परिचय
यह मामला पटना उच्च न्यायालय में दायर सिविल रिट याचिका (CWJC No. 5706/2020) से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता राम नरेश राय ने पूर्वी मध्य रेलवे (East Central Railway), सोनपुर के अधिकारियों द्वारा उनके तहबाजारी (Stallage) अनुबंध को अवैध रूप से रद्द करने के फैसले को चुनौती दी थी।
याचिका में कहा गया कि रेलवे ने शाहपुर पटोरी रेलवे स्टेशन पर तहबाजारी का ठेका देने के लिए 2019 में टेंडर निकाला था। याचिकाकर्ता ने इसमें सबसे अधिक बोली लगाई (₹75,01,000/-) और उन्हें अनुबंध प्रदान किया गया। उन्होंने पहले ही ₹16.30 लाख जमा कर दिए थे, लेकिन कुछ महीनों बाद, रेलवे ने बिना कोई कारण बताए अनुबंध रद्द कर दिया।
याचिकाकर्ता ने अदालत से मांग की कि रेलवे के फैसले को रद्द किया जाए और उन्हें तहबाजारी संचालन की अनुमति दी जाए।
मामले की पृष्ठभूमि
रेलवे ने 5 अगस्त 2019 को शाहपुर पटोरी रेलवे स्टेशन पर खाली जमीन के लिए तहबाजारी (छोटे दुकानदारों से किराया वसूलने) का टेंडर निकाला।
- राम नरेश राय ने सबसे ऊँची बोली लगाई और 18 दिसंबर 2019 को रेलवे के साथ एक लिखित अनुबंध किया।
- अनुबंध 1 जनवरी 2020 से 31 दिसंबर 2022 तक वैध था।
- उन्होंने रेलवे को ₹16.30 लाख अग्रिम राशि के रूप में जमा कर दिए और तहबाजारी संचालन शुरू कर दिया।
लेकिन 19 मार्च 2020 को रेलवे ने अचानक एक पत्र जारी कर अनुबंध को रद्द कर दिया।
- रेलवे ने इसका कारण बताया कि 2005 के एक पुराने निर्देश के अनुसार नई तहबाजारी अनुमति नहीं दी जा सकती।
- रेलवे ने यह भी कहा कि कुछ स्थानीय लोगों ने शिकायत की थी कि तहबाजारी से क्षेत्र में गंदगी और अव्यवस्था फैल रही थी।
याचिकाकर्ता के तर्क
- रेलवे ने सभी नियमों का पालन कर टेंडर निकाला, बोली लगाई और अनुबंध किया।
- रेलवे का 2005 का निर्देश तब लागू नहीं हो सकता, जब खुद रेलवे ने नियमों का पालन कर अनुबंध किया हो।
- शिकायतों के आधार पर जांच की गई थी, जिसमें शिकायतें फर्जी पाई गईं। फिर भी अनुबंध रद्द कर दिया गया।
- याचिकाकर्ता को अपना पक्ष रखने का मौका दिए बिना ही अनुबंध रद्द कर दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है।
याचिकाकर्ता ने पटना हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि:
- रेलवे का अनुबंध रद्द करने का आदेश अवैध घोषित किया जाए।
- तहबाजारी का संचालन जारी रखने की अनुमति दी जाए।
- उन्हें अनुबंध के अनुसार न्याय दिया जाए।
रेलवे का पक्ष
- 2005 के निर्देश के अनुसार रेलवे की खाली जमीन पर नए तहबाजारी अनुबंध नहीं दिए जा सकते।
- कुछ स्थानीय लोगों ने शिकायत की थी कि तहबाजारी के कारण क्षेत्र में गंदगी और अतिक्रमण बढ़ रहा था।
- रेलवे अधिकारियों की गलती से यह अनुबंध हुआ, इसलिए इसे रद्द किया गया और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की गई।
रेलवे ने यह भी तर्क दिया कि वे जनहित में निर्णय ले रहे हैं और कोई अनुचित कार्रवाई नहीं की गई है।
पटना हाई कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की एकल पीठ ने इस मामले में सुनवाई की और महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले:
- रेलवे ने टेंडर निकालकर, बोली स्वीकार कर, और अनुबंध कर, खुद ही नियमों का पालन किया था।
- याचिकाकर्ता ने अनुबंध का कोई उल्लंघन नहीं किया, फिर भी बिना सुनवाई अनुबंध रद्द कर दिया गया।
- शिकायतों की जांच में कोई अनियमितता नहीं पाई गई, फिर भी अनुबंध को समाप्त कर दिया गया।
- 2005 के निर्देश का आधार लेकर अनुबंध रद्द करना असंवैधानिक है, क्योंकि रेलवे ने खुद ही इसे निष्पादित किया था।
अदालत ने इसे मनमानी और गैर-कानूनी करार देते हुए अनुबंध रद्द करने के फैसले को निरस्त कर दिया।
अदालत द्वारा दिए गए निर्देश
- रेलवे का अनुबंध रद्द करने का आदेश अवैध करार दिया गया और इसे रद्द कर दिया गया।
- याचिकाकर्ता को तहबाजारी संचालन की अनुमति दी गई।
- रेलवे को निर्देश दिया गया कि भविष्य में ऐसी मनमानी न हो और उचित प्रक्रिया का पालन किया जाए।
महत्वपूर्ण कानूनी निष्कर्ष
- सरकारी विभाग कोई अनुबंध कर लेने के बाद अपनी गलतियों का बहाना लेकर उसे रद्द नहीं कर सकते।
- किसी भी व्यक्ति के कानूनी अधिकार को छीनने से पहले उसे सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।
- यदि सरकार या कोई विभाग खुद ही नियमों का पालन करते हुए कोई अनुबंध करता है, तो बाद में वह अपने पुराने निर्देशों का बहाना नहीं बना सकता।
निष्कर्ष
यह मामला न्याय और सरकारी अनुबंधों की विश्वसनीयता को लेकर एक महत्वपूर्ण मिसाल है। पटना हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि किसी भी व्यक्ति के कानूनी अधिकार को बिना सुनवाई के छीना नहीं जा सकता।
यह फैसला भविष्य में सरकारी अनुबंधों की पारदर्शिता और विश्वसनीयता सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNTcwNiMyMDIwIzEjTg==-8CjKG60r1po=