पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: अवमानना आदेश के खिलाफ अंतःस्थ अपील की सीमाएँ और आयु छूट का सही उपाय – 2022

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय: अवमानना आदेश के खिलाफ अंतःस्थ अपील की सीमाएँ और आयु छूट का सही उपाय – 2022

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने वर्ष 2022 में एक ऐसे विवाद पर निर्णय दिया जो बिहार के पूर्वी चंपारण जिले की एक सरकारी भर्ती प्रक्रिया से जुड़ा था। यह मामला एक साधारण सेवा विवाद के रूप में शुरू हुआ था, लेकिन समय के साथ यह अवमानना कार्यवाही (Contempt Case) और फिर अंततः अंतःस्थ अपील (Letters Patent Appeal) तक पहुँच गया।

इस मामले में आवेदकगण जिला स्तर पर चतुर्थ वर्ग (Group-D) के पदों के लिए आवेदन कर चुके थे। विज्ञापन काफी देर से निकला था, जिससे कई उम्मीदवारों की आयु सीमा पार हो गई थी। उन्होंने अदालत में याचिका दायर की कि भर्ती प्रक्रिया जल्दी पूरी की जाए और उनकी आयु सीमा को ध्यान में रखते हुए “आयु में छूट” दी जाए।

एकल पीठ ने इस पर निर्देश दिया कि जिला पदाधिकारी, पूर्वी चंपारण छह महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी करें और सरकार कानून के अनुसार आयु में छूट देने पर विचार करे। यहाँ “विचार करे” शब्द महत्वपूर्ण था — इसका अर्थ यह नहीं था कि अदालत ने आयु में छूट देना अनिवार्य कर दिया है, बल्कि यह कहा गया था कि सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।

भर्ती प्रक्रिया अंततः पूरी हुई, लेकिन जिन उम्मीदवारों की आयु सीमा पार हो चुकी थी, उन्हें मौका नहीं मिला। तब उन्होंने अदालत की “अवमानना याचिका” दायर की कि आदेश का पालन नहीं हुआ। परंतु न्यायालय ने कहा कि मुख्य आदेश तो केवल भर्ती पूरी करने का था, और “आयु छूट” देने या न देने का मुद्दा एक अलग मामला है। अगर उन्हें लगता है कि छूट नहीं दी गई, तो उन्हें नई रिट याचिका दाखिल करनी चाहिए, अवमानना नहीं।

इसके बाद इन आवेदकों ने उस अवमानना आदेश के खिलाफ अंतःस्थ अपील (LPA No. 1702 of 2019) दायर कर दी। यही अपील इस निर्णय का विषय थी।

न्यायालय का विचार:
माननीय न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार और माननीय न्यायमूर्ति नवनीत कुमार पांडेय की खंडपीठ ने इस बात पर विचार किया कि — क्या अवमानना आदेश के खिलाफ इस तरह की अपील (LPA) स्वीकार्य है या नहीं?

खंडपीठ ने विस्तार से सुना और पाया कि यहाँ अवमानना न्यायालय ने कोई नया आदेश नहीं दिया था, बल्कि केवल इतना कहा था कि अगर किसी को आयु छूट न मिलने से आपत्ति है, तो वे नई रिट दायर करें। इसलिए इस स्थिति में LPA स्वीकार्य नहीं है।

अंततः अदालत ने अपीलकर्ताओं को यह अनुमति दी कि वे अपील वापस लें और अपनी शिकायत को सही मंच (यानी अनुच्छेद 226 के तहत नई रिट) में उठाएँ।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

  1. कानूनी प्रक्रिया की स्पष्टता:
    यह निर्णय याद दिलाता है कि अवमानना अदालत का कार्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि अदालत के आदेश का पालन हो, न कि आदेश को बढ़ाना या उसमें नया अधिकार जोड़ना।
  2. भर्ती विवादों में मार्गदर्शन:
    बिहार में कई बार भर्ती प्रक्रियाएँ वर्षों तक लटकी रहती हैं। ऐसे में उम्मीदवारों की आयु सीमा पार हो जाती है। यह फैसला बताता है कि यदि अदालत “विचार करने” का निर्देश देती है, तो उम्मीदवार को सरकारी निर्णय आने के बाद नई याचिका दायर करनी चाहिए, अवमानना नहीं।
  3. अपील की सीमाएँ तय:
    अगर अवमानना अदालत कोई नया आदेश नहीं देती है, तो उसके खिलाफ अंतःस्थ अपील दाखिल नहीं की जा सकती। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में स्पष्ट सीमा निर्धारित करता है।
  4. सरकारी अधिकारियों के लिए संदेश:
    जब अदालत “विचार करने” का निर्देश देती है, तो प्रशासन को कारणयुक्त (reasoned) आदेश पारित करना चाहिए। अन्यथा, वह रिट में चुनौती योग्य बन जाएगा। इससे प्रशासनिक निर्णयों में पारदर्शिता बढ़ती है।
  5. न्यायिक संसाधनों की बचत:
    ऐसे मामलों में जहाँ गलत मंच पर अपील या याचिका दायर होती है, समय और संसाधनों की बर्बादी होती है। यह निर्णय बताता है कि सही मंच पर जाना ही उचित न्यायिक उपाय है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • प्रश्न: क्या अवमानना आदेश के खिलाफ अंतःस्थ अपील (LPA) दायर की जा सकती है, जब अवमानना अदालत ने कोई नया आदेश नहीं दिया हो?
    निर्णय: नहीं। ऐसी अपील आम तौर पर अस्वीकार्य होती है। केवल तब ही अपील संभव है जब अवमानना अदालत ने नए अधिकार या नए निर्देश दिए हों।
  • प्रश्न: यदि अदालत ने केवल “विचार करने” को कहा हो और अधिकारी ने विचार कर छूट नहीं दी, तो क्या अवमानना होगी?
    निर्णय: नहीं। यह अवमानना का मामला नहीं है। यह “नकारात्मक प्रशासनिक निर्णय” है, जिसके खिलाफ नई रिट याचिका दायर की जा सकती है।
  • प्रश्न: क्या आवेदकों को किसी भी तरह का उपाय नहीं मिला?
    निर्णय: उन्हें उचित मंच का मार्ग बताया गया — यानी नई रिट याचिका। अदालत ने कहा कि वे बिना उपाय के नहीं छोड़े जा रहे हैं, परंतु उन्हें सही रास्ता अपनाना होगा।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Midnapore People’s Co-operative Bank Ltd. v. Chunilal Nanda, AIR 2006 SC 2190.
  • पटना उच्च न्यायालय, LPA No. 343 of 2013 (MJC No. 930 of 2012 से संबंधित मामला)।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Midnapore People’s Co-operative Bank Ltd. v. Chunilal Nanda, AIR 2006 SC 2190 — यह निर्णय बताता है कि अवमानना अदालत द्वारा दिए गए नए आदेश के खिलाफ अपील की जा सकती है।
  • पटना उच्च न्यायालय, LPA No. 343 of 2013 — इस मामले को अदालत ने अलग परिस्थिति बताते हुए अलग किया, क्योंकि वहाँ अवमानना अदालत ने वास्तव में नए आदेश दिए थे।

मामले का शीर्षक

पूर्वी चंपारण में जिला स्तरीय भर्ती विवाद से जुड़ा मामला — (आवेदक बनाम बिहार राज्य एवं जिला प्रशासन)।

केस नंबर

L.P.A. No. 1702 of 2019
in M.J.C. No. 4037 of 2014
arising out of C.W.J.C. No. 1807 of 2014

उद्धरण (Citation)

2023 (1) PLJR 3

न्यायमूर्ति गण का नाम

  • माननीय श्री न्यायमूर्ति अशुतोष कुमार
  • माननीय श्री न्यायमूर्ति नवनीत कुमार पांडेय

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • आवेदकों की ओर से: श्री मुरारी नारायण चौधरी, अधिवक्ता; श्री विजय कुमार, अधिवक्ता।
  • राज्य की ओर से: श्री प्रभात कुमार वर्मा, अपर महाधिवक्ता-3; श्री संजय कुमार घोषरवे, अधिवक्ता।

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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