बिना सुनवाई के ब्लैकलिस्ट करने पर पटना हाई कोर्ट ने दी राहत: कृषि सहकारी संस्था का नाम रद्द करने का आदेश रद्द

बिना सुनवाई के ब्लैकलिस्ट करने पर पटना हाई कोर्ट ने दी राहत: कृषि सहकारी संस्था का नाम रद्द करने का आदेश रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक बहु-राज्यीय कृषि सहकारी संस्था के पक्ष में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। यह संस्था राष्ट्रीय उपभोक्ता सहकारी संघ (NCCF) की सदस्य थी और उसे सरकार की मूल्य स्थिरीकरण निधि (Price Stabilization Fund – PSF) योजना के तहत खाद्यान्न की खरीद और विपणन का जिम्मा सौंपा गया था।

संस्था ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर किसानों से गेहूं खरीदा था और उसे भारतीय खाद्य निगम (FCI) में जमा करना था। लेकिन NCCF को बाद में संदेह हुआ कि कुछ एजेंसियों ने गेहूं को FCI में जमा नहीं किया है, जो कि योजना की शर्तों का उल्लंघन था।

बिना किसी विशेष नोटिस या चेतावनी के, NCCF ने 14.08.2024 को एक आदेश पारित किया, जिसमें संस्था की सदस्यता रद्द कर दी गई और उसे अनिश्चितकालीन अवधि के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया गया। इससे संस्था भविष्य में NCCF से किसी प्रकार का व्यापार नहीं कर सकती थी।

संस्था ने इस आदेश को अदालत में चुनौती दी और कहा कि:

  • उन्हें कोई स्पष्ट नोटिस नहीं दिया गया।
  • NCCF द्वारा जारी की गई सूचनाएं केवल सामान्य परामर्श (advisory) थीं, किसी एक संस्था को लक्षित नहीं किया गया था।
  • ब्लैकलिस्टिंग का आदेश अनिश्चितकाल के लिए दिया गया जो कानूनन गलत है।

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि:

  • किसी संस्था को ब्लैकलिस्ट करने से पहले उसे स्पष्ट कारणों के साथ नोटिस देना अनिवार्य है।
  • बिना सुनवाई के लिया गया निर्णय प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
  • अनिश्चितकालीन ब्लैकलिस्टिंग कानूनन मान्य नहीं है।
  • NCCF जैसे संगठन, जो सरकारी योजनाओं में भागीदारी करते हैं, वे संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत ‘राज्य’ की श्रेणी में आते हैं और इन पर भी समान कानूनी जिम्मेदारियाँ लागू होती हैं।

अदालत ने यह भी कहा कि संस्था को ब्लैकलिस्ट करना उसके व्यावसायिक अस्तित्व को समाप्त करने जैसा है — यह एक प्रकार की “सिविल डेथ” है, जो अन्य सहकारी संस्थाओं के साथ उसके व्यापार को भी प्रभावित करेगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

इस निर्णय का प्रभाव न केवल सहकारी संस्थाओं पर पड़ेगा, बल्कि उन सभी एजेंसियों पर पड़ेगा जो सरकारी योजनाओं के तहत काम कर रही हैं। यह फैसला सुनिश्चित करता है कि:

  • किसी एजेंसी को सजा देने से पहले उचित प्रक्रिया अपनाना जरूरी है।
  • ब्लैकलिस्टिंग जैसे कड़े कदम केवल ठोस कारणों और सीमित अवधि के साथ ही लिए जा सकते हैं।
  • सहकारी निकायों को भी कानूनी और संवैधानिक प्रक्रियाओं का पालन करना होगा, खासकर जब वे सार्वजनिक योजनाओं में भागीदारी कर रहे हों।

यह फैसला न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और एजेंसियों के अधिकारों की सुरक्षा को मजबूती देता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या NCCF जैसे सहकारी निकाय अनुच्छेद 12 के अंतर्गत ‘राज्य’ की श्रेणी में आते हैं?
    ✔ हाँ, क्योंकि वे सरकारी योजनाओं के अंतर्गत सार्वजनिक कार्य कर रहे हैं।
  • क्या बिना पूर्व सूचना के सदस्यता रद्द करना और ब्लैकलिस्ट करना वैध है?
    ❌ नहीं, यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
  • क्या किसी संस्था को अनिश्चितकाल के लिए ब्लैकलिस्ट किया जा सकता है?
    ❌ नहीं, ऐसा करना कानून और न्याय दोनों के खिलाफ है।
  • अदालत ने क्या राहत दी?
    ✔ 14.08.2024 का आदेश रद्द किया गया।
    ✔ NCCF को निर्देश दिया गया कि वह संस्था को स्पष्ट नोटिस जारी करे, आरोप बताए और उत्तर प्राप्त कर नया निर्णय ले — चार सप्ताह के भीतर।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Gorkha Security Services बनाम Government (NCT of Delhi) and Others, (2014) 9 SCC 109 — जिसमें कहा गया कि ब्लैकलिस्ट करने से पहले स्पष्ट और उद्देश्यपूर्ण नोटिस देना जरूरी है।

मामले का शीर्षक
Sonartari Multi-State Agro Cooperative Society Ltd. बनाम भारत सरकार एवं अन्य

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14271 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अंसुल, वरिष्ठ अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
सुश्री आस्था अनन्या, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अमित नारायण, अधिवक्ता — प्रतिवादियों की ओर से

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/65fcc5be-bd17-4da6-86ce-de8fb86a0065.pdf&search=Blacklisting

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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