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“वन भूमि बनाम निजी भूमि: पटना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला”

 

विस्तृत सारांश:

पटना उच्च न्यायालय में दायर सिविल रिट याचिका संख्या 8557/2017 का विवरण

याचिकाकर्ता:

1. चंचल देवी उर्फ चंचल देवी जैन (नेमीचंद जैन की पत्नी), आश्रम रोड, अररिया

2. शोभा देवी (पुखराज जैन की पत्नी), आश्रम रोड, अररिया

प्रतिवादीगण:

1. बिहार राज्य

2. मुख्य वन संरक्षक, बिहार, पटना

3. वन संरक्षक, पूर्णिया वन वृत्त, पूर्णिया

4. प्रमंडलीय वन पदाधिकारी, अररिया वन प्रमंडल, अररिया

मामले की पृष्ठभूमि:

1. भूमि का विवरण:

– प्लॉट संख्या: 3570

– खाता संख्या: 360

– स्थान: मौजा-हरिया, जिला-अररिया

2. विवाद का मूल कारण:

– 22 जुलाई 1967 को जारी अधिसूचना, जो 6 नवंबर 1968 को बिहार गजट में प्रकाशित हुई

– इस अधिसूचना के तहत कई राजस्व थानों में स्थित भूमि को भारतीय वन अधिनियम की धारा 29 के अनुसार संरक्षित वन घोषित किया गया

– सभी प्रभावित भूमि रैयती (निजी) भूमि थी

याचिकाकर्ताओं की मुख्य मांगें:

1. उनकी भूमि से बेदखली पर रोक लगाई जाए

2. वन विभाग के अधिकारियों को उनकी भूमि पर सीमांकन और सीमा रेखा निर्धारित करने से रोका जाए

3. उनकी भूमि को 22 जुलाई 1967 की अधिसूचना के दायरे से बाहर रखा जाए

कानूनी मुद्दे और पूर्व न्यायिक निर्णय:

1. भारतीय वन अधिनियम की धारा 29(3):

– किसी भूमि को संरक्षित वन घोषित करने से पहले रैयत (भूमि मालिक) की सहमति लेना अनिवार्य है

– राज्य सरकार ने इस अनिवार्य प्रावधान का पालन नहीं किया

2. पूर्व में समान मामलों में न्यायालय के निर्णय:

– CWJC संख्या 621/2016 (निर्णय दिनांक: 13.01.2017)

– CWJC संख्या 1343/2019

– दोनों मामलों में न्यायालय ने राज्य को धारा 29(3) का पालन करने का निर्देश दिया

– राज्य सरकार ने इन आदेशों का पालन नहीं किया

महत्वपूर्ण तथ्य:

1. राज्य की निष्क्रियता:

– अधिसूचना जारी करने के बाद राज्य ने लंबे समय तक कोई कार्रवाई नहीं की

– इस दौरान निजी पक्षों के बीच भूमि का लेन-देन होता रहा

– बाद में खरीदारों को समस्याओं का सामना करना पड़ा

2. प्रतिवादियों का पक्ष:

– राज्य सरकार द्वारा दाखिल जवाबी हलफनामे से स्पष्ट है कि पूर्व में दिए गए न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं किया गया

न्यायालय का निर्णय:

1. मुख्य आदेश:

– राज्य सरकार को याचिकाकर्ताओं की भूमि पर कब्जा करने से रोक दिया गया

– यह रोक तब तक प्रभावी रहेगी जब तक भारतीय वन अधिनियम की धारा 29(3) के अनुसार मामले का अंतिम निपटारा नहीं हो जाता

2. निर्णय का आधार:

– पूर्व में समान मामलों में दिए गए निर्देशों का पालन न होना

– धारा 29(3) के अनिवार्य प्रावधानों का उल्लंघन

– निजी भूमि मालिकों के अधिकारों की रक्षा

निर्णय का महत्व:

1. नागरिक अधिकारों की रक्षा:

– निजी संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा

– सरकारी कार्रवाई में कानूनी प्रक्रिया के पालन की आवश्यकता

2. प्रशासनिक जवाबदेही:

– सरकारी विभागों को न्यायालय के आदेशों का पालन करने की आवश्यकता

– कानूनी प्रावधानों का पालन सुनिश्चित करने का निर्देश

3. भविष्य के लिए मार्गदर्शन:

– समान मामलों में कानूनी प्रक्रिया का पालन आवश्यक

– निजी भूमि को संरक्षित वन घोषित करने से पहले मालिकों की सहमति अनिवार्य

यह निर्णय वन संरक्षण और निजी संपत्ति के अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वन क्षेत्र के विस्तार के लिए कानूनी प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक है और निजी भूमि मालिकों के अधिकारों की अनदेखी नहीं की जा सकती। यह फैसला प्रशासनिक कार्यवाही में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को भी रेखांकित करता है।

                                

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjODU1NyMyMDE3IzEjTg==-OLJ5CCkwuIU=

Abhishek Kumar

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