परिचय
यह मामला दिनेश कुमार सिंह बनाम बिहार सरकार से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता को राज्य सचिवालय में सहायक के पद से बर्खास्त कर दिया गया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने 31 जुलाई 2008 को एक व्यक्ति से ₹1600 की रिश्वत ली। इस कारण उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत कार्रवाई की गई और उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
इस फैसले में न्यायालय ने बर्खास्तगी आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि मामले की नए सिरे से जांच होनी चाहिए। आइए इस फैसले को विस्तार से समझते हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता दिनेश कुमार सिंह बिहार सरकार के सचिवालय में सहायक के पद पर कार्यरत थे। 2008 में उनके खिलाफ एक शिकायत दर्ज की गई कि उन्होंने किसी काम के लिए ₹1600 की रिश्वत ली। इस शिकायत के आधार पर विजिलेंस विभाग ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ लिया और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया।
बिहार सरकार ने इस मामले में सामानांतर अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की और 24 मई 2016 को उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया।
याचिकाकर्ता ने इस बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ 30 जून 2016 को अपील दायर की, लेकिन 9 मई 2017 को अपील खारिज कर दी गई।
इससे आहत होकर उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील ने निम्नलिखित तर्क दिए:
- शिकायत की कॉपी नहीं दी गई – उन्होंने कहा कि 25 जून 2008 की शिकायत जिसे उनके खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया गया, उन्हें कभी उपलब्ध नहीं कराई गई।
- गवाहों की जांच नहीं हुई – जिन गवाहों ने रिश्वत लेने का आरोप लगाया, उनकी जांच नहीं की गई।
- अनुशासनात्मक कार्यवाही में नियमों का पालन नहीं किया गया – बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 2005 के अनुसार, चार्जशीट के साथ साक्ष्य और गवाहों की सूची दी जानी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।
- नैसर्गिक न्याय का उल्लंघन हुआ – याचिकाकर्ता को खुद के बचाव का पूरा अवसर नहीं दिया गया।
सरकार का पक्ष
राज्य सरकार ने तर्क दिया कि:
- याचिकाकर्ता के खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, इसलिए उनकी बर्खास्तगी उचित है।
- आपराधिक मामला अभी भी अदालत में लंबित है, इसलिए विभागीय कार्रवाई भी जारी रहनी चाहिए।
- अनुशासनात्मक कार्यवाही उचित तरीके से की गई, और इसमें कोई अनियमितता नहीं है।
हालांकि, सरकार ने स्वीकार किया कि चार्जशीट के साथ गवाहों की सूची नहीं दी गई थी और गवाहों की पूछताछ भी नहीं की गई थी।
न्यायालय का निर्णय
पटना उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले:
- बर्खास्तगी आदेश को खारिज किया जाता है – न्यायालय ने कहा कि नियमित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, इसलिए 24 मई 2016 और 9 मई 2017 के बर्खास्तगी आदेश अमान्य हैं।
- मामले की दोबारा जांच की जाएगी – अनुशासनात्मक प्राधिकारी को निर्देश दिया गया कि मामले की नए सिरे से जांच की जाए।
- याचिकाकर्ता को पर्याप्त अवसर दिया जाए – चार्जशीट में गवाहों और साक्ष्यों की सूची होनी चाहिए। याचिकाकर्ता को पूरा अवसर दिया जाए कि वह अपना बचाव कर सके।
- 6 महीने में जांच पूरी हो – न्यायालय ने सरकार को 6 महीने में जांच पूरी करने का निर्देश दिया।
- याचिकाकर्ता को फिर से बहाल किया जाए या निलंबित रखा जाए – सरकार को आदेश दिया गया कि वे तय करें कि याचिकाकर्ता को बहाल किया जाए या जांच पूरी होने तक निलंबित रखा जाए।
महत्वपूर्ण कानूनी संदर्भ
कोर्ट ने ECIL बनाम बी. करूणाकरण (1993) 4 SCC 727 और Coal India Ltd बनाम अनंता साहा (2011) 5 SCC 142 के फैसलों का हवाला दिया। इन मामलों में यह सिद्ध किया गया कि:
- यदि किसी कर्मचारी को बिना उचित प्रक्रिया के बर्खास्त किया जाता है, तो बर्खास्तगी आदेश अमान्य हो जाएगा।
- दोबारा जांच के दौरान कर्मचारी को निलंबित रखा जा सकता है, लेकिन उसे उचित वेतन और अन्य लाभ मिलने चाहिए।
निष्कर्ष
- बिना उचित प्रक्रिया के की गई बर्खास्तगी अवैध – सरकार को पहले नियमों का पालन करना चाहिए था।
- याचिकाकर्ता को उचित अवसर मिलना चाहिए – गवाहों की जांच और साक्ष्य की उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिए।
- मामले की दोबारा जांच होगी – सरकार को निर्देश दिया गया कि 6 महीने के भीतर नए सिरे से जांच करें।
- सरकारी नौकरी के मामलों में यह एक महत्वपूर्ण मिसाल – यह फैसला यह दर्शाता है कि सरकार किसी भी कर्मचारी को मनमाने तरीके से बर्खास्त नहीं कर सकती।
आम जनता के लिए संदेश
इस फैसले का महत्व आम लोगों के लिए यह है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी बर्खास्त किया जाता है और उसे यह महसूस होता है कि उचित प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ, तो वह न्यायालय की शरण में जा सकता है।
यह फैसला यह भी बताता है कि सरकारी सेवाओं में अनुशासन बनाए रखना जरूरी है, लेकिन यह भी आवश्यक है कि सरकार उचित प्रक्रिया का पालन करे और कर्मचारियों के अधिकारों का सम्मान करे।
पूरा फैसला
पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjODk0MSMyMDE3IzEjTg==-FYRBE–ak1–1Qpbg=