गिरफ्तारी के बाद न्यायिक हिरासत में देरी पर पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

गिरफ्तारी के बाद न्यायिक हिरासत में देरी पर पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में अवैध रूप से हिरासत में रखने के मामले में राज्य सरकार को मुआवजा देने का निर्देश दिया है। यह मामला एक ऐसे व्यक्ति से संबंधित है जिसे न्यायालय द्वारा दी गई ज़मानत के बावजूद समय पर रिहा नहीं किया गया और उसे न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त होने के बाद भी जेल में रखा गया।

मामले की शुरुआत एक एफआईआर से हुई थी, जिसमें संबंधित व्यक्ति को विभिन्न धाराओं के तहत गिरफ्तार कर न्यायिक हिरासत में भेजा गया। लेकिन जब न्यायिक हिरासत की 60 दिन की समयसीमा पूरी हो गई, तो संबंधित पुलिस अधिकारियों द्वारा ना तो रिमांड की अवधि बढ़ाने का अनुरोध किया गया और ना ही अदालत से ऐसा आदेश प्राप्त किया गया।

इस लापरवाही के कारण उस व्यक्ति को लगभग 24 दिनों तक बिना कानूनी अनुमति के जेल में रखा गया। यह सीधे-सीधे संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है।

कोर्ट ने इस प्रकार की हिरासत को “गैरकानूनी” घोषित करते हुए यह माना कि यह व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन है। इसके लिए कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह व्यक्ति को प्रति दिन ₹5,000 की दर से कुल ₹1,20,000 का मुआवजा दे। साथ ही यह भी आदेश दिया गया कि यह राशि उस अधिकारी से वसूली जाए जो इस त्रुटि के लिए जिम्मेदार था।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकार जल्द से जल्द एक केंद्रीकृत डिजिटल प्रणाली विकसित करे, जिससे न्यायालय और जेल प्रशासन के बीच रिमांड आदेशों और ज़मानत की सूचनाएं रियल टाइम में साझा की जा सकें।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह बताता है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी आपराधिक मामले में आरोपी क्यों न हो, उसे कानून के अनुसार समय पर अदालत में पेश करना और रिहा करना अनिवार्य है।

यह फैसला बिहार सहित देशभर के पुलिस और जेल प्रशासन को यह सख्त संदेश देता है कि अगर वे व्यक्ति को अनावश्यक रूप से जेल में रखते हैं, तो उन्हें व्यक्तिगत जिम्मेदारी और मुआवजे का सामना करना पड़ेगा। आम जनता के लिए यह विश्वास दिलाता है कि अदालतें उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए तत्पर हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या न्यायिक रिमांड के विस्तार के बिना हिरासत में रखना वैध है?
    ➤ नहीं, यह पूरी तरह गैरकानूनी है।
  • क्या अवैध हिरासत के लिए मुआवजा देना अनिवार्य है?
    ➤ हाँ, कोर्ट ने ₹1,20,000 का मुआवजा तय किया।
  • क्या इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी पर जिम्मेदारी तय की जा सकती है?
    ➤ हाँ, मुआवजा संबंधित अधिकारी से वसूला जाएगा।
  • क्या इस प्रकार की लापरवाही को रोकने हेतु प्रणालीगत सुधार आवश्यक है?
    ➤ हाँ, कोर्ट ने डिजिटलीकरण और केंद्रीकरण के निर्देश दिए।

मामले का शीर्षक
Criminal Writ Jurisdiction Case

केस नंबर
Criminal Writ Jurisdiction Case No.2417 of 2024

उद्धरण (Citation)– 2025 (1) PLJR 204

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री एस. के. पाठक, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री अजय – राज्य की ओर से

निर्णय का लिंक
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Samridhi Priya

Samriddhi Priya is a third-year B.B.A., LL.B. (Hons.) student at Chanakya National Law University (CNLU), Patna. A passionate and articulate legal writer, she brings academic excellence and active courtroom exposure into her writing. Samriddhi has interned with leading law firms in Patna and assisted in matters involving bail petitions, FIR translations, and legal notices. She has participated and excelled in national-level moot court competitions and actively engages in research workshops and awareness programs on legal and social issues. At Samvida Law Associates, she focuses on breaking down legal judgments and public policies into accessible insights for readers across Bihar and beyond.

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