"सरकारी टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाम आरोप: पटना हाईकोर्ट का निर्णय"

“सरकारी टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाम आरोप: पटना हाईकोर्ट का निर्णय”

 

यह मामला पटना उच्च न्यायालय के सिविल रिट न्यायाधिकार क्षेत्र (CWJC) संख्या 7138/2020 से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता मुन्‍ना कुमार जैसवाल ने बिहार ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा जारी एक निविदा (टेंडर) प्रक्रिया को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता का आरोप था कि निविदा प्रक्रिया में अनियमितताएँ हुईं और एक निजी फर्म (M/s Maa Bindhyavashini Construction) को अवैध रूप से ठेका दिया गया।


मामले की पृष्ठभूमि

  • बिहार ग्रामीण कार्य विभाग ने 16 जनवरी 2020 को कुछ सड़कों की मरम्मत और सतह नवीनीकरण के लिए ई-टेंडर आमंत्रित किया।
  • याचिकाकर्ता ने भी इस निविदा में भाग लिया, लेकिन उसका दावा था कि एक अन्य बोलीदाता (उत्तरदाता संख्या 8) ने नियमों का पालन नहीं किया और फिर भी उसे ठेका दे दिया गया।
  • याचिकाकर्ता के अनुसार, उत्तरदाता संख्या 8 ने 23 फरवरी 2020 को निविदा जमा की थी, लेकिन सभी आवश्यक दस्तावेज समय पर प्रस्तुत नहीं किए थे।

अदालत में प्रस्तुत तर्क

याचिकाकर्ता (मुन्‍ना कुमार जैसवाल) का पक्ष:

  1. नियमों का उल्लंघन हुआ – उत्तरदाता संख्या 8 ने निविदा पुनः 24 फरवरी 2020 को जमा की, लेकिन उसने जरूरी दस्तावेज समय पर प्रस्तुत नहीं किए थे।
  2. सूचना के अधिकार (RTI) से खुलासा – आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारी से पता चला कि उत्तरदाता संख्या 8 ने निविदा पुनः जमा की, लेकिन मूल दस्तावेज नहीं दिए।
  3. गलत तरीके से निविदा स्वीकृत की गई – जब आवश्यक दस्तावेज ही समय पर जमा नहीं हुए, तो ठेका क्यों दिया गया?

राज्य सरकार (बिहार ग्रामीण कार्य विभाग) का पक्ष:

  1. नियमों का पालन हुआ – निविदा जमा करने की दो अलग-अलग प्रक्रियाएँ होती हैं:
    • ऑनलाइन निविदा सबमिशन
    • मूल दस्तावेजों की हार्डकॉपी सबमिशन
      इन दोनों प्रक्रियाओं के लिए अलग-अलग समय सीमा थी, और उत्तरदाता संख्या 8 ने दोनों को पूरा किया था।
  2. तकनीकी कमेटी ने जांच की – विभाग की तकनीकी बोली समिति (Technical Bid Committee) ने सभी दस्तावेजों की जाँच की और पाया कि उत्तरदाता संख्या 8 ने सभी आवश्यक शर्तें पूरी की थीं।
  3. शिकायत की जाँच हुई – याचिकाकर्ता की शिकायत पर जाँच की गई, लेकिन उसमें कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई।

अदालत का फैसला

  • न्यायालय ने पाया कि निविदा प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं थी और उत्तरदाता संख्या 8 ने सभी आवश्यक दस्तावेज जमा किए थे।
  • अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायत का कोई ठोस आधार नहीं है और इसीलिए उसकी याचिका खारिज कर दी गई।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि किसी निविदा में भाग लेने वाली कंपनी ने निर्धारित समय सीमा के भीतर सभी आवश्यक दस्तावेज जमा कर दिए हैं, तो उसकी बोली को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

निष्कर्ष

यह मामला निविदा प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियमों के पालन को लेकर था। अदालत ने तकनीकी समिति की रिपोर्ट को सही मानते हुए याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी। यह फैसला स्पष्ट करता है कि सरकारी निविदा प्रक्रियाओं में केवल आरोपों के आधार पर किसी कंपनी को अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि ठोस सबूत प्रस्तुत न किए जाएँ।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjNzEzOCMyMDIwIzEjTg==-4eh4btPvIoM=

 

Abhishek Kumar

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