यह मामला पटना उच्च न्यायालय का है, जिसमें याचिकाकर्ता राजेंद्र प्रसाद यादव ने ग्राम पंचायत राज, मऊरा झरकहा, ब्लॉक शंकरपुर, जिला मधेपुरा के मुखिया पद के चुनाव परिणाम को चुनौती दी है। इस मामले में मुख्य मुद्दा मतगणना में हुई अनियमितताओं और मतों की पुनर्गणना से संबंधित है।
मामले की पृष्ठभूमि
राजेंद्र प्रसाद यादव ग्राम पंचायत के मुखिया पद पर निर्वाचित घोषित हुए। प्रतिवादी संख्या 7 (द्वितीय स्थान पर रहे प्रत्याशी) ने आरोप लगाया कि मतगणना में गड़बड़ी हुई, जिससे वे 15 वोटों से जीतने के बजाय 10 वोटों से हार गए। इस पर उन्होंने चुनाव याचिका संख्या 2/2016 के तहत मतगणना की पुनरावृत्ति की मांग की।
मामले की मुख्य घटनाएं
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चुनाव याचिका:
प्रतिवादी संख्या 7 ने आरोप लगाया कि:- 18 बूथों की मतगणना में कटिंग और ओवरराइटिंग हुई।
- आधिकारिक आंकड़ों में हेरफेर के स्पष्ट संकेत हैं।
- मतगणना के दौरान उन्हें विजयी घोषित किया गया, लेकिन अंतिम प्रमाणपत्र याचिकाकर्ता को दिया गया।
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न्यायालय का आदेश:
प्रथम मुनसिफ, मधेपुरा ने 18 नवंबर 2019 को मतों की पुनर्गणना का आदेश दिया। -
याचिकाकर्ता की आपत्ति:
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में दायर याचिका में यह तर्क दिया कि:- पुनर्गणना का आदेश बिना पर्याप्त साक्ष्यों के पारित किया गया।
- न्यायालय ने कानून के प्रावधानों (धारा 139, बिहार पंचायत राज अधिनियम, 2006) को अनदेखा किया।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय सिद्धांतों के अनुसार, पुनर्गणना का आदेश केवल ठोस और स्पष्ट साक्ष्यों के आधार पर दिया जा सकता है।
अदालती प्रक्रिया और निर्णय
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प्रतिवादी संख्या 7 का तर्क:
- मतगणना में अनियमितताएं और प्रमाणपत्र जारी करने में देरी हुई।
- मतों की संख्या में कटिंग और ओवरराइटिंग विशेष रूप से याचिकाकर्ता के पक्ष में की गई।
- मूल रिकॉर्ड में विसंगतियां पुनर्गणना का औचित्य सिद्ध करती हैं।
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याचिकाकर्ता का पक्ष:
- पुनर्गणना के आदेश के लिए न्यायालय को ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए था।
- केवल आरोपों के आधार पर ऐसा आदेश देना अनुचित है।
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न्यायालय का विश्लेषण:
- न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के मामले एन. नारायणन बनाम एस. सेम्मलाई (AIR 1980 SC 206) और चंद्रिका प्रसाद यादव बनाम बिहार राज्य का संदर्भ लिया।
- पुनर्गणना के लिए तीन शर्तें तय की गईं:
- चुनाव याचिका में सभी प्रासंगिक तथ्यों का समावेश।
- आरोपों के समर्थन में पर्याप्त साक्ष्य।
- पुनर्गणना का आदेश विवाद के निष्पक्ष समाधान के लिए अनिवार्य।
- न्यायालय ने पाया कि प्रथम मुनसिफ ने इन सभी शर्तों का पालन किया।
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न्यायालय का अंतिम निर्णय:
- उच्च न्यायालय ने मुनसिफ के आदेश को सही ठहराया।
- पुनर्गणना का आदेश उचित और न्यायसंगत पाया गया।
- याचिका खारिज कर दी गई।
महत्वपूर्ण बिंदु
- मतगणना में पारदर्शिता:
यह मामला बताता है कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता अनिवार्य है। - न्यायालय की भूमिका:
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जनता की इच्छाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। - सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश:
पुनर्गणना के आदेश को सुप्रीम कोर्ट के सिद्धांतों के अनुसार माना गया।
निष्कर्ष
यह मामला भारत में चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और न्यायिक हस्तक्षेप के महत्व को दर्शाता है। न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि मतगणना से संबंधित विवादों का समाधान निष्पक्ष और विस्तृत साक्ष्यों के आधार पर किया जाए।
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