पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में एक सामाजिक संस्था को बिना किसी कारण बताए और बिना नोटिस के ब्लैकलिस्ट करने के सरकारी आदेश को अवैध घोषित कर दिया। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि इस प्रकार की कार्यवाही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है और संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है।
यह मामला पश्चिम चंपारण जिले की एक पंजीकृत संस्था — दौली शिक्षा सह समाज कल्याण संस्थान — से जुड़ा था। 20 नवंबर 2019 को हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित एक खबर के माध्यम से जिला कल्याण पदाधिकारी ने इस संस्था को ब्लैकलिस्ट कर दिया। संस्था को न तो कोई कारण बताकर नोटिस दिया गया और न ही सफाई का मौका।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से आग्रह किया कि यह आदेश अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (संघ बनाने की स्वतंत्रता) और अनुच्छेद 21 (जीवन और आजीविका का अधिकार) का उल्लंघन है। उन्होंने अखबार में प्रकाशित ब्लैकलिस्टिंग को रद्द करने, संस्था का नाम सूची से हटाने, जिम्मेदार पदाधिकारी पर जाँच और मुआवजा दिलाने की मांग की।
माननीय न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी और माननीय न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि ब्लैकलिस्टिंग जैसा कठोर निर्णय बिना नोटिस और बिना सुनवाई के नहीं लिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के दो प्रमुख फैसलों — Isolators and Isolators बनाम MP Madhya Kshetra Vidyut Vitran Co. Ltd. और UMC Technologies Pvt. Ltd. बनाम Food Corporation of India — का हवाला देते हुए कोर्ट ने निर्णय सुनाया।
कोर्ट ने दिनांक 20.11.2019 को जारी ब्लैकलिस्टिंग आदेश को रद्द कर दिया और आदेश दिया कि यदि प्रशासन इस प्रक्रिया को दोबारा शुरू करना चाहता है, तो पहले चार महीने के भीतर विस्तृत शो-कॉज नोटिस जारी करे। याचिकाकर्ता को जवाब देने का पूरा मौका दिया जाए, और सभी पक्षों की बात सुनने के बाद ही कोई अंतिम निर्णय लिया जाए।
यह निर्णय प्रशासनिक मनमानी के विरुद्ध एक मजबूत संदेश देता है कि कोई भी संस्था या व्यक्ति बिना कारण बताए और बिना सुनवाई के दंडित नहीं किया जा सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला गैर-सरकारी संगठनों, सेवा प्रदाताओं और सरकारी निविदाओं में भाग लेने वालों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यह साबित करता है कि सरकार या प्रशासनिक अधिकारी जब तक विधिक प्रक्रिया का पालन नहीं करते, तब तक किसी संस्था को दंडित नहीं कर सकते।
जिला स्तर पर कार्यरत अधिकारियों के लिए यह निर्णय चेतावनी है कि वे कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी करके अखबारों या अन्य माध्यमों से किसी को ब्लैकलिस्ट नहीं कर सकते। यह संस्था या व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आजीविका से जुड़ा मामला होता है।
साथ ही, यह फैसला अन्य संस्थाओं को भी अधिकार देता है कि यदि उन्हें इसी तरह से बिना नोटिस ब्लैकलिस्ट किया गया हो, तो वे न्यायालय का सहारा ले सकते हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या किसी संस्था को बिना शो-कॉज नोटिस के ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
✔ नहीं, कोर्ट ने इसे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन माना। - क्या अखबार में प्रकाशित सूचना को नोटिस मानकर संस्था को दंडित किया जा सकता है?
✔ नहीं, कोर्ट ने इसे अवैध और अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया। - क्या ब्लैकलिस्टिंग से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है?
✔ हाँ, प्रशासन को तय प्रक्रिया और कानूनी मानदंडों का पालन करना होगा।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Isolators and Isolators बनाम MP Madhya Kshetra Vidyut Vitran Co. Ltd. [2023 SCC OnLine SC 444]
- UMC Technologies Pvt. Ltd. बनाम Food Corporation of India [(2021) 2 SCC 551]
मामले का शीर्षक
Dauli Shiksha Sah Samaj Kalyan Sansthan बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 4874 of 2020 (साथ में CWJC Nos. 6999 of 2021 और 1939 of 2020)
उद्धरण (Citation)
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न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री सुरेन्द्र कुमार सिंह — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री एस. के. मंडल (SC-3), श्री बिपिन कुमार, श्रीमती नीलम कुमारी — प्रतिवादियों की ओर से
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