निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक ठेकेदार द्वारा दायर की गई याचिका का निपटारा करते हुए उसे निष्प्रभावी (infructuous) घोषित कर दिया क्योंकि याचिकाकर्ता की शिकायत पहले ही विभाग द्वारा हल कर दी गई थी। याचिका में ठेकेदार ने ग्रामीण कार्य विभाग, बिहार सरकार द्वारा उसे डिबार (प्रतिबंधित) करने के आदेश को चुनौती दी थी।
यह मामला सिविल रिट न्यायक्षेत्र मामला संख्या 22069/2019 के रूप में दर्ज था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से निम्नलिखित कार्रवाईयों को रद्द करने की मांग की थी:
- दिनांक 13.09.2019 को ग्रामीण कार्य विभाग द्वारा जारी आदेश (पत्र संख्या 4037), जिसमें सभी अधीक्षण अभियंताओं और कार्यपालक अभियंताओं को निर्देश दिया गया था कि वे 5697 किलोमीटर सड़कों का निरीक्षण करें और किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में ठेकेदार को तुरंत डिबार कर दें।
- इस निर्देश के तहत कार्यपालक अभियंता, गोपालगंज-II द्वारा याचिकाकर्ता को 17.09.2019 एवं 24.09.2019 को डिबार करने का आदेश।
याचिकाकर्ता का कहना था कि निरीक्षण की कार्रवाई एकतरफा की गई, और उन्हें अपनी बात रखने का कोई मौका नहीं दिया गया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन है।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि केवल एक विभागीय पत्र के आधार पर सभी ठेकेदारों को बिना सुनवाई के डिबार करने का निर्देश पूरी तरह से मनमाना और गैरकानूनी है। उन्होंने कोर्ट से आग्रह किया कि डिबार करने के आदेशों को निरस्त किया जाए और उन्हें अन्य निविदाओं में भाग लेने की अनुमति दी जाए।
लेकिन जब यह मामला 13.12.2022 को मुख्य न्यायाधीश और माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई में आया, तो याचिकाकर्ता के वकील ने सूचित किया कि उनकी शिकायत अब सुलझ चुकी है — यानी डिबारमेंट हटा लिया गया है या उसका प्रभाव समाप्त कर दिया गया है। इसलिए अब इस याचिका का कोई औचित्य नहीं बचा था।
इसके परिणामस्वरूप, पटना हाई कोर्ट ने याचिका को निष्प्रभावी घोषित करते हुए समाप्त कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह मामला यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई सरकारी विभाग ठेकेदारों को डिबार या ब्लैकलिस्ट करता है, तो यह प्रक्रिया कानूनी और न्यायिक सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए। बिना सूचना या सुनवाई के लिए किसी को दंडित करना प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है।
हालांकि कोर्ट ने इस मामले में किसी विशेष कानूनी प्रश्न पर निर्णय नहीं दिया, फिर भी यह ठेकेदारों को यह संदेश देता है कि यदि किसी कार्रवाई में प्रक्रियात्मक खामी हो, तो वे न्यायालय की शरण ले सकते हैं। साथ ही, सरकारी विभागों को भी यह सीख मिलती है कि उन्हें कोई भी सख्त कार्रवाई करने से पहले कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना आवश्यक है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या पत्र संख्या 4037 दिनांक 13.09.2019 के तहत डिबारमेंट का आदेश वैध था?
- निर्णय नहीं दिया गया। याचिका पहले ही निष्प्रभावी हो गई थी।
- क्या याचिकाकर्ता को बिना सुनवाई के डिबार करना संविधान के अनुच्छेद 14 और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन था?
- निर्णय नहीं दिया गया, क्योंकि याचिकाकर्ता की शिकायत पहले ही सुलझ गई थी।
- अंतिम निर्णय: याचिका को निष्प्रभावी मानते हुए समाप्त किया गया।
मामले का शीर्षक
मिथिलेश कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 22069 of 2019
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश
माननीय न्यायमूर्ति पार्थ सारथी
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री रविंद्र कुमार – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अजय (GA 5) – प्रतिवादियों की ओर से
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