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“पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: बैंक ऋण पुनर्संरचना अनिवार्य नहीं, याचिका खारिज”

 

यह मामला M/s Maksi Agro Cool Chains Pvt. Ltd. बनाम यूनियन बैंक ऑफ इंडिया से संबंधित है। इसमें याचिकाकर्ता ने अपने ऋण (लोन) की पुनर्संरचना (Restructuring) की माँग की थी, जिसे बैंक ने अस्वीकार कर दिया था। याचिकाकर्ता का दावा था कि भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 01 जनवरी 2019 को जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार, बैंक को उनकी पुनर्संरचना याचिका स्वीकार करनी चाहिए थी। लेकिन बैंक ने 10 फरवरी 2020 को उनके आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ यह याचिका दायर की गई थी।


मामले की पृष्ठभूमि

M/s Maksi Agro Cool Chains Pvt. Ltd. को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया द्वारा टर्म लोन और कैश क्रेडिट सुविधा दी गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि बैंक ने पूंजी की अपर्याप्त स्वीकृति और वितरण में देरी की, जिसके कारण उनकी कंपनी वित्तीय संकट में आ गई और लोन चुकाने में असमर्थ हो गई।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि RBI के 2019 के दिशा-निर्देश के अनुसार, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिए पुनर्संरचना की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए थी। इसलिए, बैंक को उनका ऋण पुनर्गठित करना चाहिए था।

लेकिन बैंक ने याचिकाकर्ता की पुनर्संरचना याचिका को अस्वीकार कर दिया और इसके बजाय, SARFAESI अधिनियम, 2002 के तहत ऋण वसूली की कार्यवाही (Loan Recovery Proceedings) शुरू कर दी।

याचिकाकर्ता ने इस फैसले को Debt Recovery Tribunal (DRT), पटना में चुनौती दी, जहाँ उनकी याचिका को आंशिक रूप से स्वीकृत किया गया।


याचिकाकर्ता के मुख्य तर्क

  1. RBI के नियमों का पालन नहीं किया गया – याचिकाकर्ता ने कहा कि बैंक RBI के 01 जनवरी 2019 के निर्देशों के अनुसार पुनर्संरचना करने के लिए बाध्य था।
  2. बैंक की लापरवाही – बैंक ने कार्यशील पूंजी (Working Capital) समय पर नहीं दी, जिससे कंपनी आर्थिक संकट में आ गई।
  3. ऋण पुनर्गठन का अधिकार – चूंकि कंपनी एक MSME थी, इसलिए उसे पुनर्गठन की सुविधा मिलनी चाहिए थी।
  4. DRT का निर्णय – DRT ने वसूली कार्यवाही को 29 सितंबर 2021 को अवैध ठहराया था, इसलिए बैंक को पुनः पुनर्संरचना पर विचार करना चाहिए था।

बैंक (Union Bank of India) का पक्ष

  1. SARFAESI अधिनियम के तहत कार्यवाही वैध थी – बैंक ने कहा कि 17 जून 2019 को उन्होंने SARFAESI अधिनियम के तहत कानूनी कार्यवाही शुरू कर दी थी।
  2. RBI के दिशा-निर्देशों की सीमाएँ
    • पुनर्संरचना का लाभ तभी मिल सकता है जब सभी शर्तें पूरी हों।
    • जब एक खाते के खिलाफ ऋण वसूली की कार्यवाही शुरू हो चुकी हो, तब पुनर्संरचना का लाभ नहीं दिया जा सकता।
  3. पुनर्संरचना बैंक के विवेक पर निर्भर है – यह कोई कानूनी अधिकार नहीं है, बल्कि बैंक की वित्तीय स्थिति और ग्राहक के रिकॉर्ड पर निर्भर करता है।
  4. ऋण पुनर्संरचना कोई मौलिक अधिकार नहीं है – बैंक को प्रत्येक ग्राहक की वित्तीय स्थिति, कारोबार की संभावना और गिरवी रखी गई संपत्ति की स्थिति को देखकर निर्णय लेना होता है।

न्यायालय का निर्णय

  1. ऋण पुनर्संरचना बैंक का विशेषाधिकार है, कानूनी बाध्यता नहीं

    • बैंक को विवेकाधिकार है कि वह पुनर्संरचना करे या नहीं।
    • सिर्फ RBI के निर्देशों का हवाला देकर पुनर्संरचना की माँग नहीं की जा सकती
    • पुनर्संरचना तभी संभव होती है जब बैंक को विश्वास हो कि कंपनी पुनः आर्थिक रूप से सक्षम हो सकती है।
  2. SARFAESI अधिनियम के तहत कार्यवाही पहले से चल रही थी

    • याचिकाकर्ता का खाता पहले ही NPA घोषित हो चुका था।
    • बैंक ने 17 जून 2019 को SARFAESI प्रक्रिया शुरू कर दी थी।
    • जब वसूली की प्रक्रिया चल रही हो, तब पुनर्संरचना की माँग नहीं की जा सकती।
  3. DRT का फैसला पुनर्संरचना का आधार नहीं बन सकता

    • DRT ने 29 सितंबर 2021 को यह माना कि बैंक की कार्यवाही त्रुटिपूर्ण थी, लेकिन इससे पुनर्संरचना का स्वतः अधिकार नहीं मिल जाता।
    • याचिकाकर्ता को DRT या किसी अन्य सिविल कोर्ट में कानूनी उपायों के लिए जाना चाहिए।
  4. न्यायालय ने याचिका को “लक्ज़री मुकदमेबाजी” करार दिया

    • कोर्ट ने कहा कि यह याचिका बिना किसी ठोस कानूनी आधार के दायर की गई थी
    • यह केवल बैंक को दबाव में लाने और समय बर्बाद करने के लिए दायर की गई प्रतीत होती है।
  5. कोर्ट ने ₹2000 का जुर्माना लगाया

    • याचिकाकर्ता को पटना उच्च न्यायालय कानूनी सेवा प्राधिकरण (Patna High Court Legal Services Authority) में ₹2000 का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया
    • यह निर्णय “अनावश्यक कानूनी मुकदमेबाजी” को रोकने के लिए लिया गया।

इस फैसले के प्रभाव

  • बैंकों की स्वतंत्रता बरकरार – यह स्पष्ट हो गया कि ऋण पुनर्संरचना का निर्णय बैंक के विवेकाधिकार में रहेगा।
  • MSME सेक्टर के लिए स्पष्ट संदेश – यदि किसी MSME के खिलाफ SARFAESI अधिनियम के तहत कार्यवाही चल रही है, तो वह पुनर्संरचना का दावा नहीं कर सकता।
  • अवांछित कानूनी मुकदमों पर रोक – कोर्ट ने अनावश्यक याचिकाओं को हतोत्साहित करने के लिए जुर्माना लगाया।
  • बैंकिंग प्रणाली को सुदृढ़ करने की दिशा में कदम – यह फैसला बैंकों को अधिक आत्मनिर्भर और वित्तीय रूप से सुरक्षित बनाता है।

निष्कर्ष

पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट कर दिया कि बैंक ऋण पुनर्संरचना के लिए बाध्य नहीं होते, बल्कि यह उनके विवेक और ग्राहक की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है। जब SARFAESI अधिनियम के तहत वसूली प्रक्रिया पहले से चल रही हो, तब पुनर्संरचना की माँग का कोई आधार नहीं होता

इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि बिना मजबूत कानूनी आधार के बैंकिंग मामलों में मुकदमेबाजी करना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग माना जाएगा। इस तरह की याचिकाओं से बैंकों के कामकाज में बाधा आती है, जिसे अदालत ने अस्वीकार्य बताया और याचिकाकर्ता पर ₹2000 का जुर्माना लगाया

पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzg2MyMyMDIxIzEjTg==-5eCQG67j4Is=

 

Abhishek Kumar

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