निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला किसानों द्वारा गन्ने की कीमत को लेकर दायर की गई जनहित याचिका (PIL) से जुड़ा है। किसान संगठन और एक किसान ने दावा किया कि उन्होंने जो गन्ना (COP-2061 किस्म) निजी शुगर मिल को बेचा, उसे गलत तरीके से “रिजेक्टेड क्वालिटी” मान लिया गया और इसलिए उन्हें उचित भुगतान नहीं मिला।
किसानों का कहना था कि सरकार ने इस किस्म को “सामान्य/मध्यम” गुणवत्ता (Medium Quality) घोषित किया है, जिसका मूल्य ₹290 प्रति क्विंटल तय है। लेकिन मिल ने इसे “रिजेक्टेड” बताकर सिर्फ ₹265 प्रति क्विंटल का भुगतान किया, जिससे उन्हें नुकसान हुआ।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उन्होंने कृषि मंत्रालय और गन्ना आयुक्त, बिहार को शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसलिए उन्होंने इसे किसानों के हित में दाखिल की गई जनहित याचिका बताया।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें:
- COP-2061 को सरकार ने “सामान्य” क्वालिटी माना है।
- मिल ने गलत तरीके से इसे रिजेक्टेड क्वालिटी दिखाकर कम भुगतान किया।
- सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि गन्ने का सही मूल्यांकन और भुगतान हो।
राज्य सरकार और मिल की दलीलें:
- राज्य ने बताया कि जून 2018 की मंत्री-स्तरीय बैठक में COP-2061 किस्म को पहले ही “सामान्य” क्वालिटी मान लिया गया था। कोई दस्तावेज नहीं है जिससे साबित हो कि इसे रिजेक्टेड दिखाया गया।
- शुगर मिल ने कहा कि यह PIL नहीं, बल्कि व्यक्तिगत विवाद है। किसानों और निजी मिल के बीच भुगतान का मामला जनहित याचिका के तहत नहीं सुना जा सकता।
- उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि निजी अनुबंध मामलों में जब तक कोई सार्वजनिक कर्तव्य (Public Duty) न हो, तब तक हाई कोर्ट में रिट याचिका नहीं चल सकती।
- बिहार गन्ना (आपूर्ति और क्रय का विनियमन) अधिनियम, 1981 और नियम 1978 में पहले से ही इस तरह के विवाद सुलझाने का प्रावधान है। किसानों को Cane Officer और कलेक्टर के पास जाना चाहिए था।
कोर्ट की सोच:
हाई कोर्ट ने कहा कि—
- यह मामला किसानों और निजी मिल के बीच का भुगतान विवाद है। इसे जनहित याचिका के रूप में नहीं लाया जा सकता।
- अधिनियम, 1981 की धारा 46 और नियम 34 में साफ-साफ प्रक्रिया दी गई है कि गन्ने की कीमत संबंधी विवाद Cane Officer और कलेक्टर तय करेंगे।
- जब वैकल्पिक और प्रभावी उपाय उपलब्ध हो, तो हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप नहीं करेगा, जब तक कि मामला मौलिक अधिकारों का उल्लंघन, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का हनन या अधिकार क्षेत्र से बाहर का आदेश न हो।
- चूँकि ऐसा कुछ यहाँ नहीं था, इसलिए यह याचिका स्वीकार्य नहीं है।
नतीजा:
हाई कोर्ट ने जनहित याचिका खारिज कर दी। हालांकि, किसानों को यह स्वतंत्रता दी गई कि वे चाहें तो कानून के तहत उपलब्ध वैकल्पिक उपाय अपनाएँ।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव
- व्यक्तिगत विवाद को PIL का रूप नहीं दिया जा सकता: किसानों को निजी भुगतान विवाद में जनहित याचिका दायर करने की अनुमति नहीं है।
- सही कानूनी रास्ता: गन्ना अधिनियम, 1981 में विवाद समाधान की स्पष्ट प्रक्रिया दी गई है। किसानों को उसी का उपयोग करना चाहिए।
- न्यायिक अनुशासन: हाई कोर्ट ने दोहराया कि वैकल्पिक उपाय होते हुए कोर्ट का सीधा हस्तक्षेप उचित नहीं है।
- नीति पर असर: यह फैसला बताता है कि किसानों के हित में बने कानून और नियमों का पालन करके ही न्याय मिलेगा, न कि सीधे PIL के जरिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या यह जनहित याचिका स्वीकार्य थी?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: यह निजी भुगतान विवाद था, जनहित का मामला नहीं।
- क्या हाई कोर्ट अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता था?
- निर्णय: नहीं।
- कारण: अधिनियम, 1981 और नियम 34 के तहत वैकल्पिक उपाय मौजूद था। कोई अपवाद स्थिति नहीं थी।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- General Manager, Kisan Sahkari Chini Mills Ltd. v. Satrughan Nishad, (2003) 8 SCC 639 — निजी मिल पर रिट केवल तब चल सकता है जब सार्वजनिक दायित्व हो।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Shri Anandi Mukta Sadguru Trust v. V.R. Rudani, (1989) 2 SCC 691 — निजी संस्था पर रिट तभी चलेगा जब वह सार्वजनिक दायित्व निभा रही हो।
- Whirlpool Corporation v. Registrar of Trade Marks, (1998) 8 SCC 1 — वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर हाई कोर्ट रिट स्वीकार नहीं करेगा, सिवाय खास परिस्थितियों के।
मामले का शीर्षक
Kisan Sangharsh Samiti & Anr. v. State of Bihar & Ors.
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 20252 of 2018
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 8
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह
माननीय श्री न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता की ओर से: श्री मधुरेन्द्र कुमार
- राज्य की ओर से: श्री योगेन्द्र प्रसाद सिन्हा (AAG-7), श्री शंकर कुमार (A.C. to AAG-7)
- शुगर मिल (प्रतिवादी संख्या 6) की ओर से: श्री वाई.वी. गिरि, श्री आशीष गिरि, श्री रजत कुमार तिवारी
निर्णय का लिंक
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