भूमिका:
यह मामला सिविल रिट न्यायालयिक याचिका संख्या 19063/2021 से संबंधित है, जो A & E कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बलुआही, समस्तीपुर द्वारा पटना उच्च न्यायालय में दायर की गई थी। याचिकाकर्ता कॉलेज के चेयरमैन अशोक कुमार थे, जिन्होंने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (LNMU), दरभंगा के खिलाफ याचिका दायर की थी।
याचिका में यह अनुरोध किया गया था कि विश्वविद्यालय द्वारा B. Pharm (बैचलर ऑफ फार्मेसी) कोर्स के छात्रों की परीक्षा या प्रमोशन पर निर्णय नहीं लिया जा रहा है, जिससे छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय से हस्तक्षेप की मांग की थी।
मामले की मुख्य बातें:
- याचिकाकर्ता A & E कॉलेज ऑफ फार्मेसी को फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), AICTE और बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त थी।
- कोविड-19 महामारी के कारण विश्वविद्यालय ने परीक्षा नहीं कराई और न ही छात्रों को प्रमोट किया।
- पटना हाईकोर्ट ने विश्वविद्यालय को परीक्षा कराने या प्रमोशन का फैसला जल्द लेने का आदेश दिया।
- 15 दिनों के भीतर विश्वविद्यालय को निर्णय लेना होगा, और यदि परीक्षा करानी हो, तो दो महीने के भीतर परीक्षा आयोजित करनी होगी।
मामले की विस्तृत समीक्षा
1. याचिकाकर्ता का दावा:
याचिकाकर्ता A & E कॉलेज ऑफ फार्मेसी के अनुसार:
- कॉलेज को फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI), AICTE और बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त थी।
- विश्वविद्यालय ने बिना किसी ठोस कारण के परीक्षा नहीं कराई और छात्रों का प्रमोशन भी नहीं किया।
- B. Pharm के छात्रों का भविष्य खतरे में पड़ गया, क्योंकि वे आगे की पढ़ाई या नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकते थे।
- अन्य विश्वविद्यालयों ने कोविड-19 के दौरान या तो परीक्षाएँ कराईं या छात्रों को प्रमोट किया, लेकिन LNMU ने कुछ नहीं किया।
2. विश्वविद्यालय का पक्ष:
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय (LNMU) ने कहा कि:
- विश्वविद्यालय सिर्फ अपनी गाइडलाइंस और राज्य सरकार की मंजूरी के आधार पर ही परीक्षा आयोजित कर सकता है।
- विश्वविद्यालय ने 13 मई 2020 और 6 जुलाई 2021 को राज्यपाल (कुलाधिपति) से मंजूरी मांगी थी, लेकिन अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया।
- शिक्षा विभाग ने 25 जून 2021 को विश्वविद्यालय को परीक्षा कराने से मना कर दिया था।
3. पटना उच्च न्यायालय का अवलोकन
- फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) के नियमों के अनुसार परीक्षा कराना अनिवार्य है।
- PCI ने 2014 में B. Pharm कोर्स के लिए नियम बनाए थे, जिनमें परीक्षा प्रणाली, ग्रेडिंग सिस्टम और प्रमोशन के नियम स्पष्ट रूप से दिए गए थे।
- विश्वविद्यालय का तर्क निराधार पाया गया, क्योंकि देशभर में अन्य विश्वविद्यालयों ने परीक्षाएँ कराईं या प्रमोशन दिया।
- छात्रों का भविष्य प्रभावित नहीं होना चाहिए, इसलिए जल्द से जल्द परीक्षा या प्रमोशन का फैसला लेना जरूरी है।
अदालत का निर्णय
1. विश्वविद्यालय को 15 दिनों में निर्णय लेने का निर्देश:
- विश्वविद्यालय यह तय करेगा कि परीक्षा करानी है या प्रमोट करना है।
- यदि प्रमोट करना हो, तो फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया से मंजूरी लेनी होगी।
- यदि परीक्षा करानी हो, तो दो महीने के भीतर परीक्षा आयोजित करनी होगी।
2. अन्य विश्वविद्यालयों के नियमों को अपनाने का सुझाव:
- यदि LNMU को किसी प्रकार की कठिनाई हो रही है, तो वे आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी (AKU) के नियम अपना सकते हैं।
- AKU बिहार का राज्य विश्वविद्यालय है और उसने पहले ही PCI के अनुसार परीक्षा प्रणाली लागू कर दी है।
3. छात्रों के भविष्य को प्राथमिकता देने का निर्देश:
- छात्रों का करियर परीक्षा की देरी से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
- अन्य विश्वविद्यालयों के छात्र आगे की पढ़ाई और नौकरी के लिए आवेदन कर सकते हैं, लेकिन LNMU के छात्र परीक्षा न होने के कारण पिछड़ रहे हैं।
4. राज्य सरकार को अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करने की सलाह:
- PCI ही फार्मेसी कॉलेजों को मान्यता देने और परीक्षा कराने का अधिकार रखता है।
- बिहार सरकार का हस्तक्षेप अनावश्यक था, क्योंकि PCI एक स्वायत्त संस्था है और उसके निर्णय अंतिम होते हैं।
इस फैसले का व्यापक महत्व
1. छात्रों के हितों की रक्षा:
- यह फैसला उन छात्रों के लिए एक मिसाल बनेगा, जिनकी परीक्षा बिना किसी कारण टाली जा रही है।
- पटना हाईकोर्ट ने साफ किया कि छात्रों के भविष्य को किसी भी हालत में खतरे में नहीं डाला जा सकता।
2. फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) की शक्ति की पुष्टि:
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि PCI ही परीक्षा और प्रमोशन के लिए मुख्य संस्था है।
- राज्य सरकार या विश्वविद्यालय परीक्षा में अनावश्यक देरी नहीं कर सकते।
3. शिक्षा में प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया:
- न्यायालय ने LNMU और बिहार सरकार की लापरवाही को उजागर किया।
- यह मामला दिखाता है कि छात्रों के करियर को लेकर प्रशासन को अधिक सक्रिय और जवाबदेह होना चाहिए।
4. अन्य विश्वविद्यालयों के लिए मार्गदर्शक फैसला:
- यह फैसला अन्य विश्वविद्यालयों के लिए भी एक कानूनी मिसाल बनेगा।
- यदि किसी विश्वविद्यालय में परीक्षा में अनावश्यक देरी होती है, तो छात्र उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।
निष्कर्ष
यह मामला शिक्षा प्रशासन और छात्रों के अधिकारों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण फैसला है। पटना हाईकोर्ट ने छात्रों के भविष्य को प्राथमिकता दी और विश्वविद्यालय को जल्द से जल्द निर्णय लेने का आदेश दिया।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि:
✅ विश्वविद्यालय परीक्षा में देरी नहीं कर सकते, उन्हें समयबद्ध निर्णय लेना होगा।
✅ फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) परीक्षा और प्रमोशन को लेकर सर्वोच्च संस्था है।
✅ यदि कोई विश्वविद्यालय परीक्षा नहीं करा रहा है, तो छात्र न्यायालय का सहारा ले सकते हैं।
✅ राज्य सरकार को अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
यह फैसला छात्रों और शिक्षा प्रणाली के लिए एक ऐतिहासिक निर्णय साबित होगा।
पूरा फैसला
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTkwNjMjMjAyMSMxI04=-6h9PEsUoiKk=