भूमिका:
यह मामला सिविल रिट न्यायालयिक याचिका संख्या 2720/2019 से संबंधित है, जिसे राम छबीला प्रसाद यादव और भरत भूषण कुमार द्वारा पटना उच्च न्यायालय में दायर किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने बिहार सरकार, शिक्षा विभाग, जिला अपीलीय प्राधिकरण (Sitamarhi) और अन्य अधिकारियों के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। यह मामला पंचायत शिक्षकों की नियुक्ति से जुड़ा था, जहाँ याचिकाकर्ताओं की भर्ती को अवैध घोषित कर दिया गया और उन्हें वेतन नहीं दिया गया।
मामले की मुख्य बातें:
- याचिकाकर्ताओं का 2008 की पंचायत शिक्षक भर्ती में चयन हुआ था, लेकिन बाद में उनकी नियुक्ति रद्द कर दी गई।
- उन्होंने 2016 में जॉइनिंग कर ली थी, लेकिन उन्हें वेतन नहीं दिया गया।
- 2018 में जिला अपीलीय प्राधिकरण (Sitamarhi) ने उनकी नियुक्ति को “Void Ab Initio” (शून्य) घोषित कर दिया।
- पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले को अवैध करार देते हुए याचिकाकर्ताओं की सेवा जारी रखने और बकाया वेतन देने का आदेश दिया।
मामले की विस्तृत समीक्षा
1. याचिकाकर्ताओं की माँग:
याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय से निम्नलिखित राहत की माँग की थी:
- उनकी नियुक्ति को फिर से वैध घोषित किया जाए।
- 2008 की भर्ती प्रक्रिया के अनुसार उन्हें उनकी नौकरी दी जाए।
- उन्हें वेतन और अन्य लाभ दिए जाएँ, जो 2016 से बकाया हैं।
2. बिहार सरकार और जिला अपीलीय प्राधिकरण का पक्ष:
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग ने कहा कि:
- याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति बिना आवश्यक स्वीकृति के की गई थी।
- पंचायत सचिव के पास नियुक्ति देने का अधिकार नहीं था।
- नियुक्ति के लिए पहले सरकार की अनुमति आवश्यक थी, जो नहीं ली गई थी।
- इसलिए 2018 में उनकी नियुक्ति को शून्य घोषित कर दिया गया।
3. पटना उच्च न्यायालय का अवलोकन
- भर्ती प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं थी।
- याचिकाकर्ताओं को नियुक्ति दी गई थी, लेकिन उनका वेतन रोक दिया गया था।
- बिहार सरकार और जिला अधिकारियों ने नियुक्ति को शून्य घोषित करने का कोई ठोस कारण नहीं दिया।
- अधिकारियों ने नियुक्ति रद्द करने से पहले याचिकाकर्ताओं को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया।
- यह पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों (Principles of Natural Justice) के खिलाफ थी।
अदालत का निर्णय
1. नियुक्ति बहाल करने का आदेश:
- न्यायालय ने जिला अपीलीय प्राधिकरण और राज्य अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को अवैध घोषित कर दिया।
- याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति बहाल करने का आदेश दिया गया।
2. वेतन और बकाया राशि का भुगतान:
- याचिकाकर्ताओं को 2016 से लंबित वेतन और सभी भत्तों का भुगतान किया जाए।
- अगर सरकार तीन महीने के भीतर वेतन नहीं देती, तो याचिकाकर्ताओं को 10% वार्षिक ब्याज के साथ भुगतान किया जाएगा।
3. जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई:
- अगर आदेश के पालन में देरी होती है, तो इसकी ज़िम्मेदारी संबंधित अधिकारियों की होगी।
- देरी करने वाले अधिकारियों के वेतन से राशि की वसूली की जाएगी।
इस फैसले का व्यापक महत्व
1. पंचायत शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा:
- इस फैसले से स्पष्ट हो गया कि नियुक्ति के बाद सरकार उसे रद्द नहीं कर सकती।
- शिक्षकों को उचित प्रक्रिया के बिना हटाना गैर-कानूनी है।
2. सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही:
- सरकारी अधिकारियों को मनमाने तरीके से नियुक्ति रद्द करने से पहले उचित प्रक्रिया अपनानी होगी।
- अगर नियुक्ति रद्द की जाती है, तो इसके लिए स्पष्ट कारण और साक्ष्य देने होंगे।
3. बिहार में शिक्षक भर्ती प्रक्रियाओं में सुधार:
- यह फैसला भविष्य में होने वाली शिक्षक भर्तियों के लिए एक मिसाल बनेगा।
- सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षकों की नियुक्ति और वेतन संबंधी विवाद न हों।
4. प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष प्रशासन:
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कोई भी फैसला लेने से पहले संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है।
- बिना उचित सुनवाई के किसी को नौकरी से हटाना या वेतन रोकना गैर-कानूनी है।
निष्कर्ष
यह मामला शिक्षकों के अधिकारों और सरकारी अधिकारियों की जवाबदेही से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला है। पटना हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नियुक्ति मिलने के बाद शिक्षक को हटाना या वेतन रोकना गैर-कानूनी है, और सरकार को पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रखनी होगी।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि:
✅ सरकार मनमाने तरीके से नियुक्ति रद्द नहीं कर सकती।
✅ शिक्षकों को समय पर वेतन देना आवश्यक है।
✅ अगर सरकार आदेश का पालन नहीं करती, तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई होगी।
✅ भविष्य में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
यह फैसला शिक्षकों और सरकारी कर्मचारियों के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय साबित होगा।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjcyMCMyMDE5IzEjTg==-4cbiQmXjQTo=