निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने एक अहम कानूनी मुद्दे पर स्पष्टता दी है, जो कि “बिहार किरायेदारी धारणाधिकारियों (रिकॉर्ड रख-रखाव) अधिनियम, 1973” (Bihar Tenants Holdings (Maintenance of Records) Act, 1973) के अंतर्गत अपर समाहर्ता (Additional Collector) की शक्तियों से जुड़ा था। यह मामला 2012 में एक डिवीजन बेंच द्वारा उठाए गए प्रश्न से जुड़ा था कि क्या अपर समाहर्ता को इस कानून की धारा 16 के अंतर्गत पुनरीक्षण याचिका सुनने का अधिकार है या नहीं।
इस विषय में भ्रम इसलिए उत्पन्न हुआ क्योंकि कोर्ट की दो अलग-अलग बेंचों ने भिन्न निर्णय दिए थे। एक फैसला Kapildeo Singh & Ors. बनाम राज्य बिहार (2003) में आया था और दूसरा Amarendra Kumar Singh बनाम राज्य बिहार (2011) में। इसी टकराव को सुलझाने के लिए यह मामला पटना हाईकोर्ट की एक बड़ी पीठ के समक्ष लाया गया।
पीठ में माननीय मुख्य न्यायाधीश, माननीय न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह, और माननीय न्यायमूर्ति सुधीर सिंह शामिल थे। इन्होंने कानून और पहले दिए गए दोनों फैसलों का विस्तार से अध्ययन किया और यह स्पष्ट किया कि दोनों फैसलों में कोई टकराव नहीं है। असल में, 28 मई 2008 को बिहार सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना (Notification) ने कानूनी स्थिति को बदल दिया था।
इस अधिसूचना के पहले अपर समाहर्ता के पास कलेक्टर की पूर्ण शक्तियाँ नहीं थीं। इसलिए, Kapildeo Singh केस में कहा गया कि उनके पास पुनरीक्षण सुनने का अधिकार नहीं था। परंतु 2008 की अधिसूचना के बाद अपर समाहर्ता को कलेक्टर की शक्तियाँ प्राप्त हो गईं, जिसे Amarendra Kumar Singh केस में मान्यता दी गई।
इसलिए अदालत ने कहा कि 2008 के पहले और बाद की कानूनी स्थितियों में भिन्नता के कारण दोनों निर्णय अपने-अपने समय के अनुसार सही थे और उनमें कोई विरोधाभास नहीं है। इस प्रकार, इस संदर्भ (reference) का उत्तर दे दिया गया और मामला अब उचित पीठ को सौंपा गया है ताकि इसे मेरिट पर सुना जा सके।
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि अब यह पुराना कानून 2011 में पारित “बिहार भूमि दाखिल-खारिज अधिनियम” (Bihar Land Mutation Act, 2011) द्वारा निरस्त (repealed) कर दिया गया है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार के लाखों भूमिधारी नागरिकों और राजस्व विभाग के अधिकारियों के लिए बेहद अहम है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि 28 मई 2008 के बाद अपर समाहर्ता द्वारा लिए गए निर्णय अब वैध माने जाएंगे और केवल इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि उनके पास अधिकार नहीं था। यह फैसला विशेष रूप से लंबित मामलों में दिशा-निर्देश के रूप में काम करेगा और कानूनी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- मुद्दा: क्या अपर समाहर्ता को बिहार किरायेदारी कानून की धारा 16 के तहत पुनरीक्षण सुनने का अधिकार है?
- निर्णय:
- 28 मई 2008 से पहले: कोई अधिकार नहीं — Kapildeo Singh केस लागू।
- 28 मई 2008 के बाद: अधिकार प्राप्त — Amarendra Kumar Singh केस लागू।
- दोनों फैसलों में कोई टकराव नहीं है।
- निर्णय:
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Kapildeo Singh & Ors. बनाम राज्य बिहार, 2003 (2) PLJR 431
- Amarendra Kumar Singh बनाम राज्य बिहार, 2011 (3) PLJR 422
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- उपरोक्त दोनों फैसलों का तुलना व स्पष्टीकरण हेतु प्रयोग किया गया।
मामले का शीर्षक
Kusum Devi बनाम राज्य बिहार व अन्य
केस नंबर
Letters Patent Appeal No. 979 of 2011
(सिविल रिट न्यायक्षेत्र मामला संख्या 9869/2010)
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 9
न्यायमूर्ति गण का नाम
- Hon’ble श्री अमरेश्वर प्रताप साही, मुख्य न्यायाधीश
- Hon’ble श्री चक्रधारी शरण सिंह, न्यायाधीश
- Hon’ble श्री सुधीर सिंह, न्यायाधीश
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री सुबोध प्रसाद, अधिवक्ता (अपीलकर्ता की ओर से)
- श्री अंजनी कुमार, अपर महाधिवक्ता-4 (राज्य की ओर से)
- श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह व श्री अमित कुमार झा, सहायक अधिवक्ता (राज्य की ओर से)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MyM5NzkjMjAxMSMyI04=—ak1–N1BazU8TkU=
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