पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: मत्स्य बीज फार्म की लीज़ अवधि 10 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती — 2020

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: मत्स्य बीज फार्म की लीज़ अवधि 10 वर्ष से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती — 2020

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने जुलाई 2020 में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि बिहार सरकार द्वारा दिए गए मत्स्य बीज फार्म (Fish Seed Farm) की लीज़ 10 साल से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती। न्यायालय ने कहा कि जब किसी कानून में किसी सरकारी संपत्ति की लीज़ अवधि की अधिकतम सीमा तय की गई है, तो कोई भी निजी अनुबंध (Lease Agreement) उस सीमा से अधिक नहीं हो सकता।

इस मामले में एक निजी व्यक्ति (याचिकाकर्ता) को पूर्वी चंपारण जिले के रक्सौल स्थित मत्स्य बीज फार्म की लीज़ 1 जनवरी 2010 से 1 जनवरी 2020 तक, यानी कुल 10 वर्षों के लिए दी गई थी। लीज़ अवधि समाप्त होने के बाद, याचिकाकर्ता ने इसे और 10 वर्ष के लिए बढ़ाने की मांग की। उसका तर्क था कि 28 जून 2010 को हुए लीज़ अनुबंध में यह प्रावधान था कि यदि संचालन अच्छा रहा तो सरकार अगले 10 वर्ष के लिए भी लीज़ बढ़ा सकती है।

लेकिन मत्स्य निदेशक ने 9 मई 2020 को पत्र जारी कर यह विस्तार (extension) देने से मना कर दिया और जिला मत्स्य पदाधिकारी को फार्म का अधिग्रहण करने का निर्देश दिया। इसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने पटना उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर की।

सुनवाई के दौरान (जो कोविड-19 महामारी के चलते वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हुई) न्यायालय ने पूछा कि जब बिहार मत्स्य जलकर प्रबंधन अधिनियम, 2006 (Bihar Fish Jalkar Management Act, 2006) में ही यह स्पष्ट लिखा है कि किसी भी दीर्घकालीन पट्टा (long-term lease) की अधिकतम अवधि 10 वर्ष होगी, तो उसके बाद विस्तार का अधिकार कहाँ से उत्पन्न होता है?

न्यायालय ने अधिनियम की धारा 5 और 6 का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि किसी भी जालकर या मत्स्य संसाधन की दीर्घकालीन बसावट अधिकतम “10 बसावट वर्षों” (settlement years) के लिए होगी, और उसका नवीकरण केवल उसी प्रक्रिया के तहत किया जा सकता है जो कानून में निर्धारित है।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि अनुबंध में यह प्रावधान है कि “यदि संचालन संतोषजनक रहा तो अवधि बढ़ाई जा सकती है।” लेकिन न्यायालय ने साफ कहा कि कानून की आज्ञा का पालन करना सार्वजनिक नीति (public policy) का हिस्सा है। इसलिए यदि किसी अनुबंध में कोई प्रावधान कानून के विपरीत है, तो वह स्वतः ही शून्य (void) माना जाएगा। इस तरह का कोई भी अनुबंध सरकार या न्यायालय को बाध्य नहीं कर सकता।

राज्य सरकार की ओर से यह कहा गया कि अधिनियम की भाषा स्पष्ट है — “किसी भी दीर्घकालीन बसावट की अवधि दस वर्ष से अधिक नहीं होगी।” इसीलिए किसी भी प्रकार का विस्तार (extension) देना कानून के खिलाफ होगा।

न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार किया और कहा कि जब कानून में स्पष्ट रोक है, तो याचिकाकर्ता को विस्तार पाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है। इसलिए यह रिट याचिका “निर्बाध रूप से निराधार” (devoid of merit) है और इसे खारिज किया जाता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला बिहार के मत्स्य व्यवसाय, ग्रामीण उद्यमियों और सरकारी विभागों — तीनों के लिए अहम है।

सबसे पहले, इस निर्णय से यह सिद्ध हुआ कि जब किसी विशेष क्षेत्र (जैसे मत्स्य पालन) के लिए एक विधि बनाई गई है, तो वही सर्वोच्च होगी। Bihar Fish Jalkar Management Act, 2006 यह निर्धारित करता है कि लीज़ की अधिकतम अवधि 10 वर्ष है। इसका अर्थ है कि सरकार और लीज़धारक दोनों उस सीमा से बंधे हैं।

दूसरा, यह फैसला सरकार के लिए भी राहतपूर्ण है। कई बार पुराने लीज़धारक अनुबंध के बहाने लगातार विस्तार की मांग करते हैं, जिससे सार्वजनिक संसाधनों (public resources) पर एकाधिकार बना रहता है। अब यह फैसला स्पष्ट करता है कि ऐसी “उम्मीदों” का कोई कानूनी आधार नहीं है। इससे सरकारी विभागों को पुराने पट्टों को समाप्त कर नए पात्र मछुआरों को मौका देने का अवसर मिलेगा।

तीसरा, आम जनता और स्थानीय मत्स्य समाजों के लिए यह फैसला पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करता है। अब हर 10 वर्ष के बाद पुनः चयन और नीलामी की प्रक्रिया होगी, जिससे अधिक लोगों को रोजगार और अवसर मिलेगा। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी सकारात्मक संकेत है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या मत्स्य बीज फार्म की लीज़ 10 वर्ष से अधिक बढ़ाई जा सकती है, यदि अनुबंध में विस्तार का प्रावधान हो?
    निर्णय: नहीं। बिहार मत्स्य जलकर प्रबंधन अधिनियम, 2006 के अनुसार, दीर्घकालीन लीज़ अधिकतम 10 वर्ष की हो सकती है। कोई भी अनुबंध जो इससे अधिक विस्तार का प्रावधान रखता है, वह कानून के विरुद्ध और सार्वजनिक नीति के प्रतिकूल है।
  • क्या सरकार का लीज़ विस्तार से इंकार करना अवैध या मनमाना था?
    निर्णय: नहीं। सरकार का यह निर्णय अधिनियम के अनुरूप था। जब कानून में स्पष्ट सीमा निर्धारित है, तो सरकार के पास विस्तार देने की कोई शक्ति नहीं है। अतः याचिका निराधार थी।

मामले का शीर्षक

Vinod Mahto बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 6132 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(3) PLJR 95 

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री संदीप कुमार — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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