चुनाव प्रचार में गाड़ी चलाने पर दर्ज FIR को पटना हाई कोर्ट ने किया रद्द

चुनाव प्रचार में गाड़ी चलाने पर दर्ज FIR को पटना हाई कोर्ट ने किया रद्द

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में उस FIR को खारिज कर दिया जो एक वाहन मालिक और चालक पर चुनाव के दौरान अवैध प्रचार करने के आरोप में दर्ज की गई थी। यह मामला 2019 लोकसभा चुनाव के समय का है जब एक गाड़ी को बैनर-पोस्टर लगे होने के कारण ज़ब्त किया गया था और उस पर निर्वाचन कानून व भारतीय दंड संहिता के तहत केस दर्ज हुआ था।

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से अपील की थी कि:

  • FIR में ऐसा कोई तथ्य नहीं है जिससे यह साबित हो कि कोई संगीन (cognizable) अपराध हुआ हो।
  • RP Act की धारा 130 तभी लागू होती है जब कोई व्यक्ति मतदान केंद्र के 100 मीटर के भीतर प्रचार करता हो, जिसका आरोप नहीं था।
  • धारा 133 भी तभी लागू होती है जब वाहन का उपयोग मतदाताओं को मतदान केंद्र तक लाने ले जाने में किया गया हो, जो यहां नहीं बताया गया।
  • IPC की धारा 188 के तहत कोई कार्यवाही तभी हो सकती है जब संबंधित अधिकारी खुद लिखित शिकायत दर्ज करें, जो इस मामले में नहीं हुआ।

राज्य सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया कि चुनाव वाले दिन प्रचार पूरी तरह निषिद्ध होता है और चूंकि गाड़ी में पार्टी के बैनर लगे थे, इसलिए FIR दर्ज करना उचित था।

कोर्ट ने दस्तावेजों की जांच के बाद कहा:

  • गाड़ी कहां ज़ब्त हुई यह स्पष्ट नहीं था, ना ही यह बताया गया कि वह किसी मतदान केंद्र के 100 मीटर के भीतर थी।
  • न तो यह आरोप था कि उस वाहन से मतदाताओं को लाया ले जाया जा रहा था, और न ही वाहन किराए पर लिया गया था।
  • IPC की धारा 188 के तहत कोई केस तभी दर्ज हो सकता है जब संबंधित सरकारी अधिकारी खुद कोर्ट में लिखित शिकायत दे — केवल FIR दर्ज करना क़ानूनी रूप से वैध नहीं है।

कोर्ट ने यह कहते हुए FIR को खारिज कर दिया कि यह मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय उन नागरिकों के लिए अहम है जो चुनावों के दौरान प्रशासनिक कार्रवाइयों के कारण कानूनी कार्रवाई का सामना करते हैं। इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि:

  • सिर्फ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाकर किसी पर केस नहीं चलाया जा सकता।
  • कानून के तहत FIR दर्ज करने से पहले सभी आवश्यक कानूनी प्रक्रियाओं का पालन जरूरी है।
  • प्रशासन को भी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का सम्मान करना चाहिए।

राजनीतिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों के लिए यह एक राहत देने वाला फैसला है क्योंकि यह उन्हें कानून के अनुचित इस्तेमाल से बचाता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या FIR में कोई संगीन अपराध दिखाया गया था?
    ➤ नहीं। RP Act की धारा 130 और 133 की आवश्यक शर्तें पूरी नहीं हुई थीं।
  • क्या IPC की धारा 188 के तहत FIR दर्ज की जा सकती है बिना सरकारी अधिकारी की लिखित शिकायत के?
    ➤ नहीं। CrPC की धारा 195(1) इसके लिए स्पष्ट रूप से मना करती है।
  • क्या ऐसा मुकदमा चलाना उचित है?
    ➤ नहीं। यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Parveen Amanullah v. State of Bihar, 2017 (3) PLJR 101
  • Dharmesh Prasad Verma v. State of Bihar, 2017 (1) PLJR 401

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • M.S. Ahlawat v. State of Haryana, (2000) 1 SCC 278
  • State of U.P. v. Mata Bhikh, (1994) 4 SCC 95
  • C. Muniappan v. State of Tamil Nadu, (2010) 9 SCC 567
  • Pratik Sinha v. State of Bihar, 2016 (4) PLJR 274
  • Anirudh Prasad Yadav @ Sadhu Yadav v. State of Bihar, Cr. Misc. No. 33259 of 2013

मामले का शीर्षक
Faisal Rahman & Anr. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No. 972 of 2019

उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 102

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री S.B.K. मंगलम और सुश्री अनीता कुमारी — याचिकाकर्ताओं की ओर से
  • सुश्री दिव्या वर्मा (AC to AAG-3) — राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTYjOTcyIzIwMTkjMSNO-pP2kb4jxKP4=

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Aditya Kumar

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