पटना उच्च न्यायालय में दायर याचिका का विस्तृत विवरण
(केस नंबर: Civil Writ Jurisdiction Case No.21160 of 2019)
मामले का परिचय:
यह मामला बिहार स्टेट को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड में कार्यरत कर्मचारियों द्वारा दायर किया गया था। इस मामले में कुल 8 याचिकाकर्ता थे, जिन्होंने अपनी नियमितीकरण (रेगुलराइजेशन) से संबंधित विवाद को लेकर न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
मामले की पृष्ठभूमि:
1. नियुक्ति का इतिहास:
– सभी याचिकाकर्ता शुरू में अनुबंध (कॉन्ट्रैक्ट) के आधार पर नियुक्त किए गए थे
– नियुक्ति इंस्टीट्यूट ऑफ एंटरप्रेन्योरशिप डेवलपमेंट, बिहार द्वारा आयोजित चयन प्रक्रिया के माध्यम से की गई थी
– बैंक के निदेशक मंडल ने 07.08.2013 को इनकी सेवाओं को नियमित करने का निर्णय लिया
2. वर्तमान विवाद:
– 23.09.2019 को उप-रजिस्ट्रार (गन्ना), सहकारी समितियां, बिहार सरकार ने एक पत्र जारी किया
– पत्र बैंक के निदेशक मंडल के सभी सदस्यों को संबोधित था
– पत्र में कर्मचारियों के नियमितीकरण को अवैध बताया गया
मुख्य मुद्दे:
1. नियमितीकरण की वैधता:
– उप-रजिस्ट्रार का कहना था कि नियमितीकरण बैंक की कार्मिक नीति के विरुद्ध था
– सहायक से ऊपर के सभी पदों को IBPS के माध्यम से भरा जाना चाहिए था
– इस आधार पर नियमितीकरण को अवैध माना गया
2. वसूली की धमकी:
– प्रशासन नियमितीकरण के बाद भुगतान किए गए वेतन की वसूली की योजना बना रहा था
– याचिकाकर्ताओं को बिना सुनवाई का मौका दिए यह निर्णय लिया गया
याचिकाकर्ताओं का पक्ष:
1. मुख्य तर्क:
– नियमितीकरण को अवैध घोषित करने से पहले उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया
– प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ
– बिना उचित अवसर दिए कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए
2. मांग:
– सुनवाई का उचित अवसर दिया जाए
– वेतन वसूली जैसी कोई जबरन कार्रवाई न की जाए
राज्य सरकार का पक्ष:
1. मुख्य तर्क:
– विवादित पत्र बैंक के निदेशक मंडल को संबोधित है
– बिहार सहकारी समिति अधिनियम की धारा 41 के तहत कार्रवाई की जा रही है
– याचिकाकर्ताओं को इस स्तर पर निर्णय को चुनौती देने का अधिकार नहीं है
बैंक का पक्ष:
1. स्वायत्तता का मुद्दा:
– धारा 44AV के तहत बैंक को आंतरिक प्रशासनिक मामलों में स्वायत्तता प्राप्त है
– कार्मिक नीति, भर्ती, पोस्टिंग और कर्मचारियों के मुआवजे के मामलों में स्वतंत्र निर्णय ले सकता है
2. सेवा विनियमन 2013:
– विनियमन 7(2) के तहत निदेशक मंडल को अनुबंध कर्मचारियों को नियमित करने का अधिकार है
– शर्तें:
* कर्मचारी प्रतियोगी परीक्षा से आए हों
* पांच साल की निरंतर सेवा पूरी की हो
* कार्य-प्रदर्शन संतोषजनक हो
* कोई प्रतिकूल टिप्पणी न हो
न्यायालय का निर्णय:
1. मुख्य निर्देश:
– बिना सुनवाई के कोई प्रतिकूल निर्णय नहीं लिया जा सकता
– प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन आवश्यक है
– कोई जबरन कार्रवाई नहीं की जा सकती
2. अन्य टिप्पणियां:
– 23.09.2019 के पत्र की वैधता पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं
– बैंक/निदेशक मंडल पत्र का जवाब दे सकते हैं या उचित मंच पर चुनौती दे सकते हैं
मामले का महत्व:
1. कर्मचारियों के अधिकारों की दृष्टि से:
– सुनवाई का अधिकार सुनिश्चित किया गया
– बिना उचित प्रक्रिया के कार्रवाई पर रोक लगी
– नौकरी की सुरक्षा को बल मिला
2. प्रशासनिक दृष्टि से:
– स्वायत्त संस्थाओं की शक्तियों की सीमा स्पष्ट हुई
– प्राकृतिक न्याय के महत्व को रेखांकित किया गया
– नियमितीकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल
व्यावहारिक प्रभाव:
1. कर्मचारियों के लिए:
– तत्काल राहत मिली
– वेतन वसूली की कार्रवाई पर रोक लगी
– अपना पक्ष रखने का मौका मिलेगा
2. प्रशासन के लिए:
– उचित प्रक्रिया का पालन आवश्यक
– कर्मचारियों को सुनवाई का मौका देना होगा
– मनमानी कार्रवाई पर अंकुश लगा
सीख और निष्कर्ष:
1. कानूनी प्रक्रिया:
– प्राकृतिक न्याय का पालन आवश्यक है
– बिना सुनवाई कोई प्रतिकूल निर्णय नहीं लिया जा सकता
– कर्मचारियों के हितों की रक्षा जरूरी है
2. प्रशासनिक सुधार:
– नियमितीकरण प्रक्रिया में पारदर्शिता आवश्यक
– स्पष्ट नीतियों की आवश्यकता
– कर्मचारियों के हितों का ध्यान रखना जरूरी
3. भविष्य के लिए दिशा-निर्देश:
– नियुक्तियों में नियमों का पालन आवश्यक
– स्वायत्त संस्थाओं को अपनी शक्तियों की सीमा समझनी होगी
– कर्मचारियों के अधिकारों का सम्मान करना होगा
यह निर्णय श्रम कानून और प्रशासनिक कानून के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है। इसने कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के साथ-साथ प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता के महत्व को भी रेखांकित किया है।
पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjExNjAjMjAxOSMxI04=-CBZlkWEaMRI=