हाल ही में पटना उच्च न्यायालय ने एक याचिका को खारिज कर दिया जिसमें बिहार सरकार द्वारा जारी ब्लैकलिस्टिंग नीति को चुनौती दी गई थी। अदालत ने स्पष्ट किया कि जब तक किसी व्यक्ति को वास्तव में ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया है, तब तक केवल नीति के आधार पर कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इस मामले में याचिकाकर्ता ने सड़क निर्माण विभाग द्वारा दिनांक 18.06.2015 को जारी आदेश संख्या 154 और जल संसाधन विभाग द्वारा 17.12.2015 को जारी मेमो संख्या 909 को चुनौती दी थी। इन आदेशों में भ्रष्ट आचरण की नई परिभाषा दी गई थी और अलग-अलग अवधि के लिए ब्लैकलिस्ट करने का प्रावधान था। याचिकाकर्ता का कहना था कि ये आदेश कानून के किसी भी प्रावधान पर आधारित नहीं हैं और सरकारी टेंडर से जुड़े मानक नियमों के खिलाफ हैं। उन्होंने कोर्ट से अनुरोध किया था कि इन आदेशों को अवैध घोषित किया जाए और इनकी प्रभावशीलता पर रोक लगाई जाए। लेकिन माननीय न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता को अभी तक ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया है। इसलिए उनकी याचिका अभी के लिए “premature” यानी समय से पहले है, और किसी प्रकार की कानूनी हानि नहीं हुई है जिसे चुनौती दी जा सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब याचिकाकर्ता को वास्तव में ब्लैकलिस्ट किया जाएगा, तभी वह इस नीति की वैधता को अदालत में चुनौती देने के योग्य होंगी। अभी केवल संभावित हानि के आधार पर कोर्ट नीति को रद्द नहीं कर सकता। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि केवल नीति से असहमति या आशंका के आधार पर अदालत में याचिका नहीं डाली जा सकती। इसके लिए वास्तविक हानि या अधिकारों का उल्लंघन होना आवश्यक है।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला सरकारी ठेकेदारों और निविदा में भाग लेने वाले लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह बताता है कि जब तक किसी पर वास्तव में कोई कार्रवाई नहीं होती, तब तक सिर्फ संभावित प्रभाव के आधार पर अदालत में याचिका डालना उचित नहीं है। सरकारी विभागों के लिए यह निर्णय यह भी स्पष्ट करता है कि वे नीति बना सकते हैं, लेकिन जब उन नीतियों को लागू किया जाएगा, तभी उन्हें कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। आम लोगों और भविष्य के याचिकाकर्ताओं के लिए यह एक सीख है कि अदालतें केवल सैद्धांतिक या कल्पना आधारित मुद्दों पर समय बर्बाद नहीं करतीं, बल्कि असली और ठोस विवादों पर ही निर्णय देती हैं।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या सरकार की ब्लैकलिस्टिंग नीति को उसके लागू होने से पहले ही चुनौती दी जा सकती है? ✔ नहीं, कोर्ट ने कहा कि याचिका समय से पहले है क्योंकि याचिकाकर्ता को ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया है।
- क्या दिनांक 18.06.2015 और 17.12.2015 के आदेशों को अवैध घोषित किया जा सकता है? ✔ नहीं, कोर्ट ने कहा कि यह नीति तब ही चुनौती दी जा सकती है जब उसका उपयोग करके किसी व्यक्ति को हानि पहुंचाई जाए।
मामले का शीर्षक
Neha Singh बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 4823 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति जितेन्द्र कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री प्रभात रंजन — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री पी. के. शाही (एडवोकेट जनरल) — प्रतिवादियों की ओर से
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