पर्सनल सुनवाई के बिना जीएसटी असेसमेंट अमान्य: पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

पर्सनल सुनवाई के बिना जीएसटी असेसमेंट अमान्य: पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक व्यवसायी द्वारा दायर रिट याचिका में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। याचिकाकर्ता ने जीएसटी के तहत पास किए गए असेसमेंट आदेश को चुनौती दी थी, यह कहते हुए कि यह आदेश व्यक्तिगत सुनवाई दिए बिना पारित किया गया, जो कानून का उल्लंघन है।

यह मामला एक व्यवसाय से जुड़ा है जो क्रिएटिव बिल्डर्स के नाम से संचालित है। याचिकाकर्ता ने दो मुख्य आधारों पर अदालत का दरवाजा खटखटाया:

  1. कि यह आदेश समय-सीमा (limitation) के बाहर पारित किया गया है।
  2. कि आदेश को पास करते समय जीएसटी अधिनियम की धारा 75(4) के तहत जरूरी व्यक्तिगत सुनवाई नहीं दी गई।

हाई कोर्ट ने पहले बिंदु पर कहा कि इस तरह के तर्क पहले ही CWJC No. 4180 of 2024 (M/s Barhonia Engicon Pvt. Ltd. v. Union of India) जैसे मामलों में खारिज किए जा चुके हैं।

लेकिन कोर्ट ने दूसरे बिंदु यानी व्यक्तिगत सुनवाई न देने को गंभीरता से लिया। जीएसटी अधिनियम की धारा 75(4) कहती है कि जब भी किसी टैक्सपेयर के खिलाफ प्रतिकूल आदेश पारित किया जाना हो, तो उसे व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर दिया जाना अनिवार्य है।

यहां ऐसा अवसर याचिकाकर्ता को नहीं दिया गया, जो कानून का उल्लंघन है। इसी वजह से पटना हाई कोर्ट ने 21.08.2023 को पारित असेसमेंट आदेश को रद्द कर दिया।

कोर्ट ने मामले को फिर से असेसिंग ऑफिसर को भेजते हुए ये निर्देश दिए:

  • याचिकाकर्ता को 06.01.2025 को असेसिंग ऑफिसर के समक्ष पेश होना होगा।
  • अगर वह उस दिन या अगले स्थगित तारीख पर उपस्थित होते हैं, तो उन्हें पूरा अवसर देकर ही नया आदेश पारित किया जाए।
  • नया आदेश इस निर्णय की तारीख से तीन महीने के भीतर या विधि द्वारा निर्धारित समय-सीमा के भीतर (जो भी बाद में हो) पारित किया जाना चाहिए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला करदाताओं और कर विभाग, दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आया है:

  • आम जनता के लिए: यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि कर विभाग बिना आपकी सुने कोई निर्णय नहीं ले सकता। यदि कोई निर्णय बिना सुनवाई के हुआ है, तो आप उसे चुनौती दे सकते हैं।
  • सरकारी अधिकारियों के लिए: यह स्पष्ट किया गया है कि कर मामलों में प्रक्रिया का पालन अनिवार्य है। यदि सुनवाई का मौका नहीं दिया गया, तो पूरा आदेश रद्द किया जा सकता है।
  • कानूनी प्रक्रिया के लिए: “प्राकृतिक न्याय” के सिद्धांतों की रक्षा की गई है—हर व्यक्ति को अपनी बात रखने का अधिकार है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या असेसमेंट आदेश समय सीमा में था?
    • कोर्ट का उत्तर: हां, पहले से तय हो चुका मामला (CWJC No. 4180 of 2024)
    • कारण: पहले के मामलों में याचिकाकर्ता की यही दलील खारिज की जा चुकी है।
  • क्या व्यक्तिगत सुनवाई न देने से आदेश अमान्य हो जाता है?
    • कोर्ट का उत्तर: हां
    • कारण: धारा 75(4) के उल्लंघन से प्रक्रिया दोष उत्पन्न हुआ है, जो आदेश को रद्द करने का पर्याप्त आधार है।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • M/s Barhonia Engicon Private Limited v. Union of India & Ors., CWJC No. 4180 of 2024, दिनांक 27.11.2024

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • M/s Barhonia Engicon Private Limited v. Union of India & Ors., CWJC No. 4180 of 2024

मामले का शीर्षक
Shri Ishan Ali v. Union of India & Ors.

केस नंबर
CWJC No. 19227 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री के. विनोद चंद्रन
माननीय श्री न्यायमूर्ति पार्थ सारथी

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: कोई पेश नहीं हुआ
प्रत्यर्थी की ओर से: डॉ. अंशुमान सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल

निर्णय का लिंक
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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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