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दहेज हत्या का झूठा आरोप या न्याय की तलाश? – पटना हाईकोर्ट का विवेचनात्मक फैसला

पटना हाईकोर्ट ने क्रिमिनल मिसलेनियस केस संख्या 11361/2016 में एक ऐसे विवादास्पद मामले का निर्णय सुनाया, जिसमें एक युवती की संदिग्ध परिस्थितियों में जलकर मृत्यु हो गई थी। इस मामले में मृतका के ससुरालवालों पर दहेज हत्या (IPC की धारा 304B), साक्ष्य मिटाने (धारा 201), और सामूहिक अपराध (धारा 149) जैसे गंभीर आरोप लगे थे। परंतु मामले की गहराई से जांच और भौगोलिक तथ्यों के सामने आने पर न्यायालय ने इन गंभीर धाराओं में संज्ञान लेने को गलत करार दिया और केवल 498A/34 IPC में मुकदमा जारी रखने की अनुमति दी।

मामले की पृष्ठभूमि

  • मृतका: नंदिनी सिंह

  • शादी की तारीख: 10 जून, 2006 को कमलेश कुमार सिंह से हिन्दू रीति-रिवाज से विवाह हुआ।

  • शिकायतकर्ता: नंदिनी के पिता पशुपति सिंह ने 20 अक्टूबर 2010 को CJM, छपरा के समक्ष शिकायत दायर की।

  • आरोप: शादी के पहले और बाद में दहेज की मांग की जाती रही। अंततः 11 अक्टूबर 2010 को फोन पर नंदिनी ने फिर से प्रताड़ना की बात कही। दोपहर तक खबर आई कि वह जलकर मर चुकी है। आरोप लगाया गया कि सभी आरोपी शव लेकर फरार हो गए।

मामले की प्राथमिक जांच और विरोधाभास

  • FIR दर्ज: न्यायालय ने 156(3) CrPC के तहत शिकायत को एफआईआर में परिवर्तित किया, छपरा टाउन PS केस संख्या 247/2010, जिसमें धारा 323/498A/304B/201/34 IPC लगाई गईं।

  • जांच के निष्कर्ष: जांच अधिकारी ने पाया कि नंदिनी की मौत उत्तराखंड राज्य के उधम सिंह नगर जिले के छत्तरपुर गांव में 10 अक्टूबर 2010 की रात 9:40 बजे जलने से हुई थी।

  • स्थानीय पुलिस (छत्तरपुर) द्वारा P.M.R. No. 467/2010 दर्ज की गई थी, और 174 CrPC की प्रक्रिया के तहत शव पति को सौंपा गया था।

झूठा मामला या क्षेत्राधिकार का दुरुपयोग?

  • याचिकाकर्ता पक्ष ने तर्क दिया कि:

    1. मृतका की मृत्यु उत्तराखंड में हुई, न कि बिहार के छपरा जिले में।

    2. FIR में दावा किया गया कि घटना 11 अक्टूबर दोपहर को हुई, जबकि पुलिस रिपोर्ट में यह 10 अक्टूबर रात 9:40 की बताई गई।

    3. मृतका और उसका पति उत्तराखंड में अकेले रहते थे, और वहां किसी भी थाने में दहेज प्रताड़ना की कोई शिकायत नहीं दी गई थी।

    4. बिहार में दर्ज शिकायत का उद्देश्य सभी परिजन को झूठे मुकदमे में फँसाना प्रतीत होता है।

कोर्ट का विश्लेषण और फैसला

न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने मौखिक आदेश देते हुए कहा:

  1. 304B IPC (दहेज मृत्यु) का संज्ञान गलत लिया गया, क्योंकि:

    • घटना का स्थान बिहार में नहीं, उत्तराखंड में था।

    • मृतका की मृत्यु 7 वर्षों के भीतर हुई जरूर थी, लेकिन प्रत्यक्ष सबूत बिहार में नहीं मिले।

    • पुलिस जांच ने संदेह को खारिज कर दिया था।

  2. 201 IPC (साक्ष्य मिटाना) एवं 149 IPC (सामूहिक अपराध की साजिश) का संज्ञान भी अवास्तविक ठहराया गया।

  3. 498A/34 IPC (दहेज प्रताड़ना और आपराधिक साजिश) का ट्रायल जारी रहेगा

अदालत के आदेश

  • धारा 304B/149/201 के अंतर्गत संज्ञान रद्द किया गया।

  • आरोपियों को तीन सप्ताह के भीतर निचली अदालत में आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया।

  • न्यायालय को शीघ्रता से मुकदमा निपटाने का आदेश दिया गया।

  • मामला جزوی रूप से स्वीकृत किया गया।

निष्कर्ष और व्यापक महत्व

यह निर्णय एक महत्वपूर्ण मिसाल प्रस्तुत करता है कि:

  1. केस का क्षेत्राधिकार बहुत अहम है – यदि अपराध किसी अन्य राज्य में हुआ हो, तो बिहार जैसे राज्य में बिना साक्ष्य के संज्ञान नहीं लिया जा सकता।

  2. फर्जी मुकदमे और गलत प्राथमिकी से निर्दोष लोगों को बचाना ज़रूरी है।

  3. दहेज प्रथा जैसे सामाजिक कुप्रथाओं पर कठोर कार्रवाई जरूरी है, लेकिन सच्चाई और तथ्यों की भी जांच अनिवार्य है।

सामाजिक सन्देश

इस मामले से यह स्पष्ट होता है कि हर दहेज संबंधी मामला वास्तविक नहीं होता, और न ही हर आरोपी दोषी। अदालत का यह विवेचन यह सिखाता है कि सत्य, तर्क और न्याय का संतुलन हमेशा बनाए रखना चाहिए — ताकि न केवल अपराधियों को सज़ा मिले, बल्कि निर्दोषों को भी राहत।

पूरा
फैसला पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें:

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NiMxMTM2MSMyMDE2IzEjTg==-yiKSL91b9cw=

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