निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने बिहार सरकार के मेडिकल कॉलेजों में सीनियर रेजिडेंट और ट्यूटर पदों पर भर्ती में निर्धारित अधिकतम उम्र सीमा को चुनौती देने वाली तीन रिट याचिकाओं को खारिज कर दिया है। याचिकाकर्ता डॉक्टरों ने तर्क दिया था कि राज्य सरकार द्वारा तय की गई उम्र सीमा राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (National Medical Commission – NMC) के दिशा-निर्देशों के खिलाफ है। लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार के नियमों को वैध मानते हुए कहा कि राज्य को यह अधिकार है कि वह NMC द्वारा तय न्यूनतम मानकों से कड़े नियम बना सकता है।
मामला बिहार सरकार की ओर से जारी एक विज्ञापन (Annexure-P/13) से जुड़ा था जिसमें सामान्य वर्ग के लिए अधिकतम उम्र सीमा 37 साल, पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के लिए 40 साल और अनुसूचित जाति/जनजाति (SC/ST) के लिए 42 साल तय की गई थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह सीमा NMC के 2022 के नियमों के विरुद्ध है, जिसमें कहा गया है कि सीनियर रेजिडेंट के पद पर प्रारंभिक नियुक्ति के समय उम्मीदवार की उम्र 45 साल से कम होनी चाहिए।
इसके अतिरिक्त, याचिकाकर्ताओं ने 2013 के नियमों में दिए गए एक प्रावधान (Rule 6(f)) पर भी आपत्ति जताई, जिसमें बिहार राज्य स्वास्थ्य सेवा में कार्यरत डॉक्टरों को 5 साल की उम्र में छूट दी गई है। उनका कहना था कि इससे SC/ST उम्मीदवारों को दोनों तरह की छूट मिलकर वे 45 साल से ऊपर की उम्र में भी नियुक्त हो सकते हैं, जो कि NMC के नियमों का उल्लंघन है।
हालांकि, हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि NMC के दिशा-निर्देश केवल न्यूनतम मानक तय करते हैं और राज्य सरकार यदि चाहे तो इससे कड़ा मापदंड तय कर सकती है। कोर्ट ने Dr. Nishant v. State of Bihar (2024), Dr. Spriha Smriti v. State of Bihar (2018) और Supreme Court द्वारा दिए गए Dr. Rajendra Chaudhary v. State of U.P. (2020) जैसे पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य की नीति वैध है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जो डॉक्टर पहले से ही सरकार की सेवा में हैं, उनके अनुभव को मान्यता देने के लिए उम्र में छूट देना पूरी तरह उचित है और यह भेदभाव नहीं माना जा सकता।
क्योंकि याचिकाकर्ता सरकारी सेवा में नहीं हैं और ना ही SC/ST वर्ग से संबंधित हैं, इसलिए उनका यह तर्क सिर्फ कल्पनात्मक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई वास्तविक नियुक्ति होती है और उससे किसी उम्मीदवार के अधिकार प्रभावित होते हैं, तो वही व्यक्ति इस मुद्दे को चुनौती दे सकता है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले का सीधा असर बिहार के मेडिकल सिस्टम पर पड़ेगा। यह निर्णय बताता है कि राज्य सरकार को अपने भर्ती नियम तय करने की स्वतंत्रता है, जब तक कि वह राष्ट्रीय मानकों से नीचे न जाए। इससे सरकार को योग्य और अनुभवशील डॉक्टरों की भर्ती में मदद मिलेगी, खासकर तब जब डॉक्टरों की भारी कमी है।
आम जनता के लिए भी यह निर्णय राहत लेकर आया है क्योंकि इससे भर्ती प्रक्रिया में देरी नहीं होगी और सरकारी मेडिकल कॉलेजों में डॉक्टरों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या बिहार सरकार की उम्र सीमा NMC के नियमों के खिलाफ है?
→ नहीं, राज्य सख्त मानक तय कर सकता है जब तक कि न्यूनतम मापदंड बने रहें। - क्या सरकारी सेवा में कार्यरत डॉक्टरों को उम्र में छूट देना गलत है?
→ नहीं, यह उनकी सेवा और अनुभव को मान्यता देने के लिए उचित नीति है। - क्या NMC की उम्र सीमा के उल्लंघन की आशंका पर पहले से ही याचिका दायर की जा सकती है?
→ नहीं, ऐसा मामला केवल किसी वास्तविक नियुक्ति के बाद ही उठाया जा सकता है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Dr. Spriha Smriti v. State of Bihar, L.P.A. No.1105 of 2017
- Dr. Nishant v. State of Bihar, C.W.J.C. No.6780 of 2024
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Dr. (Mrs.) Anupama Singh v. State of Bihar, C.W.J.C. No.7297 of 2017
- Md. Ali Muzaffar v. State of Bihar, 2012 (3) PLJR 419
- Dr. Rajendra Chaudhary v. State of U.P., (2020) 13 SCC 278
मामले का शीर्षक
डॉ. नीरज कुमार एवं अन्य बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
CWJC No. 17771 of 2024, CWJC No. 16484 of 2024, CWJC No. 16561 of 2024
उद्धरण (Citation)
2025 (1) PLJR 176
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन
माननीय न्यायमूर्ति नानी टागिया
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री जगजीत रोशन, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता (CWJC No. 17771 व 16561)
- श्री अंजनी कुमार, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता (CWJC No. 16484)
- श्री पी. के. शाही, महाधिवक्ता — प्रतिवादी
- श्री प्रसून सिन्हा, अधिवक्ता — BCECEB बोर्ड
- श्री मितिलेश कुमार पांडेय, सहायक अधिवक्ता — प्रतिवादी
निर्णय का लिंक
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