या उप निबंधक पंजीकरण के बाद किसी दस्तावेज को कलेक्टर को मूल्यांकन हेतु भेज सकता है?
    ➤ नहीं, धारा 47A(1) के अनुसार यह केवल पंजीकरण से पहले ही संभव है।
  • क्या कलेक्टर स्वयं (सुओ मोटू) दो वर्ष से अधिक पुराने दस्तावेज की जांच कर सकता है?
    ➤ नहीं, धारा 47A(3) स्पष्ट रूप से कहती है कि दो वर्ष के बाद ऐसा नहीं किया जा सकता।
  • परिणाम:
    ➤ 14.11.2019 को पारित आदेश (स्टांप केस नं. 1/2019–20) को अदालत ने रद्द कर दिया और ₹7,36,956 रुपये की मांग को असंवैधानिक और अवैध घोषित किया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • राज्य बनाम स्म्ट. टेट्रा देवी, 2018 (3) PLJR 136 — जिसमें कहा गया कि कलेक्टर को सुओ मोटू कार्रवाई दो वर्ष के भीतर करनी चाहिए।
  • शहनाज़ बेगम बनाम बिहार राज्य, 2018 (2) PLJR 293 — जिसमें कहा गया कि उप निबंधक केवल पंजीकरण से पहले ही संदर्भ भेज सकता है।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • शहनाज़ बेगम बनाम बिहार राज्य, 2018 (2) PLJR 293 — इस फैसले को अदालत ने सीधे इस मामले पर लागू किया।
  • राज्य बनाम स्म्ट. टेट्रा देवी, 2018 (3) PLJR 136 — अदालत ने इस फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि देरी से की गई कार्रवाई अवैध है।

मामले का शीर्षक

राहुल कुमार बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 902 of 2020

उद्धरण (Citation)

2025 (1) PLJR 815

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह (एकल पीठ) — मौखिक निर्णय दिनांक 08-01-2025

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

याचिकाकर्ता की ओर से: श्री केदार झा, अधिवक्ता; श्री माया शंकर मिश्रा, अधिवक्ता
राज्य की ओर से: श्री विवेक प्रसाद, सरकारी अधिवक्ता (GP-7)

निर्णय का लिंक

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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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