पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: एमएचआरएम (MHRM) और पीएमआईआर (PMIR) डिग्री को एमबीए (MBA) के समान नहीं माना जा सकता (2021)

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: एमएचआरएम (MHRM) और पीएमआईआर (PMIR) डिग्री को एमबीए (MBA) के समान नहीं माना जा सकता (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2021 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम (BSFCSCL) की भर्ती प्रक्रिया से जुड़े विवाद पर निर्णय दिया गया। यह मामला इस बात को लेकर था कि क्या Master in Human Resource Management (MHRM) या Master in Personnel Management & Industrial Relations (PMIR) की डिग्रियाँ Master in Business Administration (MBA) या Post Graduate Diploma in Business Management (PGDBM) के समान (equivalent) मानी जा सकती हैं या नहीं।

अदालत ने साफ कहा कि इन डिग्रियों को समान नहीं माना जा सकता। इस प्रकार, जिन अभ्यर्थियों के आवेदन BSFCSCL ने अस्वीकार कर दिए थे, वे नौकरी के लिए पात्र नहीं थे।

यह निर्णय पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ — माननीय मुख्य न्यायाधीश और माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार — ने दिया। उन्होंने एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें पहले ही इन याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम ने सहायक प्रबंधक (Assistant Manager) और सहायक लेखाकार (Assistant Accountant) के पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था।

विज्ञापन में सहायक प्रबंधक (सामान्य प्रशासन) पद के लिए शैक्षणिक योग्यता निर्धारित की गई थी:

“MBA/PGDBM from a recognized University or Institute approved by AICTE.”

कुछ उम्मीदवारों ने MHRM, PMIR, या MA (Personnel Management) जैसे विषयों में स्नातकोत्तर डिग्रियाँ लेकर आवेदन किया और कहा कि ये डिग्रियाँ MBA के समान हैं।

लेकिन दस्तावेज़ सत्यापन (document verification) के दौरान निगम ने उनके आवेदन अस्वीकृत कर दिए क्योंकि उनकी डिग्री विज्ञापन में दी गई योग्यता के अनुरूप नहीं थी।

अभ्यर्थियों ने इस निर्णय को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी, परंतु एकल न्यायाधीश ने याचिका खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने एलपीए (Letters Patent Appeal No. 210 of 2019) दायर किया।

याचिकाकर्ताओं (अभ्यर्थियों) के तर्क

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि:

  1. उनके पाठ्यक्रमों (MHRM/PMIR) में वही विषय हैं जो MBA में पढ़ाए जाते हैं — जैसे प्रबंधन, मानव संसाधन, और औद्योगिक संबंध।
  2. कई अन्य सरकारी भर्तियों में इन डिग्रियों को MBA के समान माना गया है।
  3. BSFCSCL ने किसी विशेषज्ञ संस्था से राय लिए बिना उन्हें अयोग्य घोषित किया, जो अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
  4. पूर्व की भर्तियों में समान योग्यता वाले उम्मीदवारों को पात्र माना गया था।

उन्होंने कहा कि उनके कोर्स का विषयवस्तु (syllabus) और उद्देश्य MBA के समान है, इसलिए उन्हें भी पात्र माना जाना चाहिए।

प्रतिवादी (BSFCSCL और राज्य सरकार) का पक्ष

BSFCSCL और राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि:

  1. विज्ञापन में योग्यता स्पष्ट रूप से “MBA/PGDBM” लिखी गई थी।
  2. आयोग या निगम को यह अधिकार नहीं है कि वह बाद में योग्यता में बदलाव करे।
  3. AICTE (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) ने कभी MHRM या PMIR को MBA के समान घोषित नहीं किया है।
  4. अदालतों को इस तरह के शैक्षणिक मुद्दों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह विशेषज्ञ संस्थाओं (expert bodies) का अधिकार क्षेत्र है।

उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया था कि नियोक्ता की योग्यता संबंधी शर्तों को अदालतें नहीं बदल सकतीं। प्रमुख निर्णय थे:

  • Zahoor Ahmad Rather v. Sheikh Imtiyaz Ahmad, (2019) 2 SCC 404
  • State of Rajasthan v. Lata Arun, (2002) 6 SCC 252
  • P.M. Latha v. State of Kerala, (2003) 3 SCC 541

न्यायालय के अवलोकन

खंडपीठ ने कहा कि “समकक्षता (equivalence)” तय करना अदालत का नहीं, बल्कि शैक्षणिक विशेषज्ञों और भर्ती करने वाले निकाय का कार्य है।

अदालत ने माना कि:

  • भर्ती में योग्यता तय करना नीति (policy) का विषय है।
  • यदि विज्ञापन में स्पष्ट रूप से “MBA/PGDBM” लिखा है, तो MHRM या PMIR वाले उम्मीदवार पात्र नहीं माने जा सकते।
  • समान विषय या पाठ्यक्रम होने से डिग्रियाँ “समान” नहीं हो जातीं, जब तक कि कोई आधिकारिक अधिसूचना या मान्यता न हो।
  • अदालतें योग्यता के प्रश्न में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं जब तक नियोक्ता का निर्णय मनमाना या भेदभावपूर्ण न हो।

न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के Zahoor Ahmad Rather (2019) मामले का हवाला देते हुए कहा कि भर्ती योग्यता में न्यायिक हस्तक्षेप से “सार्वजनिक सेवा में अराजकता फैल सकती है।”

अंतिम निर्णय

अदालत ने कहा कि BSFCSCL का निर्णय सही था।

  • MHRM या PMIR डिग्री MBA के समान नहीं मानी जा सकती।
  • किसी न्यायालय के पास यह अधिकार नहीं है कि वह किसी शैक्षणिक योग्यता को दूसरी के बराबर घोषित करे।
  • भर्ती एजेंसी द्वारा तय नियमों में अदालत हस्तक्षेप नहीं कर सकती।

इसलिए सभी अपीलें खारिज कर दी गईं

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

यह निर्णय उन सभी उम्मीदवारों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है जो सरकारी या अर्ध-सरकारी नौकरियों में आवेदन करते हैं।

इससे यह स्पष्ट हुआ कि:

  • भर्ती विज्ञापन में जो योग्यता दी गई है, उसी का पालन करना आवश्यक है।
  • समान विषय होने से योग्यता स्वतः समान (equivalent) नहीं मानी जाएगी।
  • किसी डिग्री की समानता का निर्धारण AICTE, UGC या नियोक्ता संस्थान ही कर सकते हैं, अदालत नहीं।
  • उम्मीदवारों को आवेदन करने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उनकी डिग्री मान्यता प्राप्त या समकक्ष घोषित है।

इस फैसले से यह भी संदेश जाता है कि भर्ती एजेंसियों के निर्णयों में अदालत तभी हस्तक्षेप करेगी जब स्पष्ट अनुचितता या भेदभाव सिद्ध हो।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बिंदुवार)

  • क्या MHRM या PMIR को MBA/PGDBM के समान माना जा सकता है?
    ❌ नहीं। अदालत ने कहा कि कोई आधिकारिक समकक्षता नहीं है।
  • क्या नियोक्ता को विशिष्ट योग्यता पर जोर देने का अधिकार है?
    ✔ हाँ। भर्ती की योग्यता तय करना नियोक्ता का अधिकार है।
  • क्या अदालत योग्यता की समकक्षता तय कर सकती है?
    ❌ नहीं। यह विशेषज्ञ संस्थाओं का क्षेत्र है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Zahoor Ahmad Rather v. Sheikh Imtiyaz Ahmad, (2019) 2 SCC 404
  • P.M. Latha v. State of Kerala, (2003) 3 SCC 541
  • State of Rajasthan v. Lata Arun, (2002) 6 SCC 252

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • A.P. Public Service Commission v. B. Sarat Chandra, (1990) 2 SCC 669
  • State of Haryana v. Subhash Chander Marwaha, (1974) 3 SCC 220

मामले का शीर्षक

Ratnakar Kumar & Ors. v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 210 of 2019 (arising out of CWJC No. 16685 of 2018)

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 822

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

श्री एस. बी. के. मंगलम — अपीलकर्ताओं की ओर से
श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता — राज्य की ओर से
श्री पियूष लाल — निगम (BSFCSCL) की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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