पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला: जीएसटी रिटर्न में क्लेरिकल गलती को सुधारने की मिली अनुमति

पटना हाई कोर्ट का अहम फैसला: जीएसटी रिटर्न में क्लेरिकल गलती को सुधारने की मिली अनुमति

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक व्यवसायिक फर्म को राहत दी है, जिसने अप्रैल 2019 के लिए अपनी जीएसटी रिटर्न (Form GSTR-3B) भरते समय एक क्लेरिकल गलती कर दी थी। इस गलती के कारण फर्म ने टैक्स का भुगतान गलत हेड (IGST) में कर दिया, जबकि उसे CGST और SGST में बांटकर भुगतान करना था।

व्यवसायी एक टू-व्हीलर डीलर है जो बिहार में कार्यरत है और अपने वाहन राज्य से बाहर स्थित निर्माता से खरीदता है। इसलिए आम तौर पर IGST लगता है। अप्रैल 2019 के लिए GSTR-1 सही ढंग से दाखिल किया गया था, लेकिन GSTR-3B में क्लेरिकल गलती हो गई, जिसमें कर योग्य मूल्य और टैक्स की राशि गलत दर्ज हो गई।

इस गलती का पता चलते ही व्यवसायी ने विभाग को आवेदन देकर इस गलती को सुधारने की मांग की, ताकि GSTR-3B को GSTR-1 के अनुरूप ठीक किया जा सके। परंतु विभाग ने यह कहकर आवेदन खारिज कर दिया कि एक बार फॉर्म दाखिल हो जाने के बाद उसे ठीक करने की कोई व्यवस्था नहीं है। इसके साथ ही विभाग ने व्यवसायी पर ₹2.49 करोड़ का टैक्स, ब्याज और जुर्माना लगाने का आदेश पारित किया।

इस आदेश को व्यवसायी ने कोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट के समक्ष उसने यह भी तर्क रखा कि उसकी इलेक्ट्रॉनिक क्रेडिट लेजर में पर्याप्त ITC (इनपुट टैक्स क्रेडिट) उपलब्ध है और यह गलती जानबूझकर नहीं की गई थी। विभाग ने व्यवसायी को सलाह दी थी कि वह CGST और SGST दोबारा जमा करे और IGST की अधिक राशि की रिफंड के लिए आवेदन करे। लेकिन कोर्ट ने पाया कि यह प्रक्रिया कानून में स्पष्ट रूप से नहीं दी गई है और यह अनावश्यक बोझ डालती है।

कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के एक हालिया फैसले (Aberdare Technologies Pvt. Ltd. v. CBIC) का हवाला देते हुए कहा कि ऐसी गलती को सुधारा जा सकता है, खासकर जब इससे सरकार को कोई वित्तीय नुकसान नहीं होता है।

अंततः, पटना हाई कोर्ट ने व्यवसायी को राहत दी और आदेश दिया कि संबंधित अधिकारी GSTR-3B को GSTR-1 के अनुसार एक महीने के भीतर ठीक करें। अगर ऑनलाइन पोर्टल उपलब्ध नहीं है, तो व्यवसायी मैन्युअल आवेदन दे सकता है।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय उन व्यवसायियों और करदाताओं के लिए राहत लेकर आया है जो छोटी-मोटी टाइपिंग या क्लेरिकल गलती के कारण भारी टैक्स, ब्याज और जुर्माने का सामना करते हैं। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि जहां कोई वित्तीय हानि नहीं हो रही, वहां करदाता को गलती सुधारने का अवसर मिलना चाहिए। यह फैसला शासन में न्यायिक सहानुभूति और व्यावहारिक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या GSTR-3B को बाद में GSTR-1 के अनुसार सुधारा जा सकता है?
    ✔ हां, क्लेरिकल गलती की स्थिति में सुधार की अनुमति दी गई।
  • क्या गलत हेड में टैक्स जमा करने पर दोबारा भुगतान और फिर रिफंड की सलाह उचित है?
    ✘ नहीं, यह प्रक्रिया कानून द्वारा समर्थित नहीं है और व्यर्थ की जटिलता उत्पन्न करती है।
  • क्या विभाग द्वारा ₹2.49 करोड़ का टैक्स और जुर्माना उचित था?
    ✘ नहीं, यह अनुचित और संविधान के अनुच्छेद 265 के विरुद्ध था।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Kerala High Court – WP(C) No. 35868 of 2018

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Aberdare Technologies Pvt. Ltd. v. CBIC, बॉम्बे हाई कोर्ट, WP No. 7912/2024
  • Engineers India Pvt. Ltd. v. Union of India

मामले का शीर्षक

Om Traders बनाम भारत सरकार एवं अन्य

केस नंबर

CWJC No. 16509 of 2024

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति एस. बी. पी. डी. सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से:
    श्री डी. वी. पाठी, श्री सदाशिव तिवारी, श्री हिरेश करन, श्रीमती शिवानी देवला, श्रीमती प्राची पल्लवी
  • प्रतिवादियों की ओर से:
    श्री अंशुमान सिंह (वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता, CGST), श्री विकास कुमार (SC-11)

निर्णय का लिंक

ebbf04d1-bbaa-4e54-84ad-0d67bddbfe83.pdf

“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”

Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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