यह मामला पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिवीजन संख्या 172/2018 से संबंधित है, जिसमें किरायेदार दिलीप कुमार अग्रवाल ने मकान मालिक के खिलाफ एक आदेश को चुनौती दी थी। यह मामला किरायेदारी विवाद से संबंधित है, जहां मकान मालिक डॉ. प्रवीन चंद्र ने किरायेदार को दुकान खाली करने के लिए नोटिस भेजा था, यह दावा करते हुए कि उन्हें व्यक्तिगत जरूरतों के लिए संपत्ति की आवश्यकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
- वादी (मकान मालिक) ने यह संपत्ति 2005 में खरीदी और 2008 में पारिवारिक समझौते के तहत उनके नाम दर्ज हुई।
- वादी और उनकी पत्नी डॉक्टर हैं, और वे इस दुकान का उपयोग एक मेडिकल क्लिनिक खोलने के लिए करना चाहते थे।
- प्रतिवादी (किरायेदार) ने दलील दी कि यह दुकान मेडिकल क्लिनिक के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि यह भीड़भाड़ और शोरगुल वाले क्षेत्र में स्थित है।
अदालत में प्रस्तुत तर्क
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वादी (मकान मालिक) का पक्ष:
- दुकान उनके व्यक्तिगत उपयोग के लिए आवश्यक है।
- उन्होंने पहले ही किराए के स्थान पर क्लिनिक खोला है, लेकिन यह उनकी जरूरतों को पूरा नहीं करता।
- संपत्ति उनके नाम पर विधिवत दर्ज है और उन्हें इसका उपयोग करने का पूरा अधिकार है।
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प्रतिवादी (किरायेदार) का पक्ष:
- मकान मालिक का दावा सच्चा नहीं है और यह केवल किराएदार को हटाकर अधिक किराए पर देने की योजना का हिस्सा है।
- उन्होंने यह भी दावा किया कि मकान मालिक के पास अन्य संपत्तियाँ हैं जो क्लिनिक के लिए बेहतर अनुकूल हैं।
- उन्होंने यह तर्क दिया कि अदालत को मकान मालिक पर अपनी पसंद की संपत्ति थोपने का अधिकार नहीं है।
अदालत का फैसला
- ट्रायल कोर्ट ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया, यह मानते हुए कि उनकी आवश्यकता वास्तविक और उचित है।
- मकान मालिक यह तय करने के लिए स्वतंत्र है कि वे अपनी कौन सी संपत्ति का उपयोग करना चाहते हैं।
- किरायेदार की यह दलील कि अन्य संपत्तियाँ अधिक उपयुक्त हैं, स्वीकार नहीं की गई।
- उच्च न्यायालय ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए सिविल रिवीजन को खारिज कर दिया।
निष्कर्ष
यह मामला यह स्पष्ट करता है कि मकान मालिक को अपनी संपत्ति के उपयोग के लिए कानूनी अधिकार प्राप्त है, और किरायेदार को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि मकान मालिक अपनी किस संपत्ति का उपयोग करे। अदालत ने मकान मालिक की आवश्यकता को वास्तविक मानते हुए किरायेदार की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी।
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