"व्यवसायिक अनुबंध और मध्यस्थता का संघर्ष: पेट्रोल पंप विवाद पर अदालत का फैसला"

“व्यवसायिक अनुबंध और मध्यस्थता का संघर्ष: पेट्रोल पंप विवाद पर अदालत का फैसला”

 

यह मामला पटना उच्च न्यायालय के सिविल विविध न्यायक्षेत्र (Civil Miscellaneous Jurisdiction) संख्या 1021/2019 से संबंधित है, जिसमें याचिकाकर्ता M/s Dwivedi & Sons ने भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) द्वारा उनके पेट्रोल पंप का लाइसेंस रद्द किए जाने के खिलाफ याचिका दायर की थी।


मामले की पृष्ठभूमि

  • याचिकाकर्ता M/s Dwivedi & Sons एक पेट्रोल पंप संचालक कंपनी है, जिसे 17 जनवरी 2017 को भारत पेट्रोलियम द्वारा लाइसेंस जारी किया गया था।
  • लेकिन BPCL ने कुछ कारणों से इस लाइसेंस को रद्द कर दिया
  • याचिकाकर्ता ने इस निर्णय को पटना उच्च न्यायालय (CWJC No. 1493/2017) में चुनौती दी, जिसके बाद अदालत ने इसे मध्यस्थता (Arbitration) के लिए भेज दिया
  • मध्यस्थ न्यायमूर्ति मृदुला मिश्रा (सेवानिवृत्त) ने 2 जुलाई 2018 को अपना फैसला सुनाया, जिसमें BPCL द्वारा लाइसेंस रद्द करने के फैसले को अवैध बताया गया और पेट्रोल पंप के संचालन को बहाल करने का निर्देश दिया गया

अदालत में प्रस्तुत तर्क

याचिकाकर्ता (M/s Dwivedi & Sons) का पक्ष:

  1. BPCL का लाइसेंस रद्द करने का फैसला अवैध था
    • मध्यस्थ (Arbitrator) ने पाया कि लाइसेंस रद्द करने की कोई ठोस कानूनी वजह नहीं थी, और यह निर्णय अनुबंध के नियमों के विरुद्ध था।
  2. BPCL ने समय सीमा बीतने के बाद चुनौती दी
    • मध्यस्थ का निर्णय 2 जुलाई 2018 को आया था, लेकिन BPCL ने इसे चुनौती देने के लिए देरी से आवेदन दायर किया
    • कानून के अनुसार, 90+30 दिनों (अधिकतम 120 दिन) के भीतर मध्यस्थ के फैसले को चुनौती दी जा सकती थी, लेकिन BPCL ने यह याचिका 239 दिनों बाद दायर की
  3. BPCL ने पहली याचिका वापस ले ली थी
    • BPCL ने पहले Misc. Case No. 133/2018 में चुनौती दी थी, लेकिन जब पाया गया कि प्रक्रिया का सही पालन नहीं हुआ, तो उन्होंने 17 जनवरी 2019 को याचिका वापस ले ली
    • BPCL ने इसके बाद 1 फरवरी 2019 को एक और याचिका (Misc. Case No. 12/2019) दायर की, जो देरी से की गई थी और इसलिए मान्य नहीं होनी चाहिए।

BPCL (प्रतिवादी) का पक्ष:

  1. BPCL का फैसला सही था
    • BPCL का कहना था कि लाइसेंस रद्द करने का फैसला सही था और कंपनी के अनुबंध प्रावधानों के अनुरूप था
  2. मध्यस्थ के फैसले को चुनौती देने का अधिकार था
    • BPCL ने तर्क दिया कि उन्होंने पहली याचिका गलती से गलत तरीके से दायर की थी, इसलिए उन्होंने दूसरी याचिका दायर करने का अधिकार सुरक्षित रखा।
  3. BPCL ने दूसरी याचिका उचित समय पर दायर की
    • BPCL के अनुसार, मध्यस्थता कानून (Arbitration Act) की धारा 14 के तहत उन्हें दूसरी याचिका दायर करने का अधिकार था

अदालत का फैसला

  • पटना उच्च न्यायालय ने BPCL के पक्ष में फैसला सुनाया और उनकी दूसरी याचिका को वैध माना।
  • अदालत ने कहा कि BPCL ने पहली याचिका गलती से वापस ली थी, लेकिन दूसरी याचिका करने का उनका अधिकार था
  • न्यायालय ने यह भी माना कि BPCL की याचिका समय सीमा के भीतर थी क्योंकि पहली याचिका गलती से वापस ली गई थी
  • M/s Dwivedi & Sons की याचिका खारिज कर दी गई और BPCL को मध्यस्थ के फैसले के खिलाफ सुनवाई जारी रखने की अनुमति दी गई।

निष्कर्ष

यह मामला व्यवसायिक अनुबंधों, मध्यस्थता (Arbitration) और समय सीमा (Limitation) के कानूनी प्रावधानों से जुड़ा था।

  • न्यायालय ने BPCL को राहत दी, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यदि कोई याचिका तकनीकी कारणों से गलत दायर की जाती है, तो उसे सही करने का अवसर दिया जा सकता है।
  • M/s Dwivedi & Sons को कोर्ट में हार का सामना करना पड़ा और BPCL को मध्यस्थता के फैसले को चुनौती देने का कानूनी अधिकार मिल गया।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां
क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NDQjMTAyMSMyMDE5IzEjTg==-bqJxyHMqtJs=

 


Abhishek Kumar

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