निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 24 मार्च 2021 को एक अहम फैसला सुनाते हुए यह स्पष्ट किया कि जब्त वाहनों को वर्षों तक थानों में खुले आसमान के नीचे सड़ने के लिए छोड़ देना किसी के हित में नहीं है — न राज्य के, न ही नागरिक के। अदालत ने इस मामले में गरीब महिला याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला देते हुए उसकी पिकअप वैन को श्योरिटी बांड (Surety Bond) के आधार पर रिहा करने का आदेश दिया।
यह मामला बिहार मद्यनिषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 के तहत दर्ज एक प्राथमिकी से जुड़ा था, जिसमें याचिकाकर्ता की गाड़ी को पुलिस ने शराब परिवहन के संदेह में जब्त किया था।
मामले की पृष्ठभूमि
साल 2018 में साहरस जिले के सौर बाजार थाना कांड संख्या 216/2018 में एक पिकअप वैन (BR01GD 7018) जब्त की गई थी। वाहन की मालकिन शांति देवी ने पटना उच्च न्यायालय में याचिका (CWJC No. 12014 of 2018) दायर कर वाहन की रिहाई की मांग की थी।
पहले अदालत ने वाहन की रिहाई की अनुमति दी थी, लेकिन शर्त रखी थी कि याचिकाकर्ता को वाहन के मूल्य के बराबर बैंक गारंटी देनी होगी।
समस्या यह थी कि वाहन की बीमा पॉलिसी “थर्ड पार्टी” थी, जिसमें वाहन का मूल्य लिखा नहीं था। बाद में मोटर वाहन निरीक्षक (MVI) ने 2019 में इसकी कीमत ₹2,00,000 तय की थी।
लेकिन जब 2019 में पुनर्विचार याचिका (Civil Review No. 397 of 2019) दायर की गई, तब तक तीन साल बीत चुके थे और वाहन खुले में पड़ा जंग खा चुका था। शांति देवी ने अदालत से प्रार्थना की कि वह एक गरीब महिला हैं, उनके पास बैंक गारंटी देने के लिए पैसे नहीं हैं, और वाहन की अब कीमत ₹50,000 से अधिक नहीं बची है।
राज्य का पक्ष
राज्य की ओर से अपर महाधिवक्ता (AAG-6) श्री पुष्कर नारायण शाही ने यह माना कि वाहन वास्तव में लंबे समय से खुले आसमान के नीचे खड़ा है और इसकी स्थिति खराब हो चुकी है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि कब्ज़ा जब्ती (confiscation) की प्रक्रिया अभी भी लंबित है, इसलिए राज्य के हित की सुरक्षा के लिए कुछ शर्तें रखी जाएँ।
न्यायालय के महत्वपूर्ण अवलोकन
अदालत ने मामले की परिस्थितियों को देखते हुए कुछ बेहद महत्वपूर्ण बातें कही जो बिहार के सभी उत्पाद अधिनियम मामलों पर लागू होती हैं:
- वाहनों को लंबे समय तक थानों में रखना व्यर्थ है
अदालत ने कहा — “वाहनों को खुले आसमान के नीचे वर्षों तक रखना न राज्य के हित में है, न नागरिक के। इस तरह गाड़ियाँ जंग खा जाती हैं और कचरे में बदल जाती हैं। यह एक प्रकार से राष्ट्रीय क्षति (national loss) है।” - सुप्रीम कोर्ट के ‘सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम गुजरात राज्य (2002)’ मामले का हवाला
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि जब्त वाहन लंबे समय तक थाने में पड़े रहना किसी काम का नहीं। उन्हें बांड या श्योरिटी लेकर मालिक को सौंप देना चाहिए ताकि अदालत के कहने पर उन्हें वापस बुलाया जा सके। - लंबे समय तक जब्ती कार्यवाही लंबित रहना अनुचित
अदालत ने टिप्पणी की कि इस मामले में जब्ती की प्रक्रिया तीन वर्षों से लंबित है। इस दौरान वाहन बेकार हो गया है और उसकी कीमत घट गई है। - राज्य और नागरिक — दोनों के हित में संतुलन आवश्यक
अदालत ने कहा कि एक तरफ राज्य को अपनी जब्त संपत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए, वहीं गरीब नागरिक को भी उसका साधन नष्ट होते देखने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।
न्यायालय द्वारा दिया गया संशोधित आदेश
पहले दिए गए आदेश को संशोधित करते हुए अदालत ने जिला पदाधिकारी, साहरस (जब्ति प्राधिकारी) को निम्न निर्देश दिए:
- 7 दिनों के अंदर वाहन की पुनर्मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार की जाए। मोटर वाहन निरीक्षक (MVI) वाहन का ताज़ा मूल्य और उसकी तस्वीर लेकर रिपोर्ट जमा करें।
- याचिकाकर्ता वाहन के मूल्य के बराबर श्योरिटी बांड जमा करें (बैंक गारंटी की आवश्यकता नहीं)।
- श्योरिटी देने पर वाहन को अस्थायी रूप से रिहा कर दिया जाए।
- याचिकाकर्ता यह हलफ़नामा देगी कि—
- वह वाहन को बेचेंगी नहीं या किसी तीसरे पक्ष को नहीं देंगी।
- जब भी जब्ती प्राधिकारी माँगे, वह वाहन प्रस्तुत करेंगी।
- वाहन की तस्वीर रिकॉर्ड में सुरक्षित रखी जाएगी, जिसे भविष्य में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।
इस आदेश के साथ अदालत ने अपने पूर्ववर्ती निर्णय (दिनांक 18.12.2018) को संशोधित कर दिया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
यह फैसला न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए एक व्यावहारिक दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- अदालत ने दोहराया कि जब्त गाड़ियों को थानों में सड़ने के लिए छोड़ देना एक प्रशासनिक गलती है।
- अब यह स्पष्ट है कि अदालतें ऐसे मामलों में “सुंदरभाई देसाई सिद्धांत” लागू करेंगी — यानी वाहन को मालिक को बांड के आधार पर सौंप देना चाहिए।
- गरीब वाहन मालिकों के लिए यह राहतभरा फैसला है क्योंकि अब उन्हें बैंक गारंटी की जगह श्योरिटी बांड देने की अनुमति है।
- यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि अदालतें सिर्फ कानून की कठोरता नहीं बल्कि मानवीय दृष्टिकोण भी अपनाती हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या बैंक गारंटी अनिवार्य थी जब वाहन का मूल्य अस्पष्ट था और याचिकाकर्ता गरीब थी?
❌ नहीं। अदालत ने श्योरिटी बांड स्वीकार करने का आदेश दिया। - क्या थानों में वर्षों तक वाहन रखना उचित है?
❌ नहीं। अदालत ने कहा कि यह राज्य और व्यक्ति — दोनों के लिए हानिकारक है। - क्या जब्ती प्रक्रिया लंबित रहते हुए वाहन रिहा किया जा सकता है?
✔ हाँ। यह रिहाई अस्थायी (provisional) है और कानून के अनुरूप है।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाया गया निर्णय
- Sunderbhai Ambalal Desai v. State of Gujarat, (2002) 10 SCC 283
मामले का शीर्षक
Shanti Devi v. The State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Review No. 397 of 2019 in CWJC No. 12014 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 859
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति श्री राजीव रंजन प्रसाद
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री शशांक शेखर झा — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री पुष्कर नारायण शाही, अपर महाधिवक्ता (AAG-6) — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
MTEjMzk3IzIwMTkjMyNO-M–ak1—-am1–FPMm9bes=
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