निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक नाबालिग अभियुक्त की जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसे हत्या के एक जघन्य मामले में वयस्क के रूप में मुकदमा चलाने का निर्देश पहले ही दिया जा चुका है। यह मामला वर्ष 2017 का है, जिसमें एक नाबालिग पर अपने एक साथी के साथ मिलकर एक लड़के की चाकू से हत्या करने का आरोप है।
एफआईआर के अनुसार, मृतक को आरोपी और उसके साथी ने रात 10 बजे घर से बुलाया और साथ ले गए। देर रात तक जब वह वापस नहीं लौटा, तो परिजनों ने खोजबीन की और बाद में उसकी लाश खून से लथपथ हालत में एक सिनेमा हॉल के पीछे मिली। पुलिस जांच में पता चला कि मृतक के शरीर पर चाकू के 9 वार थे। अभियुक्त के घर से खून लगा चाकू भी बरामद हुआ।
घटना के समय अभियुक्त की उम्र 16 साल थी, इसलिए पहले मामला किशोर न्याय बोर्ड में गया। लेकिन बोर्ड ने पाया कि वह मानसिक रूप से इतना सक्षम है कि वह अपने कार्यों और उनके परिणामों को समझ सकता है। इसलिए, उसे वयस्क के रूप में बाल अदालत में मुकदमे का सामना करने के लिए भेज दिया गया।
अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि अभियुक्त को दुश्मनी के चलते फंसाया गया है और उसका इस अपराध से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने पटना उच्च न्यायालय के एक पुराने फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि यदि नाबालिग की जमानत से उसे गलत संगति में पड़ने, मानसिक या शारीरिक खतरे में पड़ने, या न्याय के उद्देश्य को नुकसान पहुँचने की संभावना हो, तो ही जमानत रोकी जा सकती है।
लेकिन उच्च न्यायालय ने पाया कि अभियुक्त के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं—उसके खुद के इकबालिया बयान में उसने चाकू से वार करने की बात कबूल की है। इसके अलावा उसका आपराधिक रिकॉर्ड भी है—वह पहले चोरी के एक मामले में भी आरोपित रह चुका है।
हालांकि पर्यवेक्षण गृह (Observation Home) की रिपोर्ट में बताया गया है कि अभियुक्त का आचरण वहां अच्छा रहा, लेकिन न्यायालय ने यह माना कि हत्या जैसे गंभीर अपराध में उसका सुधरता आचरण जमानत का आधार नहीं बन सकता।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बताता है कि नाबालिग की उम्र के बावजूद, अगर अपराध गंभीर है और अभियुक्त की मानसिक क्षमता उसे अपराध की गंभीरता समझने योग्य है, तो उसे वयस्क की तरह ट्रायल का सामना करना पड़ सकता है। यह निर्णय समाज को यह संकेत देता है कि हत्या जैसे गंभीर अपराधों में नाबालिग होना स्वतः राहत का आधार नहीं है।
इसके अलावा, यह निर्णय सरकार को भी यह याद दिलाता है कि किशोर न्याय कानून के अंतर्गत भी, न्याय और जनहित की रक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या हत्या के आरोप में नाबालिग को जमानत दी जा सकती है?
- नहीं, गंभीर अपराध और पर्याप्त साक्ष्यों के चलते जमानत नहीं दी गई।
- क्या नाबालिग को वयस्क के रूप में ट्रायल किया जा सकता है?
- हां, उसकी मानसिक और शारीरिक समझदारी के आधार पर बाल न्याय बोर्ड ने यह आदेश दिया।
- क्या पर्यवेक्षण गृह की सकारात्मक रिपोर्ट जमानत का आधार हो सकती है?
- नहीं, जघन्य अपराध की गंभीरता इसके ऊपर भारी पड़ती है।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Pramendra Chaudhary @ Parmendra Chaudhary vs. The State of Bihar, 2017(2) PCCR 238 (PHC)
मामले का शीर्षक
Hamid Ahmad @ Rumani बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Revision No.134 of 2019
उद्धरण (Citation)
2020 (1) PLJR 275
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री संजीव कुमार झा (याचिकाकर्ता की ओर से)
- श्री आदित्य नारायण सिंह (राज्य की ओर से)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NyMxMzQjMjAxOSMxI04=-nxcnILAwCQc=
यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।