पटना उच्च न्यायालय का फैसला: बिना सुनवाई ठेका कर्मचारियों की सेवा समाप्त करना अवैध — 2021

पटना उच्च न्यायालय का फैसला: बिना सुनवाई ठेका कर्मचारियों की सेवा समाप्त करना अवैध — 2021

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना उच्च न्यायालय ने 2 फरवरी 2021 को एक महत्वपूर्ण निर्णय में 27 अनुबंधित (Contractual) कर्मचारियों की सेवा समाप्ति को रद्द करते हुए कहा कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (Principles of Natural Justice) का पालन हर स्थिति में किया जाना चाहिए — चाहे कर्मचारी स्थायी हो या अस्थायी।

मामला गया जिले के अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज के वर्ग-4 (Class IV) कर्मचारियों से जुड़ा था। इन कर्मचारियों की नियुक्ति 2017 में संविदा आधार पर की गई थी, लेकिन एक साल बाद बिना कोई कारण बताए, बिना कोई नोटिस दिए, उनकी सेवाएँ समाप्त कर दी गईं।

न्यायालय ने कहा कि ऐसा कदम संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है, जो प्रशासनिक कार्यवाही में निष्पक्षता और उचित प्रक्रिया की गारंटी देता है।

पृष्ठभूमि

दिसंबर 2016 में अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज, गया ने वर्ग-4 के 62 पदों पर संविदा आधारित भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था। कॉलेज में कर्मचारियों की भारी कमी होने के कारण, एक पाँच सदस्यीय चयन समिति गठित की गई थी, जिसमें मगध प्रमंडल के आयुक्त के सचिव भी सदस्य थे।

साक्षात्कार और चयन प्रक्रिया पूरी होने के बाद चयनित उम्मीदवारों की सूची तैयार की गई और फरवरी 2017 में सभी चयनित उम्मीदवारों को नियुक्त कर दिया गया।

लेकिन कुछ असफल अभ्यर्थियों ने शिकायतें दर्ज कराईं कि चयन प्रक्रिया में अनियमितता हुई है। इस शिकायत पर गया के प्रमंडलीय आयुक्त ने तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की, जिसमें उप विकास आयुक्त अध्यक्ष बनाए गए। इस समिति ने 4 अक्टूबर 2017 को रिपोर्ट सौंपी जिसमें अनियमितता का आरोप लगाया गया।

रिपोर्ट के आधार पर स्वास्थ्य विभाग के विशेष कार्य पदाधिकारी ने 22 दिसंबर 2017 को कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दीं। अगले ही दिन मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य ने इस आदेश की पुष्टि करते हुए सभी को हटा दिया।

इन कर्मचारियों ने इस आदेश को चुनौती देते हुए पटना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।

एकल न्यायाधीश द्वारा निर्णय

एकल न्यायाधीश ने माना कि जांच प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं थी। क्योंकि वही अधिकारी (आयुक्त के सचिव) जो चयन समिति का सदस्य था, वही बाद में जांच समिति में भी शामिल हुआ। इससे स्पष्ट हितों का टकराव (Conflict of Interest) उत्पन्न हुआ और जांच प्रक्रिया निष्पक्ष नहीं रही।

इसके अलावा, कर्मचारियों को जांच के दौरान कोई नोटिस नहीं दिया गया, रिपोर्ट की प्रति नहीं सौंपी गई, और अपना पक्ष रखने का कोई अवसर नहीं मिला

अतः न्यायालय ने जांच रिपोर्ट और सेवा समाप्ति आदेश को रद्द कर दिया तथा कहा कि यदि सरकार चाहे तो नया, निष्पक्ष जांच कर सकती है।

राज्य सरकार की अपील और द्वैपीय पीठ का फैसला

राज्य सरकार ने इस आदेश को Letters Patent Appeal No. 1163 of 2018 के रूप में चुनौती दी।

राज्य का तर्क था कि चूंकि कर्मचारी संविदा पर थे, इसलिए उन्हें स्थायी कर्मचारियों जैसी सुरक्षा नहीं मिलनी चाहिए।

लेकिन मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल और न्यायमूर्ति एस. कुमार की द्वैपीय पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया।

न्यायालय ने कहा कि “प्रशासनिक कार्रवाई में निष्पक्षता, उचित प्रक्रिया और सुनवाई का अवसर हर स्थिति में आवश्यक है।”

चाहे कोई कर्मचारी अस्थायी हो या नियमित, उसे बिना नोटिस और बिना सुनवाई के नहीं हटाया जा सकता।

इसलिए न्यायालय ने—

  • जांच रिपोर्ट दिनांक 04.10.2017
  • सेवा समाप्ति आदेश दिनांक 22.12.2017
  • कॉलेज प्राचार्य का आदेश दिनांक 23.12.2017

को रद्द कर दिया और सभी कर्मचारियों को फिर से सेवा में बहाल करने का आदेश दिया।

हालांकि, न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि कर्मचारियों को बकाया वेतन (Back Wages) नहीं मिलेगा और यदि सरकार चाहे तो नई जांच निष्पक्ष रूप से कर सकती है।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  1. संविदा कर्मचारियों के अधिकारों की सुरक्षा:
    यह फैसला स्पष्ट करता है कि सरकार या किसी भी सार्वजनिक संस्था के संविदा कर्मचारी भी प्राकृतिक न्याय के हकदार हैं। उन्हें बिना सुनवाई हटाना असंवैधानिक है।
  2. प्रशासनिक निष्पक्षता का संदेश:
    यदि चयन समिति का कोई सदस्य जांच समिति में भी शामिल हो जाता है, तो यह जांच को पक्षपातपूर्ण बना देता है। यह फैसला प्रशासनिक निकायों को पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने की याद दिलाता है।
  3. सरकारी विभागों के लिए चेतावनी:
    इस फैसले से यह संकेत मिलता है कि अनुबंध के आधार पर नियुक्त कर्मचारियों के साथ भी कानून के अनुसार ही कार्रवाई होनी चाहिए। मनमानी या पक्षपात प्रशासनिक न्याय की भावना के विरुद्ध है।

कानूनी मुद्दे और न्यायालय का निर्णय

  • प्रश्न 1: क्या संविदा कर्मचारियों को बिना सुनवाई हटाया जा सकता है?
    उत्तर: नहीं। प्राकृतिक न्याय के अनुसार, बिना कारण बताए या सुनवाई के अवसर दिए, किसी की सेवा समाप्त नहीं की जा सकती।
  • प्रश्न 2: क्या जांच समिति निष्पक्ष थी?
    उत्तर: नहीं। चयन समिति के सदस्य ने ही जांच समिति में भाग लिया, जिससे प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण हो गई।
  • प्रश्न 3: न्यायालय ने क्या राहत दी?
    उत्तर: सभी कर्मचारियों को सेवा में पुनर्बहाली का आदेश दिया गया, लेकिन पिछला वेतन नहीं मिलेगा। सरकार को नई, निष्पक्ष जांच करने की स्वतंत्रता दी गई।

मामले का शीर्षक

अनुग्रह नारायण मगध मेडिकल कॉलेज, गया के वर्ग-4 संविदा कर्मचारी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य

केस नंबर

Letters Patent Appeal No. 1163 of 2018
(In Civil Writ Jurisdiction Case No. 2733 of 2018)

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 480

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री संजय करोल
माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री राजीव कुमार सिंह — अपीलकर्ताओं (कर्मचारियों) की ओर से
  • श्री एस. डी. यादव, ए.ए.जी.-9 — प्रतिवादी (राज्य सरकार) की ओर से

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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