पत्नी को ₹6,000 महीना गुज़ारा भत्ता देना नाकाफी: पटना हाई कोर्ट ने बढ़ाकर ₹12,000 किया

पत्नी को ₹6,000 महीना गुज़ारा भत्ता देना नाकाफी: पटना हाई कोर्ट ने बढ़ाकर ₹12,000 किया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने पत्नी को पर्याप्त गुज़ारा भत्ता (maintenance) दिलाने के लिए एक अहम फैसला दिया है। यह मामला दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत आया था, जिसमें पत्नी को पहले फैमिली कोर्ट द्वारा ₹6,000 प्रति माह गुज़ारा भत्ता दिया गया था। पत्नी ने इस राशि को नाकाफी बताते हुए हाई कोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने बताया कि उनकी शादी वर्ष 2001 में हुई थी और एक बेटा भी है, लेकिन शादी के बाद उन्हें पति और ससुराल वालों द्वारा शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया, जिससे उन्हें मायके में रहना पड़ रहा है। पति ने उन्हें साथ रखने से इनकार कर दिया।

पत्नी ने यह भी कहा कि उनके पति भारतीय रेलवे में जूनियर इंजीनियर हैं और 2017 में उनकी कुल मासिक आय ₹55,000 से अधिक थी। ऐसे में ₹6,000 का गुज़ारा भत्ता आज की महंगाई में पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने इन निर्णयों का हवाला दिया:

  • शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान, (2015) 5 SCC 705
  • मनीष जैन बनाम आकांक्षा जैन, (2017) 15 SCC 801
  • डॉ. शयान अहमद बनाम बिहार राज्य, 2017 (4) PLJR 479

इन निर्णयों में स्पष्ट किया गया है कि पत्नी को केवल जीवित रहने के लिए नहीं, बल्कि सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त राशि मिलनी चाहिए।

पति की दलीलें और कोर्ट का विश्लेषण

पति ने दावा किया कि वह बेटे, माता-पिता और मानसिक रूप से विकलांग भतीजे का खर्च भी उठा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि खेत की आय उनके पिता के पास जाती है।

लेकिन हाई कोर्ट ने इन बातों को अस्पष्ट और विरोधाभासी माना:

  • पति ने अपनी पूरी कृषि आय और संपत्ति की जानकारी नहीं दी।
  • अपने माता-पिता या बहन के पालन-पोषण की बात उन्होंने फैमिली कोर्ट में कभी नहीं कही थी।
  • ₹55,756 की मासिक आय होने के बावजूद केवल ₹6,000 देने का औचित्य नहीं है।

कोर्ट ने कहा कि पत्नी को अपने पति की सामाजिक स्थिति के अनुसार सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। ₹6,000 की राशि आज के समय में एक महिला की बुनियादी जरूरतें भी पूरी नहीं कर सकती।

कोर्ट का अंतिम निर्णय:

  • ₹6,000 का आदेश संशोधित कर ₹12,000 प्रति माह कर दिया गया।
  • यह राशि उसी तारीख से लागू होगी, जिस दिन मूल मामला दाखिल किया गया था।
  • अगर पहले कोई अंतरिम भुगतान हुआ है, तो उसे समायोजित किया जाएगा।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि भारतीय न्याय प्रणाली केवल कानूनी अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह नागरिकों की गरिमा और जीवन स्तर का भी ध्यान रखती है।

महिलाओं के लिए यह संदेश है कि यदि उन्हें उचित भरण-पोषण नहीं मिल रहा है, तो वे हाई कोर्ट का सहारा लेकर न्याय प्राप्त कर सकती हैं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल पति की आय नहीं, बल्कि उसका जीवन स्तर और सामाजिक स्थिति भी गुज़ारा भत्ता तय करने में मायने रखते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या ₹6,000 प्रति माह की राशि पर्याप्त थी?
    • नहीं। कोर्ट ने इसे अपर्याप्त मानते हुए ₹12,000 किया।
  • क्या पति ने अपनी आय और संपत्ति की सही जानकारी दी थी?
    • नहीं। कोर्ट ने उसे अपूर्ण और भ्रमित करने वाला पाया।
  • क्या पत्नी को केवल जीवित रहने लायक राशि दी जा सकती है?
    • नहीं। उसे सम्मानजनक जीवन जीने के लिए पर्याप्त राशि मिलनी चाहिए।
  • अंतिम निर्णय:
    • आपराधिक पुनरीक्षण याचिका आंशिक रूप से स्वीकृत। गुज़ारा भत्ता ₹12,000 प्रति माह किया गया।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • शमीमा फारूकी बनाम शाहिद खान, (2015) 5 SCC 705 = 2015(3) PLJR 58 SC
  • मनीष जैन बनाम आकांक्षा जैन, (2017) 15 SCC 801
  • डॉ. शयान अहमद बनाम बिहार राज्य, 2017 (4) PLJR 479

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
उपरोक्त सभी निर्णय

मामले का शीर्षक
[नाम गोपनीय] बनाम [नाम गोपनीय]

केस नंबर
Criminal Revision No. 230 of 2018

उद्धरण (Citation)
2020 (3) PLJR 538

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
श्री श्रीनंदन सिंह एवं सुश्री प्रकृति शर्मा – याचिकाकर्ता की ओर से
श्री जय प्रकाश वर्मा – प्रतिवादी की ओर से

निर्णय का लिंक
patnahighcourt.gov.in/vieworder/NyMyMzAjMjAxOCM3I04=-FV3hdnC–ak1–zxw=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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