पटना उच्च न्यायालय, सिविल रिट क्षेत्राधिकार केस संख्या 23427 (2019)
याचिकाकर्ता: जाह्नवी सोम्या (नाबालिग छात्रा)
बनाम
प्रतिवादी:
- बिहार स्कूल परीक्षा बोर्ड, पटना
- बी.एस. उच्च माध्यमिक विद्यालय, चंदीपुर सौर, वारिसालीगंज, नवादा
मामले की पृष्ठभूमि
- जाह्नवी सोम्या बी.एस. उच्च माध्यमिक विद्यालय में 2018-20 सत्र की नियमित छात्रा थीं
- इंटरमीडिएट परीक्षा में बैठने के लिए बोर्ड में पंजीकरण अनिवार्य था
- विद्यालय ने 42 छात्रों का पंजीकरण शुल्क जमा करने का प्रयास किया
- मानवीय त्रुटि के कारण, केवल 41 छात्रों का शुल्क सफलतापूर्वक जमा हो पाया
- याचिकाकर्ता का पंजीकरण शुल्क तकनीकी खामी के कारण जमा नहीं हो पाया
- स्कूल ने स्वीकार किया कि यह उनकी गलती थी
महत्वपूर्ण तिथियां और नियम
- नियमों के अनुसार, परीक्षा के पिछले वर्ष की 31 मार्च तक पंजीकरण होना चाहिए
- बोर्ड ने समय सीमा को बढ़ाकर 30 जुलाई 2019 कर दिया
- परीक्षा फॉर्म जमा करने की अंतिम तिथि 4 अगस्त 2019 थी
- स्कूल ने 28 जुलाई 2019 को विलंब शुल्क के साथ पंजीकरण शुल्क जमा किया
मुख्य मुद्दे
- छात्रा ने समय पर स्कूल को पंजीकरण शुल्क दे दिया था
- स्कूल की गलती के कारण बोर्ड में पंजीकरण नहीं हो पाया
- पंजीकरण न होने के कारण परीक्षा फॉर्म नहीं भरा जा सका
- छात्रा की कोई गलती नहीं थी
न्यायालय के महत्वपूर्ण निष्कर्ष
- नियमित छात्र केवल अपने संस्थान के माध्यम से ही पंजीकरण करा सकते हैं
- पंजीकरण के लिए संस्थान प्रमुख बोर्ड का एजेंट माना जाता है
- छात्रा नाबालिग है और उसकी कोई गलती नहीं थी
- संस्थान की गलती के लिए छात्रा को दंडित नहीं किया जा सकता
न्यायालय का निर्णय
- याचिका स्वीकार की गई
- बोर्ड को निर्देश दिया गया:
- एक सप्ताह के भीतर छात्रा का पंजीकरण पूरा करें
- वेब पोर्टल पर आवश्यक व्यवस्था करें
- परीक्षा फॉर्म जमा करने की सुविधा प्रदान करें
- स्कूल को दंड:
- कुल 50,000 रुपये का जुर्माना
- 30,000 रुपये छात्रा को देने का आदेश
- 20,000 रुपये बोर्ड को देने का आदेश
- एक सप्ताह के भीतर भुगतान करने का निर्देश
मामले का महत्व और शिक्षाएं
- शैक्षणिक संस्थानों की जिम्मेदारी:
- छात्रों के भविष्य के प्रति सावधानी बरतना आवश्यक
- प्रशासनिक कार्यों में सटीकता की आवश्यकता
- मानवीय त्रुटियों से बचने के लिए उचित प्रणालियां स्थापित करना
- छात्र अधिकार:
- प्रशासनिक त्रुटियों से छात्रों को नुकसान नहीं होना चाहिए
- न्यायालय छात्रों के हितों की रक्षा के लिए तत्पर
- विशेषकर नाबालिग छात्रों के अधिकारों की सुरक्षा महत्वपूर्ण
- न्यायिक दृष्टिकोण:
- न्यायालय ने व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाया
- प्रशासनिक नियमों की कठोरता के बजाय न्याय पर ध्यान दिया
- दोषी संस्थान को दंडित करते हुए पीड़ित को राहत प्रदान की
निष्कर्ष
यह मामला दर्शाता है कि शैक्षणिक संस्थानों और परीक्षा बोर्डों को छात्रों के भविष्य के साथ अत्यंत सावधानी से काम करना चाहिए। मानवीय त्रुटियां होना स्वाभाविक है, लेकिन उनका खामियाजा छात्रों को नहीं भुगतना चाहिए। न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि एक नाबालिग छात्रा के शैक्षणिक भविष्य को प्रशासनिक त्रुटि के कारण नुकसान न पहुंचे, साथ ही दोषी संस्थान को उचित दंड देकर भविष्य में ऐसी लापरवाही न होने का संदेश भी दिया।
पूरा
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https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMjM0MjcjMjAxOSMxI04=—am1–QdEKLsT47o=