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“अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के अधिकार: पटना हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला – शिक्षक चयन में विश्वविद्यालय की सीमित भूमिका”

 

एस.एम. जहीर आलम टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज बनाम राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा परिषद (NCTE) और अन्य मामला

मामले का परिचय:
यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका है, जिसमें एस.एम. जहीर आलम टीचर्स ट्रेनिंग कॉलेज ने विश्वविद्यालय के एक पत्र को चुनौती दी। इस पत्र में विश्वविद्यालय ने कॉलेज द्वारा प्रस्तुत शिक्षकों की सूची पर काउंटर साइन करने से मना कर दिया था और यह जानने की मांग की थी कि शिक्षकों का चयन बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 की धारा 57B के तहत गठित चयन समिति द्वारा किया गया है या नहीं।

मामले की पृष्ठभूमि:

  • याचिकाकर्ता संस्थान अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित किया गया था और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग द्वारा 16 अगस्त 2016 को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त थी।
  • राज्य सरकार ने 29 सितंबर 1994 को संस्थान की स्थापना के लिए स्थायी स्वीकृति प्रदान की थी। इसमें यह प्रावधान था कि सुप्रीम कोर्ट के सेंट स्टीफन्स कॉलेज केस के अनुसार 50% सीटें राज्य सरकार की आरक्षण नीति के अनुसार और शेष 50% सीटें कॉलेज द्वारा अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों के लिए भरी जाएंगी।
  • NCTE ने संस्थान को B.Ed. कोर्स चलाने की मान्यता दी थी।

मुख्य मुद्दे:

  1. क्या विश्वविद्यालय का यह कदम अल्पसंख्यक संस्थान के प्रबंधन के अधिकारों का उल्लंघन है?
  2. क्या विश्वविद्यालय चयन समिति के गठन के बारे में जानकारी मांग सकता है?
  3. अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के प्रशासनिक अधिकारों की सीमा क्या है?

याचिकाकर्ता का पक्ष:

  • विश्वविद्यालय का यह कदम गैरकानूनी है क्योंकि वे संस्थान के प्रबंधन और संचालन में हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
  • विश्वविद्यालय नियमन कर सकता है लेकिन प्रबंधन की गतिविधियों को नियंत्रित नहीं कर सकता।
  • शिक्षकों के चयन के लिए चयन समिति के गठन के बारे में जानकारी मांगना अल्पसंख्यक संस्थान के अधिकारों का उल्लंघन है।

विश्वविद्यालय का पक्ष:

  • उनके पास शिक्षकों के चयन की प्रक्रिया के बारे में जानकारी मांगने का अधिकार है।
  • अल्पसंख्यक संस्थानों को बिना किसी नियंत्रण के काम करने की छूट नहीं है।
  • शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने के लिए नियमन आवश्यक है।

न्यायालय का निर्णय:
पटना हाईकोर्ट ने निम्नलिखित महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं:

  1. संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार है।
  2. प्रशासन के अधिकार में शिक्षकों, प्रधानाचार्य और कर्मचारियों का चयन और नियुक्ति शामिल है।
  3. सरकार केवल यह सुनिश्चित कर सकती है कि:
    • नियुक्त व्यक्तियों की नियुक्ति कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए की गई है
    • नियुक्त व्यक्तियों के पास विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित योग्यता है
  4. विश्वविद्यालय का पत्र संशोधित किया जाता है। अब संस्थान को केवल यह दिखाना होगा कि:
    • चयन समिति के सदस्यों के पास आवश्यक योग्यता थी
    • चयनित शिक्षकों के पास आवश्यक योग्यता है

महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत:

  1. अल्पसंख्यक संस्थानों के प्रशासन में नियंत्रण और नियमन में अंतर है:
    • विश्वविद्यालय नियमन कर सकता है
    • लेकिन प्रबंधन की गतिविधियों को नियंत्रित नहीं कर सकता
  2. प्रशासन का अधिकार चार प्रमुख बातों से जुड़ा है:
    • प्रबंधन या शासी निकाय का चयन
    • शिक्षकों का चयन
    • छात्रों के प्रवेश पर निर्णय
    • अपनी संपत्ति और संसाधनों का उपयोग
  3. प्रशासन का अधिकार कुप्रशासन का अधिकार नहीं है:
    • स्वायत्तता का अर्थ है प्रभावी प्रशासन का अधिकार
    • विश्वविद्यालय कुप्रशासन की जांच कर सकता है
    • कुप्रशासन की स्थिति में सुधारात्मक कदम उठा सकता है

निर्णय का महत्व:

  1. यह निर्णय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों के अधिकारों और स्वायत्तता को स्पष्ट करता है।
  2. यह नियामक प्राधिकरणों और अल्पसंख्यक संस्थानों के बीच संतुलन स्थापित करता है:
    • एक ओर अल्पसंख्यक संस्थानों की स्वायत्तता की रक्षा करता है
    • दूसरी ओर शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने की आवश्यकता को मान्यता देता है
  3. यह स्पष्ट करता है कि:
    • नियमन आवश्यक है लेकिन यह हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए
    • शैक्षणिक मानकों की निगरानी की जा सकती है
    • लेकिन प्रबंधन के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता

निष्कर्ष:
यह निर्णय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों और नियामक प्राधिकरणों के अधिकारों के बीच एक महत्वपूर्ण संतुलन स्थापित करता है। यह स्पष्ट करता है कि जहां अल्पसंख्यक संस्थानों को अपने प्रशासन में स्वायत्तता का अधिकार है, वहीं शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने के लिए उचित नियमन आवश्यक है। यह फैसला भविष्य में इस तरह के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण न्यायिक उदाहरण के रूप में काम करेगा।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTAyODMjMjAxOSMxI04=-J–am1–ZbJFuocVA=

Abhishek Kumar

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