स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के निरस्तीकरण को पटना हाईकोर्ट ने सही ठहराया – उम्र में गड़बड़ी और साक्ष्य की कमी बनी वजह

स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के निरस्तीकरण को पटना हाईकोर्ट ने सही ठहराया – उम्र में गड़बड़ी और साक्ष्य की कमी बनी वजह

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण फैसले में उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें एक व्यक्ति की स्वतंत्रता सेनानी सम्मान पेंशन बहाल करने की मांग की गई थी। इस पेंशन की स्वीकृति 1987 में हुई थी, यह दावा करते हुए कि उन्होंने 1942 से 1946 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और भूमिगत रहे।

लेकिन 2001 में एक शिकायत के बाद जिला प्रशासन ने जांच की। इसमें पाया गया कि आवेदक की उम्र को लेकर कई दस्तावेजों में विरोधाभास है। कुछ दस्तावेजों के अनुसार, 1942 में वह केवल 9 या 11 वर्ष के थे, ऐसे में यह मानना मुश्किल है कि वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भूमिगत रहे होंगे।

इसके बाद मेडिकल बोर्ड ने दो बार उम्र की जांच की और बताया कि उस समय वह बहुत छोटे थे। इसके अलावा, जिन दस्तावेजों के आधार पर वह पेंशन मांग रहे थे, वे भी या तो संदिग्ध थे या पर्याप्त नहीं थे। सिर्फ एक ‘पर्सनल नॉलेज सर्टिफिकेट’ के आधार पर उन्होंने दावा किया था, जिसे किसी दूसरे स्वतंत्रता सेनानी ने जारी किया था। लेकिन इस सर्टिफिकेट की न तो राज्य सरकार ने पुष्टि की और न ही यह साबित हो सका कि अन्य दस्तावेज उपलब्ध नहीं थे।

2011 में उन्होंने पेंशन निरस्तीकरण के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जो 2015 में खारिज कर दी गई। इसके खिलाफ उन्होंने लिटर्स पेटेंट अपील (एलपीए) दायर की, जिसमें उनके निधन के बाद उनकी पत्नी को पक्षकार बनाया गया। इस अपील को भी कोर्ट ने खारिज कर दिया।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला दर्शाता है कि सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रमाणित और सत्य दस्तावेजों की आवश्यकता होती है। ‘सम्मान पेंशन’ जैसी योजनाएं उन वास्तविक स्वतंत्रता सेनानियों के लिए हैं जिन्होंने देश की आजादी के लिए संघर्ष किया। झूठे या अधूरे दावों से सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग होता है।

यह निर्णय उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी है जो बिना प्रमाण केवल व्यक्तिगत सिफारिशों के आधार पर लाभ लेने की कोशिश करते हैं। यह सरकार और न्यायपालिका की जिम्मेदारी को भी रेखांकित करता है कि वे ऐसे मामलों की जांच ईमानदारी से करें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • मुद्दा: क्या भारत सरकार द्वारा सम्मान पेंशन को रद्द करना वैध था?
    • निर्णय: हाँ, दस्तावेजों की कमी और उम्र में गड़बड़ी के कारण निर्णय उचित था।
  • मुद्दा: क्या केवल Personal Knowledge Certificate के आधार पर पेंशन मिल सकती है?
    • निर्णय: नहीं, जब तक राज्य सरकार इसे सत्यापित न करे और यह न कहे कि अन्य दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं।
  • मुद्दा: क्या आवेदक ने भूमिगत रहने के प्रमाण दिए?
    • निर्णय: नहीं, कोई विश्वसनीय प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Gurdial Singh vs Union Of India [(2001) 8 SCC 8]

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • उपरोक्त केस को भिन्न बताया गया क्योंकि उसमें पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध थे।

मामले का शीर्षक
Fulwati Devi v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर
L.P.A. No. 2265 of 2015 in CWJC No. 21526 of 2011

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 89

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सार्थी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री पवन कुमार सिंह (अपीलकर्ता की ओर से)
  • श्री जी.पी. ओझा, जी.पी. 22; श्री सर्वेश कुमार, जी.पी. 24 (बिहार राज्य की ओर से)
  • डॉ. के.एन. सिंह, एएसजी; श्री रविंद्र कुमार, सीजीसी; श्री अमरेंद्र नाथ वर्मा, वरिष्ठ पैनल काउंसिल; श्री राकेश कुमार नं.1, सीजीसी (भारत सरकार की ओर से)

निर्णय का लिंक
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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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