पटना उच्च न्यायालय का निर्णय : पीडीएस लाइसेंस रद्दीकरण को प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन मानते हुए निरस्त किया गया (2021)

पटना उच्च न्यायालय का निर्णय : पीडीएस लाइसेंस रद्दीकरण को प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन मानते हुए निरस्त किया गया (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लाइसेंस को रद्द करने से पहले उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। यदि अधिकारी बिना सुनवाई दिए या नोटिस दिए सीधे लाइसेंस रद्द कर देते हैं, तो यह प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) का उल्लंघन होगा।

यह मामला पटना जिले के एक लाइसेंसधारी से जुड़ा था। 25.01.2020 को पटना सदर के अनुमंडल पदाधिकारी (SDO) ने उनका पीडीएस लाइसेंस रद्द कर दिया। उन पर आरोप था कि उन्होंने सार्वजनिक वितरण के लिए आए अनाज का दुरुपयोग किया और उसे अपने भाई की चावल मिल में भिजवा दिया

याचिकाकर्ता (लाइसेंसधारी) ने इस आदेश को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उनका तर्क था कि आदेश पूरी तरह गैरकानूनी है क्योंकि न तो उन्हें कोई शो कॉज नोटिस दिया गया और न ही अपनी बात रखने का मौका। यह सीधा-सीधा बिहार टारगेटेड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (कंट्रोल) आदेश, 2016 के नियम 27(ii) का उल्लंघन है।

राज्य सरकार ने जवाब में कहा कि याचिकाकर्ता को अपील का वैकल्पिक उपाय (alternative remedy) उपलब्ध था, इसलिए सीधे रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती। साथ ही, यह भी कहा गया कि आरोप बेहद गंभीर हैं और इसमें न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।

माननीय न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनीं और कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान दिया:

  1. अपील के वैकल्पिक उपाय पर:
    न्यायालय ने कहा कि यह सही है कि अगर अपील का प्रावधान हो, तो सामान्यतः उच्च न्यायालय रिट दाखिल करने पर हस्तक्षेप नहीं करता। लेकिन यह कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है। जहाँ प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हो, वहाँ उच्च न्यायालय दखल दे सकता है।
  2. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन:
    यह स्वीकार किया गया कि याचिकाकर्ता को कोई नोटिस नहीं दिया गया और न ही सुनवाई का मौका। यह स्पष्ट रूप से नियम 27(ii) और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  3. न्यायिक समीक्षा का दायरा:
    न्यायालय ने कहा कि अदालत का काम निर्णय की गुणवत्ता जाँचना नहीं बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया की जाँच करना है। यहाँ प्रक्रिया ही दोषपूर्ण थी।

अदालत का अंतिम निर्णय

  • 25.01.2020 को SDO, पटना सदर द्वारा दिया गया लाइसेंस रद्दीकरण आदेश निरस्त कर दिया गया।
  • याचिकाकर्ता को लाइसेंस बहाल करने का अधिकार दिया गया।
  • अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकार चाहे तो नए सिरे से कार्यवाही शुरू कर सकती है, लेकिन यह केवल कानून और प्राकृतिक न्याय के नियमों के अनुसार ही हो सकती है।
  • रिट याचिका स्वीकार की गई।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव

  • पीडीएस डीलरों के लिए: यह फैसला बताता है कि लाइसेंस रद्द करने से पहले नोटिस और सुनवाई देना अनिवार्य है। गंभीर आरोप होने पर भी प्रक्रिया का पालन ज़रूरी है।
  • सरकारी अधिकारियों के लिए: यह आदेश याद दिलाता है कि भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई करते समय भी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना अनिवार्य है।
  • आम जनता के लिए: यह फैसला भरोसा दिलाता है कि कानून में न्याय केवल परिणाम पर नहीं बल्कि न्यायपूर्ण प्रक्रिया पर भी निर्भर करता है।
  • कानून के विकास के लिए: यह निर्णय बताता है कि वैकल्पिक उपाय होने पर भी यदि प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हो, तो उच्च न्यायालय रिट याचिका पर दखल दे सकता है।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या वैकल्पिक अपील उपाय होने पर भी रिट याचिका स्वीकार की जा सकती है?
    • हाँ। यदि प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन हुआ हो, तो रिट याचिका स्वीकार की जा सकती है।
  • क्या बिना सुनवाई और नोटिस दिए लाइसेंस रद्द किया जा सकता है?
    • नहीं। यह नियम 27(ii) और प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या याचिकाकर्ता को राहत दी जानी चाहिए?
    • हाँ। आदेश निरस्त कर लाइसेंस बहाल किया गया, लेकिन सरकार को नए सिरे से कार्यवाही करने की छूट दी गई।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Union of India v. Tantia Construction (P) Ltd., (2011) 5 SCC 697
  • M.P. State Agro Industries Development Corporation Ltd. v. Jahan Khan, (2007) 10 SCC 88
  • L.K. Verma v. H.M.T. Ltd., (2006) 2 SCC 269

मामले का शीर्षक

नरेंद्र प्रसाद गुप्ता बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 8769 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 133

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति मधुरेश प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ता की ओर से: श्री राजीव कुमार लाभ, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों की ओर से: श्री ललित किशोर, महाधिवक्ता

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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