निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने 4 मई 2021 को एक याचिका पर फैसला सुनाया, जो बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) द्वारा आयोजित 30वीं बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगी परीक्षा से जुड़ी थी। इस याचिका में उम्मीदवार की उम्मीदवारी रद्द करने के फैसले को चुनौती दी गई थी। मुख्य सवाल यह था — यदि कोई उम्मीदवार साक्षात्कार के समय कॉलेज या विश्वविद्यालय से जारी मूल चरित्र प्रमाणपत्र (Character Certificate) प्रस्तुत नहीं करता है, तो क्या बाद में उसे जमा करने से गलती सुधारी जा सकती है?
न्यायालय ने कहा — नहीं, ऐसा संभव नहीं है। और इस आधार पर याचिका को खारिज कर दिया गया।
इस परीक्षा के लिए उम्मीदवार ने प्रारंभिक और मुख्य परीक्षा पास कर ली थी और उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। आयोग की शर्तों के अनुसार उम्मीदवार को सभी प्रमाणपत्रों की मूल प्रति दिखानी थी, जिनमें कॉलेज/विश्वविद्यालय से जारी चरित्र प्रमाणपत्र भी शामिल था।
उम्मीदवार ने साक्षात्कार के दिन एक अन्य चरित्र प्रमाणपत्र (जो उप-विभागीय अधिकारी द्वारा जारी था) दिखाया, लेकिन कॉलेज द्वारा जारी मूल प्रमाणपत्र प्रस्तुत नहीं किया। उसका कहना था कि यह प्रमाणपत्र उसने दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकरण के समय जमा किया था और बाद में वापस मिलने पर उसने बीपीएससी को ईमेल और स्पीड पोस्ट से भेज दिया। बावजूद इसके, आयोग ने उसकी उम्मीदवारी रद्द कर दी और अंतिम परिणाम में शामिल नहीं किया।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से अनुरोध किया कि उसके अंक प्रकाशित किए जाएँ, उसे अंतिम चयन सूची में शामिल किया जाए, और उसकी बाद में भेजी गई मूल प्रति को मान्य किया जाए।
न्यायालय ने 1955 के बिहार सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) भर्ती नियमावली और विज्ञापन संख्या 6/2018 के प्रावधानों का अध्ययन किया। इन नियमों के तहत—
- विज्ञापन की धारा 9 में कहा गया था कि आवेदन में बताए गए और अंतिम तिथि से पहले जारी प्रमाणपत्र ही मान्य होंगे।
- धारा 10 में यह स्पष्ट किया गया था कि साक्षात्कार के समय सभी प्रमाणपत्रों की मूल प्रति दिखाना अनिवार्य है; अन्यथा आयोग उम्मीदवार की पात्रता पर उचित निर्णय ले सकता है।
- धारा 11 में यह भी लिखा था कि उम्मीदवार आवेदन भरते समय यह सुनिश्चित करे कि उसके पास सभी प्रमाणपत्रों की मूल प्रति मौजूद हो।
साक्षात्कार कार्यक्रम में भी यह स्पष्ट लिखा था कि यदि मूल प्रमाणपत्र नहीं दिखाया गया, तो आगे समय नहीं दिया जाएगा।
इन शर्तों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने कहा कि विज्ञापन और निर्देश स्पष्ट और अनिवार्य थे। उम्मीदवार का यह तर्क कि प्रमाणपत्र अन्यत्र जमा था, स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि नियमों में किसी प्रकार की रियायत या छूट का अधिकार नहीं दिया गया था।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि कुछ अन्य उम्मीदवारों को तारीख बदलने या दस्तावेज़ जमा करने में रियायत दी गई थी, इसलिए उसके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। अदालत ने यह दलील भी खारिज कर दी और कहा कि “नकारात्मक समानता (negative equality)” का सिद्धांत लागू नहीं होता। अर्थात यदि किसी को नियमों के विपरीत लाभ मिला, तो वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए अधिकार नहीं बन जाता।
अदालत ने यह भी कहा कि यहाँ कोई भ्रम या अस्पष्टता नहीं थी। विज्ञापन में स्पष्ट रूप से वही प्रमाणपत्र माँगा गया था जो आवेदन में बताया गया था। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के Parvaiz Ahmad Parry वाले मामले का तर्क यहाँ लागू नहीं होता।
नतीजतन, न्यायालय ने बीपीएससी के फैसले को सही ठहराया और याचिका को बिना किसी खर्च के खारिज कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में नियमों की सख्त पालना का उदाहरण है।
- स्पष्ट संदेश: यदि किसी विज्ञापन में किसी दस्तावेज़ को मूल रूप में प्रस्तुत करने की शर्त है, तो बाद में भेजना मान्य नहीं होगा।
- उम्मीदवार की जिम्मेदारी: उम्मीदवार को आवेदन करते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी आवश्यक दस्तावेज़ उसके पास हों। यह बहाना स्वीकार नहीं किया जाएगा कि दस्तावेज़ कहीं और जमा है।
- समानता का सही अर्थ: यदि किसी और को गलती से छूट दी गई, तो वह छूट किसी और के लिए अधिकार नहीं बनती।
- भर्ती की निष्पक्षता: ऐसे निर्णय आयोग जैसी संस्थाओं को नियमों के अनुसार पारदर्शी ढंग से कार्य करने की शक्ति देते हैं और भविष्य के विवादों से बचाते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा: क्या साक्षात्कार के दिन मूल चरित्र प्रमाणपत्र प्रस्तुत न करने की गलती बाद में सुधारी जा सकती है?
- निर्णय: नहीं। विज्ञापन की धाराएँ 9, 10 और 11 स्पष्ट रूप से यह शर्त रखती हैं कि सभी मूल प्रमाणपत्र उसी दिन दिखाने होंगे। बाद में भेजे गए दस्तावेज़ स्वीकार नहीं किए जा सकते।
- मुद्दा: क्या अन्य उम्मीदवारों को दी गई रियायत का हवाला देकर समान छूट माँगी जा सकती है?
- निर्णय: नहीं। न्यायालय ने कहा कि समानता का अधिकार तभी होता है जब कानूनी अधिकार मौजूद हो। किसी को मिली गलत रियायत से दूसरा व्यक्ति लाभ नहीं उठा सकता।
- मुद्दा: क्या विज्ञापन में कोई भ्रम या अस्पष्टता थी?
- निर्णय: नहीं। विज्ञापन और साक्षात्कार निर्देश दोनों स्पष्ट थे। उम्मीदवार को पहले से पता था कि कौन-सा प्रमाणपत्र जरूरी है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Parvaiz Ahmad Parry v. State of Jammu & Kashmir, 2016 (1) PLJR 132 (SC)
- General Manager, South Central Railway, Secunderabad v. A.V.R. Siddhanti, AIR 1974 SC 1755
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Bedanga Talukdar v. Saifudaullah Khan, (2011) 12 SCC 85
- Director of Settlements, A.P. v. M.R. Appa Rao, (2002) 4 SCC 638
- Basawaraj v. Special Land Acquisition Officer, (2013) 14 SCC 81
- (साथ ही अन्य मामलों का भी उल्लेख किया गया: Municipal Corporation of Greater Bombay v. Dr. Sushil V. Patkar, State of Odisha v. Anup Kumar Senapati, State of U.P. v. Raj Kumar Sharma, P. Singaravelan v. District Collector, Tiruppur.)
मामले का शीर्षक
याचिकाकर्ता बनाम बिहार लोक सेवा आयोग एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 24282 of 2019
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 867
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति शिवाजी पांडेय एवं माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री रोहित कुमार, अधिवक्ता
- बीपीएससी की ओर से: श्री ललित किशोर (वरिष्ठ अधिवक्ता) एवं श्री संजय पांडेय
- उच्च न्यायालय (रजिस्ट्रार जनरल) की ओर से: श्री पीयूष लाल
- निजी प्रतिवादी की ओर से: श्री वाई.वी. गिरी (वरिष्ठ अधिवक्ता) एवं श्री प्रणव कुमार
निर्णय का लिंक
MTUjMjQyODIjMjAxOSMxI04=-X3XosovCSB8=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।







