मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला पटना उच्च न्यायालय में सिविल रिट याचिका संख्या 20851/2021 से संबंधित है, जिसे विनय कुमार पाठक (याचिकाकर्ता) ने दायर किया था। मामला बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 के तहत उनकी Apache मोटरसाइकिल (BR30V 2027) की जब्ती से जुड़ा था, जिसे सीतामढ़ी जिले के नानपुर पुलिस स्टेशन ने शराब से संबंधित एक मामले में ज़ब्त कर लिया था।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय से मांग की कि उनकी मोटरसाइकिल को रिहा किया जाए और सरकार को निर्देश दिया जाए कि बिना ठोस आधार के वाहन जब्त न किए जाएं।
याचिकाकर्ता की मुख्य मांगें
- याचिकाकर्ता की मोटरसाइकिल (Apache BR30V 2027) को रिहा किया जाए, क्योंकि वह किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल नहीं थे।
- न्यायालय सरकार को निर्देश दे कि वाहन जब्ती की प्रक्रिया निष्पक्ष और कानूनी ढंग से की जाए।
- यदि सरकार वाहन जब्त करती है, तो उसे एक निश्चित समय-सीमा में कानूनी कार्रवाई पूरी करनी चाहिए ताकि वाहन मालिक को अनावश्यक नुकसान न हो।
सरकारी पक्ष का तर्क
बिहार सरकार ने बिहार निषेध एवं उत्पाद अधिनियम, 2016 का हवाला देते हुए दलील दी कि:
- शराब निषेध कानून के तहत किसी भी वाहन को जब्त किया जा सकता है, यदि वह शराब के अवैध परिवहन, बिक्री, या भंडारण में शामिल हो।
- अधिनियम की धारा 56 और 58 के तहत, यदि किसी वाहन का उपयोग अवैध शराब व्यापार में होता है, तो उसे जब्त किया जा सकता है और जिला कलेक्टर को इसे जब्त रखने का अधिकार है।
- सरकार ने यह भी बताया कि वाहन जब्ती के मामलों में न्यायालय का हस्तक्षेप सीमित होना चाहिए, क्योंकि यह प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा है।
न्यायालय की टिप्पणियां और फैसला
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वाहन जब्ती की प्रक्रिया में देरी अवैध:
- न्यायालय ने पाया कि सरकार द्वारा जब्त वाहनों पर कानूनी प्रक्रिया समय पर पूरी नहीं की जाती।
- यदि जब्ती की कार्यवाही 90 दिनों के भीतर पूरी नहीं होती, तो वाहन को छोड़ देना चाहिए।
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निषेध एवं उत्पाद अधिनियम का गलत प्रयोग नहीं होना चाहिए:
- अदालत ने स्पष्ट किया कि बिना ठोस आधार के किसी भी वाहन को लंबे समय तक जब्त रखना अवैध है।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर मामले में निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से निर्णय लिया जाए।
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वाहन मालिकों के अधिकारों की रक्षा:
- न्यायालय ने कहा कि वाहन मालिकों को उचित समय-सीमा के भीतर कानूनी समाधान मिलना चाहिए।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जब्त किए गए वाहनों की उचित देखभाल की जाए और उन्हें खराब न होने दिया जाए।
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सरकार को समय-सीमा का पालन करने का आदेश:
- न्यायालय ने सरकार को निर्देश दिया कि जब्त किए गए वाहनों की कानूनी कार्यवाही 90 दिनों के भीतर पूरी की जाए।
- यदि सरकार इस समय-सीमा का पालन नहीं करती, तो वाहन को स्वचालित रूप से रिहा माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला
न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि सरकार के पास जब्ती का अधिकार है, लेकिन इसे मनमाने ढंग से लागू नहीं किया जा सकता।
- Union of India Vs. Rajesh P.U. Puthuvalnikathu (2003) 7 SCC 285
- Sachin Kumar Vs. Delhi Subordinate Service Selection Board (2021) 4 SCC 631
इन फैसलों में कहा गया कि यदि जब्ती प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण हो, तो उसे रद्द किया जा सकता है, भले ही वाहन शराब निषेध अधिनियम के तहत जब्त किया गया हो।
इस फैसले का प्रभाव
✅ वाहन मालिकों के अधिकार सुरक्षित होंगे:
- यह फैसला यह सुनिश्चित करेगा कि वाहन मालिकों को न्याय मिले और उन्हें अनावश्यक परेशानी न झेलनी पड़े।
✅ सरकारी कार्यप्रणाली में सुधार:
- अब सरकारी अधिकारियों को कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य होगा, अन्यथा उनके निर्णयों को न्यायालय में चुनौती दी जा सकेगी।
✅ शराब निषेध अधिनियम के दुरुपयोग पर रोक:
- यह फैसला सुनिश्चित करेगा कि सरकार इस अधिनियम का दुरुपयोग न करे और सही मामलों में ही कार्रवाई करे।
✅ जल्द न्याय मिलने की संभावना:
- अब यह साफ हो गया है कि जब्त वाहन से संबंधित मामले 90 दिनों में निपटाए जाने चाहिए, अन्यथा वाहन को रिहा कर दिया जाएगा।
निष्कर्ष
पटना उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि सरकार के पास निषेध एवं उत्पाद अधिनियम के तहत वाहन जब्त करने का अधिकार है, लेकिन इस प्रक्रिया का पालन निष्पक्ष और समयबद्ध तरीके से किया जाना चाहिए।
इस फैसले से यह तय होगा कि वाहन मालिकों के अधिकार सुरक्षित रहें और अनावश्यक रूप से उनके वाहन जब्त न किए जाएं। यह निर्णय भविष्य में निषेध कानून को और अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाने में मदद करेगा। 🚔
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjA4NTEjMjAyMSMxI04=-tLQj9ObJcIw=