पटना हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आयकर कानून में किया गया संशोधन तब तक पूर्वव्यापी (retrospective) नहीं माना जाएगा जब तक कानून में ऐसा स्पष्ट रूप से न लिखा हो। अदालत ने कहा कि किसी नाबालिग को फर्म में भागीदार बनाकर हुई कमाई, यदि वह संशोधन से पहले की है, तो उसे मां-बाप की आय में नहीं जोड़ा जा सकता।
निर्णय की सरल व्याख्या
इस केस में एक महिला (याचिकाकर्ता) ने यह सवाल उठाया कि क्या उसके नाबालिग बेटे द्वारा फर्म से 10 अगस्त 1975 को अर्जित की गई आय को उसकी (माँ की) कुल आय में शामिल किया जा सकता है। यह विवाद 1976-77 के असेसमेंट वर्ष से जुड़ा हुआ था।
असल में, आयकर अधिकारी (ITO) ने सेक्शन 64(1)(iii) में हुए संशोधन का हवाला देते हुए, नाबालिग की ₹32,031 की कमाई को मां की आय में जोड़ दिया। यह संशोधन 1 अक्टूबर 1975 से प्रभावी हुआ था। ITO का कहना था कि असेसमेंट वर्ष की शुरुआत (1 अप्रैल) से जो भी संशोधन लागू हो जाए, वह पूरे साल पर लागू होता है। इसी आधार पर उन्होंने यह राशि जोड़ दी।
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उनके बेटे की कमाई 10 अगस्त 1975 को हुई थी, यानी संशोधन लागू होने से पहले। इसलिए उसे जोड़ना गलत है। यह दलील पहले अपीलीय अधिकारी और फिर आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) ने खारिज कर दी थी।
मामला आखिरकार पटना हाई कोर्ट पहुँचा। हाई कोर्ट ने कहा कि टैक्स के किसी नए प्रावधान को तभी पीछे से लागू किया जा सकता है जब कानून में ऐसा साफ लिखा हो। यहां ऐसा कुछ नहीं था, इसलिए संशोधन केवल 1 अक्टूबर 1975 के बाद की आय पर लागू होगा, उससे पहले की नहीं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह निर्णय उन करदाताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक फर्मों में अपने बच्चों को भागीदार बनाते हैं। यह स्पष्ट करता है कि सरकार कोई नया टैक्स प्रावधान लाए तो वह केवल भविष्य से लागू होगा, न कि पहले की कमाई पर।
यह निर्णय कानून की निश्चितता (legal certainty) को मजबूत करता है और यह सुनिश्चित करता है कि लोगों पर बिना चेतावनी के पीछे से टैक्स लागू न किया जाए। इससे टैक्स अधिकारियों को भी स्पष्ट मार्गदर्शन मिला है कि संशोधन लागू करने में सावधानी बरतें।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या 1 अक्टूबर 1975 से पहले हुई नाबालिग की आय को संशोधित धारा 64(1)(iii) के तहत माँ की आय में जोड़ा जा सकता है?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। क्योंकि संशोधन 1 अक्टूबर 1975 से लागू हुआ, उसे पीछे की तारीख से लागू नहीं किया जा सकता।
- क्या आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण का फैसला सही था?
- न्यायालय का निर्णय: नहीं। उन्होंने कानून की गलत व्याख्या की और गलत तरीके से आय को जोड़ा।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- Badri Prasad & Ors. v. Commissioner of Income Tax, (1990) 185 ITR 307 (Pat)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Kesoram Industries and Cotton Mills Ltd. v. Wealth Tax Commissioner, AIR 1966 SC 1370
- Karimtharuvi Tea Estate Ltd v. State of Kerala, AIR 1966 SC 1385
- Keshav Mills Co. Ltd. v. CIT, (1965) 2 SCR 908
- Premier Breweries Ltd. v. CIT, (2015) 11 SCC 695
- C.P. Sarathy Mudaliar v. CIT, (1966) 62 ITR 576 (SC)
- Rameshwar Prasad Bagla v. CIT, (1973) 3 SCC 575
मामले का शीर्षक
Smt. Narmada Devi v. Commissioner of Income-tax, Bihar, Patna
केस नंबर
TAX Case No. 28 of 1986
उद्धरण (Citation)- 2021(1) PLJR 618
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय मुख्य न्यायाधीश संजय करोल एवं माननीय न्यायमूर्ति एस. कुमार
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- श्री डी. वी. पाठी, अधिवक्ता – याचिकाकर्ता की ओर से
- श्री ऋषि राज सिन्हा एवं सुश्री शिल्पी केशरी, अधिवक्ता – प्रतिवादी की ओर से
निर्णय का लिंक
NCMyOCMxOTg2IzIjTg==-i–am1–V–ak1–FvyrJfA=
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