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“पत्नीत्व की पुकार: पटना हाई कोर्ट ने वृद्धा विधवा को दिलाया न्याय – परिवार पेंशन में हुई गलती को सुधारा गया”

 

भूमिका

यह कहानी सिर्फ एक वृद्धा विधवा की नहीं है, बल्कि उन तमाम लोगों की है जो सरकारी गलती और तंत्र की उदासीनता के कारण अपने हक से वंचित रह जाते हैं। मुनिया देवी, जिनके पति ने बिहार मिलिट्री पुलिस में वर्षों सेवा की, उन्हें अपने पति की मृत्यु के बाद परिवार पेंशन की सही राशि पाने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा। यह मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे संवैधानिक अधिकारों के प्रयोग से एक नागरिक अपने अधिकार प्राप्त कर सकता है।


मामले की पृष्ठभूमि

मुनिया देवी के पति, श्री मुंद्रिका चौधरी, ने 23 फरवरी 1997 को बिहार मिलिट्री पुलिस में कॉन्स्टेबल के पद पर अपनी सेवा प्रारंभ की थी। लगभग 30 वर्षों की सेवा के बाद उन्होंने 31 मार्च 2007 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली, जबकि उनकी निर्धारित सेवानिवृत्ति की तिथि 30 नवंबर 2016 थी।

उनकी मृत्यु 9 फरवरी 2016 को हुई। इसके बाद, मुनिया देवी को 10 फरवरी 2016 से 2,948 रुपये प्रतिमाह की दर से परिवार पेंशन मिलने लगी। लेकिन उन्होंने पाया कि उन्हें ‘एन्हांस्ड फैमिली पेंशन’ (Enhanced Family Pension) की सुविधा नहीं दी गई है, जो कि उन्हें मिलनी चाहिए थी।


विवाद का मूल कारण

मुनिया देवी की मांग थी कि उन्हें अपने पति की मृत्यु की तारीख (09.02.2016) से लेकर अगले 7 वर्षों तक या उनके पति की 67 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) बढ़ी हुई पेंशन दी जाए। लेकिन सरकार ने 31.03.2007 (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की तिथि) से ही गणना कर दी, जिससे उनका एन्हांस्ड पेंशन का लाभ बहुत कम हो गया।

सरकार ने अपने निर्णय को 22.08.2013 की अधिसूचना संख्या 1206 के आधार पर सही बताया, जबकि मुनिया देवी का दावा था कि यह अधिसूचना उनके मामले पर लागू नहीं होती।


कानूनी तर्क और दलीलें

मुनिया देवी की ओर से यह तर्क दिया गया कि 26.09.2006 की वित्त विभाग की अधिसूचना संख्या 1764 के अनुसार, कोई भी सरकारी कर्मचारी अगर सेवानिवृत्ति के बाद मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उनकी विधवा को 7 वर्षों तक या उस कर्मचारी की 67 वर्ष की आयु तक (जो भी पहले हो) एन्हांस्ड पेंशन मिलनी चाहिए।

दूसरी ओर, सरकार का कहना था कि 2013 की अधिसूचना के अनुसार, केवल उन कर्मचारियों के परिवारों को यह पेंशन मिल सकती है जिनकी मृत्यु 01.04.2007 या उसके बाद सेवा काल में हुई हो। चूंकि मुनिया देवी के पति ने 31.03.2007 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ली थी, वे इस श्रेणी में नहीं आते।


न्यायालय का विश्लेषण

न्यायमूर्ति हरीश कुमार की एकल पीठ ने इस मामले की गहराई से समीक्षा की। उन्होंने पाया कि:

  1. 2013 की अधिसूचना (1206) केवल उन कर्मचारियों पर लागू होती है जिनकी मृत्यु सेवा काल में हुई हो।

  2. जबकि 2006 की अधिसूचना (1764) स्पष्ट रूप से यह कहती है कि कर्मचारी की मृत्यु यदि सेवा काल के बाद हुई हो, तब भी 7 वर्षों तक या 67 वर्ष की आयु तक एन्हांस्ड पेंशन दी जाएगी।

इसलिए अदालत ने सरकार और लेखा महानियंत्रक (Accountant General) द्वारा दिये गए इनकार पत्रों (दिनांक 10.02.2021 और 24.08.2023) को अवैध घोषित करते हुए उन्हें रद्द कर दिया।


अदालती आदेश

पटना उच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से आदेश दिया कि:

  • मुनिया देवी को 7 वर्षों तक या उनके पति की 67 वर्ष की आयु तक (जो पहले हो) एन्हांस्ड फैमिली पेंशन दी जाए।

  • लेखा महानियंत्रक को आदेश दिया गया कि वे वित्त विभाग की अधिसूचना संख्या 1764 दिनांक 26.09.2006 के अनुसार पीपीओ में सुधार करें और 8 सप्ताह के भीतर सभी देय लाभ प्रदान करें।

  • मुनिया देवी की याचिका स्वीकृत की गई।


निष्कर्ष

यह मामला बताता है कि अगर व्यक्ति धैर्य और दृढ़ता के साथ न्याय की तलाश करे, तो प्रणाली भी उसके पक्ष में निर्णय देने को मजबूर होती है। मुनिया देवी की लड़ाई केवल आर्थिक नहीं थी, बल्कि यह सम्मान, अधिकार और आत्म-सम्मान की लड़ाई थी।

उनका यह संघर्ष उन लाखों लोगों के लिए एक उदाहरण है, जो सरकारी नियमों की उलझनों में फंसकर अपने अधिकार खो देते हैं।


अंतिम शब्द

पटना हाई कोर्ट का यह निर्णय विधवाओं और पेंशन धारकों के अधिकारों की रक्षा में एक मील का पत्थर है। सरकार को चाहिए कि वह ऐसे मामलों में खुद ही संवेदनशीलता दिखाए और वृद्धजनों को न्यायालय की चौखट पर जाने से पहले ही राहत दे।

पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzY1MiMyMDIzIzEjTg==-iRKiB1C7W6s=

Abhishek Kumar

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