परिचय
यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दायर की गई एक सिविल रिट याचिका (CWJC No. 10986/2021) से संबंधित है, जिसमें अमित कुमार अग्रवाल, सुनील शर्मा और मुकेश कुमार हिस्सारिया नामक याचिकाकर्ताओं ने थैलेसीमिया से पीड़ित मरीजों के लिए चिकित्सा सुविधाओं में सुधार और उनकी देखभाल के लिए सरकार को जवाबदेह ठहराने की माँग की थी।
याचिका में थैलेसीमिया मरीजों के इलाज में गंभीर लापरवाही, रक्त की अनुपलब्धता, और आवश्यक दवाओं के अभाव का मुद्दा उठाया गया था। साथ ही, सरकारी अस्पतालों में जरूरी सुविधाओं की कमी और ब्लड की कालाबाजारी पर भी सवाल उठाए गए।
मामले की पृष्ठभूमि
थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त विकार है, जिसमें शरीर पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बना पाता। इससे मरीजों को नियमित रक्त संक्रमण (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) की जरूरत होती है। अगर सही समय पर इलाज न मिले, तो यह घातक हो सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य:
- भारत में 25% थैलेसीमिया के मरीज बिहार और उत्तर प्रदेश से आते हैं।
- पांच वर्षीय योजना (2012-17) में थैलेसीमिया को गंभीर बीमारी माना गया था।
- 2016 में इसे ‘द राइट्स ऑफ पर्सन्स विद डिसएबिलिटीज़ एक्ट’ के तहत एक विकलांगता के रूप में मान्यता दी गई।
मुख्य मुद्दे और याचिकाकर्ताओं के तर्क
याचिकाकर्ताओं ने सात वास्तविक मामलों का हवाला दिया, जिनमें रक्त और आवश्यक चिकित्सा सुविधाओं की कमी के कारण पांच मासूम बच्चों की मौत हो गई। इनमें शामिल थे:
- सोनू कुमार (9 वर्ष) – पूर्णिया, बिहार
- दिवाकर कुमार (2.5 वर्ष) – पूर्णिया, बिहार
- शिवम कुमार (5 वर्ष) – पूर्णिया, बिहार
- क़मर परवीन (6 वर्ष) – पूर्णिया, बिहार
- साहिल (3 वर्ष) – पूर्णिया, बिहार
इसके अलावा, मुज़फ्फरपुर के शुभम (7 वर्ष) और मोहम्मद तल्हा तनवीर (3 वर्ष) अभी भी बीमारी से जूझ रहे हैं।
याचिकाकर्ताओं की माँगें:
- सरकार थैलेसीमिया मरीजों के लिए ब्लड बैंक, दवाएं, और आवश्यक उपचार उपलब्ध कराए।
- थैलेसीमिया डे-केयर सेंटर (TDCC) स्थापित किए जाएं ताकि ब्लड ट्रांसफ्यूजन से होने वाले आयरन ओवरलोड को रोका जा सके।
- अस्पतालों में जरूरी फिल्टर और दवाएं उपलब्ध कराई जाएं।
- ब्लड की कालाबाजारी पर रोक लगाई जाए।
- सरकार मृतक बच्चों के परिवारों को उचित मुआवजा दे।
राज्य सरकार की दलील
बिहार सरकार ने जवाब में कहा कि वे पहले से ही कई कदम उठा रहे हैं, जैसे:
- थैलेसीमिया जागरूकता अभियान और स्कूलों में स्क्रीनिंग।
- गर्भवती महिलाओं की थैलेसीमिया जांच।
- प्रसवपूर्व निदान केंद्र (Prenatal Diagnosis Centres) की स्थापना।
- पटना, मुजफ्फरपुर, गया, भागलपुर और पूर्णिया में ‘इंटीग्रेटेड सेंटर फॉर हीमोग्लोबिनोपैथीज एंड हीमोफीलिया’ का निर्माण।
- 98 ब्लड बैंक कार्यरत हैं, लेकिन शिवहर और सुपौल में अभी तक ब्लड बैंक नहीं हैं।
- थैलेसीमिया मरीजों के लिए ऑनलाइन पोर्टल (thalassemiaregistry.bihar.gov.in) शुरू किया गया है।
अदालत का अवलोकन और ऐतिहासिक फैसला
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथ्री की खंडपीठ ने कहा:
- स्वास्थ्य एक मौलिक अधिकार है और सरकार की जिम्मेदारी है कि वह थैलेसीमिया मरीजों को आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराए।
- रक्त की अनुपलब्धता को बहाना बनाकर सरकार अपनी जिम्मेदारी से नहीं बच सकती।
- पांच बच्चों की मौत सरकार की विफलता दर्शाती है।
- सरकार को मृतक बच्चों के परिवारों को उचित मुआवजा देना चाहिए।
अदालत द्वारा दिए गए निर्देश
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स्वतंत्र चिकित्सीय समिति गठित करने का आदेश दिया गया, जिसमें AIIMS पटना और पारस अस्पताल के विशेषज्ञ शामिल होंगे।
- यह समिति बिहार के सभी अस्पतालों का निरीक्षण करेगी और उनकी सुविधाओं की स्थिति की रिपोर्ट देगी।
- यह समिति मृतक बच्चों के परिवारों के लिए मुआवजे की सिफारिश भी करेगी।
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सरकार को यह सुनिश्चित करने का आदेश कि:
- ब्लड बैंक हर जिले में हों, खासकर शिवहर और सुपौल में।
- थैलेसीमिया मरीजों के लिए सरकारी मदद उपलब्ध हो।
- मरीजों को मुफ्त या सस्ती दरों पर दवाएं और ब्लड ट्रांसफ्यूजन उपलब्ध कराए जाएं।
- प्रत्येक जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए, जो थैलेसीमिया मरीजों की ज़रूरतों की देखभाल करेगा।
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मृतक बच्चों के परिवारों को उचित मुआवजा देने का निर्देश।
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सरकार को भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए व्यापक नीति तैयार करने का आदेश।
महत्वपूर्ण प्रश्न:
- क्या यह फैसला थैलेसीमिया मरीजों की स्थिति सुधारने में मदद करेगा?
- सरकार को ब्लड बैंक और चिकित्सा सुविधाओं की स्थापना में तेजी लानी चाहिए?
- क्या बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति में सुधार की जरूरत है?
- क्या थैलेसीमिया जैसी बीमारियों के लिए मुफ्त इलाज जरूरी होना चाहिए?
निष्कर्ष
यह मामला स्वास्थ्य के मौलिक अधिकार, सरकारी जवाबदेही और थैलेसीमिया मरीजों के प्रति संवेदनशीलता को उजागर करता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि सरकार को ब्लड और दवाओं की अनुपलब्धता का बहाना नहीं बनाना चाहिए और हर मरीज को उचित इलाज मिलना चाहिए।
यह फैसला थैलेसीमिया मरीजों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है और भविष्य में अन्य बीमारियों से पीड़ित लोगों को भी न्याय दिलाने में सहायक हो सकता है।
पूरा
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTA5ODYjMjAyMSMxI04=-OfTVmFkasis=