निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में यह स्पष्ट किया है कि GST (वस्तु एवं सेवा कर) कानून में अपील दायर करने की समयसीमा “कैलेंडर माह” के अनुसार मानी जाएगी, न कि केवल 30 या 90 दिनों के रूप में।
इस मामले में एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, जो पटना में पंजीकृत है, ने 27 दिसंबर 2023 को राज्य कर विभाग द्वारा जारी टैक्स डिमांड आदेश को चुनौती दी थी। आदेश में जुलाई 2017 से मार्च 2018 तक की अवधि के लिए ₹81.21 लाख टैक्स, ₹77.97 लाख ब्याज और ₹8.12 लाख पेनल्टी जमा करने को कहा गया था।
कंपनी ने 26 अप्रैल 2024 को GST अपील फॉर्म APL-01 के माध्यम से ऑनलाइन अपील की। लेकिन अपीलीय प्राधिकारी ने 18 मई 2024 को यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि यह अपील 120 दिनों की समयसीमा (90 दिन अपील की मूल समयसीमा + 30 दिन की क्षम्य देरी) के भीतर दाखिल नहीं हुई।
कंपनी ने अदालत के समक्ष यह दलील दी कि CGST/BGST कानून में अपील की समयसीमा “महीने” में दी गई है, न कि “दिनों” में। इसलिए 3 महीने की मूल समयसीमा और 1 महीने की अतिरिक्त समयसीमा कुल मिलाकर 4 कैलेंडर महीनों की अवधि होती है। इस प्रकार, 26 अप्रैल को दायर की गई अपील समयसीमा के भीतर थी।
पटना हाई कोर्ट ने कंपनी की दलील को स्वीकार किया और कहा कि जब कानून में “तीन महीने” और “एक महीना” लिखा गया है, तो इसे “90 दिन” और “30 दिन” नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि अपील कैलेंडर माह के आधार पर गिनी जानी चाहिए, न कि निश्चित दिनों की संख्या से।
अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि “महीना” शब्द का अर्थ ब्रिटिश कैलेंडर के अनुसार होता है, जिसमें हर महीने के दिन अलग-अलग होते हैं। इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि अपील समयसीमा के भीतर दायर की गई थी और अपीलीय प्राधिकारी का उसे खारिज करना गलत था।
न्यायालय ने अपीलीय आदेश को रद्द करते हुए अपीलीय प्राधिकारी को निर्देश दिया कि वह अपील को फिर से स्वीकार करे और मामले को मेरिट के आधार पर सुने।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला उन सभी व्यापारियों और करदाताओं के लिए राहत लेकर आया है जो तकनीकी कारणों से समयसीमा से थोड़ा आगे या पीछे अपील दायर कर पाते हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि “महीना” शब्द का मतलब कैलेंडर महीना है, न कि 30 दिन।
इससे उन व्यापारिक इकाइयों को राहत मिलेगी जिनकी अपील महज गणनात्मक अंतर के चलते खारिज की जाती रही है। इसके साथ ही सरकारी अधिकारियों को भी यह निर्देश मिला है कि वे कानून की भाषा को उसकी मूल भावना में समझें और लागू करें।
यह निर्णय टैक्स मामलों में न्याय के सिद्धांत और पारदर्शिता को और मजबूत करता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- मुद्दा: CGST/BGST कानून की धारा 107 में “तीन महीने” और “एक महीना” को 90 और 30 दिनों के रूप में माना जाए या कैलेंडर महीनों के रूप में?
- निर्णय: कोर्ट ने कहा कि “महीना” का अर्थ कैलेंडर महीना है, न कि दिन। अपील समयसीमा में दायर मानी गई।
- मुद्दा: क्या अपीलीय प्राधिकारी का बिना मेरिट पर सुने अपील को समयसीमा के आधार पर खारिज करना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है?
- निर्णय: हां। अपीलीय प्राधिकारी को पहले कारणों को देखना चाहिए था।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of Himachal Pradesh v. Himachal Techno Engineers, (2010) 12 SCC 210
- Bibi Salma Khatoon v. State of Bihar, (2001) 7 SCC 197
- Econ Antri Ltd. v. Rom Industries Ltd., (2014) 11 SCC 769
- State of Bihar v. Kalika Kuer @ Kalika Singh & Ors., (2003) 5 SCC 448
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Econ Antri Ltd. v. Rom Industries Ltd., (2014) 11 SCC 769
- State of West Bengal v. Rajpath Contractors and Engineers Ltd., 2024 INSC 477
- Saketh India Ltd. v. India Securities Ltd., (1999) 3 SCC 1
- Tarun Prasad Chatterjee v. Dinanath Sharma, (2000) 8 SCC 649
मामले का शीर्षक
M/s Brand Protection Services Pvt. Ltd. बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 14957 of 2024
उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 881
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद
माननीय श्री न्यायमूर्ति रमेश चंद मालवीय
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री अनुभव खवाला, अधिवक्ता — याचिकाकर्ता की ओर से
श्री विवेक प्रसाद, सरकारी अधिवक्ता (GP-7) — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
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