निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आपराधिक अपील में निचली अदालत द्वारा दिए गए दोषसिद्धि आदेश को रद्द कर दिया। निचली अदालत ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO अधिनियम की धारा 4 के तहत दस साल की सजा सुनाई थी। लेकिन हाई कोर्ट ने कहा कि अगर यह साबित नहीं हो कि पीड़िता घटना के समय 18 साल से कम उम्र की थी, तो केवल “अनुमान” के आधार पर आरोपी को सजा नहीं दी जा सकती।
इस मामले में अभियोजन पक्ष (Prosecution) यह साबित करने में असफल रहा कि पीड़िता नाबालिग थी। मेडिकल रिपोर्ट में उम्र का अनुमान 16–17 साल बताया गया था, लेकिन रेडियोलॉजिस्ट (Radiologist), जिसने हड्डी की जाँच की थी, उसे गवाही के लिए अदालत में पेश नहीं किया गया। केवल मेडिकल ऑफिसर ने रिपोर्ट के आधार पर बयान दिया। कोर्ट ने कहा कि यह “सुनवाई से बाहर” (hearsay) सबूत माना जाएगा और इस पर दोषसिद्धि नहीं टिक सकती।
इसके अलावा, कोई स्कूल प्रमाणपत्र या जन्म प्रमाणपत्र भी पेश नहीं किया गया। परिवार के गवाह भी सिर्फ अनुमानित उम्र बता पाए। जाँच अधिकारी ने भी स्वीकार किया कि उसने स्कूल का रिकॉर्ड इकट्ठा नहीं किया।
कोर्ट ने देखा कि पीड़िता और आरोपी लंबे समय से संबंध में थे, पहले भी गर्भधारण और गर्भपात हुआ था, और कई मौकों पर पीड़िता आरोपी के साथ स्वेच्छा से गई थी। ऐसे हालात में, जब नाबालिग होने का ठोस सबूत नहीं है, तो पीड़िता की सहमति को नजरअंदाज करके आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
इसलिए, पटना हाई कोर्ट ने निचली अदालत का आदेश रद्द करते हुए आरोपी को बरी कर दिया।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
इस फैसले से कई अहम संदेश निकलते हैं:
- अभियोजन की जिम्मेदारी: POCSO मामलों में पीड़िता की उम्र साबित करना केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह मुकदमे की नींव है। बिना पुख्ता सबूत के दोषसिद्धि असंभव है।
- अनुमान पर आधारित उम्र अस्वीकार्य: केवल अनुमान या अपूर्ण मेडिकल रिपोर्ट पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
- जाँच अधिकारी की लापरवाही: अगर पुलिस सही समय पर स्कूल रिकॉर्ड या जन्म प्रमाणपत्र नहीं लाती, तो पूरा मामला कमजोर हो सकता है।
- सहमति और कानूनी उम्र: अगर पीड़िता की उम्र साबित नहीं हो पाती, तो अदालत को यह देखना होगा कि संबंध सहमति से था या नहीं।
आम जनता के लिए यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि POCSO जैसे सख्त कानूनों के बावजूद, न्यायालय केवल विश्वसनीय और कानूनी रूप से स्वीकार्य सबूतों के आधार पर ही दोषसिद्धि करेगा।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अभियोजन यह साबित कर सका कि पीड़िता 18 साल से कम उम्र की थी?
• निर्णय: नहीं। कोई स्कूल या जन्म प्रमाणपत्र नहीं दिया गया। मेडिकल रिपोर्ट में भी जिसने टेस्ट किया, उसका बयान अदालत में नहीं आया। - क्या बिना उम्र साबित किए आरोपी को बलात्कार का दोषी ठहराया जा सकता है?
• निर्णय: नहीं। पीड़िता और आरोपी के बीच लंबे समय से संबंध था और कई बार वह स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई। इस स्थिति में सहमति को अनदेखा नहीं किया जा सकता। - क्या आपराधिक मामलों में अभियोजन को पहले बुनियादी तथ्य साबित करने होते हैं?
• निर्णय: हाँ। विशेष कानूनों में भी अभियोजन को पहले उम्र जैसे बुनियादी तथ्य पुख्ता सबूतों से साबित करने होंगे।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- जर्नैल सिंह बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा, 2013 Cri. L.J. 3967
- स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश बनाम मुन्ना @ शंभूनाथ, (2016) 1 SCC 696
- राजक मोहम्मद बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश, (2018) 9 SCC 248
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- सुनील बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा, AIR 2010 SC 392
- जर्नैल सिंह बनाम स्टेट ऑफ हरियाणा, 2013 Cri. L.J. 3976
- स्टेट ऑफ मध्यप्रदेश बनाम मुन्ना @ शंभूनाथ, (2016) 1 SCC 696
- राजक मोहम्मद बनाम स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश, (2018) 9 SCC 248
मामले का शीर्षक
अपीलकर्ता बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Appeal (SJ) No. 798 of 2017; arising out of Kotwali P.S. Case No. 489 of 2014, Patna
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 152
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति बिरेंद्र कुमार (CAV Judgment दिनांक 12.02.2021)
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री अजय कुमार ठाकुर, अधिवक्ता — अपीलकर्ता की ओर से
- श्री संजय कुमार शर्मा, अधिवक्ता — अपीलकर्ता की ओर से
- श्री सय्यद अशफाक अहमद, APP — राज्य की ओर से
निर्णय का लिंक
MjQjNzk4IzIwMTcjMSNO-cRPGRBDjVio=
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