निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला देते हुए स्पष्ट किया है कि यदि कोई अस्थायी सरकारी कर्मचारी सेवा में रहते हुए मृत्यु को प्राप्त होता है, तो उसके परिवारजनों को भी पारिवारिक पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ मिलना चाहिए। यह मामला एक महिला द्वारा दाखिल याचिका से जुड़ा है, जिनके पति डाक विभाग में अस्थायी पद पर कार्यरत थे और सेवा के दौरान उनका निधन हो गया।
इस कर्मचारी की नियुक्ति 1987 में एक अस्थायी मजदूर (casual labourer) के रूप में हुई थी। 1992 में उन्हें ‘temporary status’ प्रदान किया गया, लेकिन उनका कभी नियमितीकरण (regularization) नहीं हुआ। वे 2007 में ड्यूटी पर रहते हुए चल बसे। उनकी पत्नी ने 2008 में पारिवारिक पेंशन के लिए आवेदन किया, जिसे विभाग ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वे स्थायी कर्मचारी नहीं थे।
महिला ने इसके बाद केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) में याचिका दायर की, जिसे 2013 में न्यायाधिकरण ने स्वीकार कर लिया और पेंशन देने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ भारत सरकार ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की।
कोर्ट ने विस्तार से दोनों पक्षों की दलीलों और नियमों का परीक्षण किया। केंद्र सरकार ने कहा कि 1972 के पेंशन नियम केवल स्थायी कर्मचारियों पर लागू होते हैं। जबकि महिला के वकील ने 1965 के अस्थायी सेवा नियमों के नियम 10(2) का हवाला दिया, जिसमें यह स्पष्ट लिखा है कि सेवा के दौरान किसी अस्थायी कर्मचारी की मृत्यु होने पर उसके परिवार को स्थायी कर्मचारियों के बराबर पेंशन और ग्रैच्युटी मिलेगी।
कोर्ट ने यह भी देखा कि ‘temporary status’ प्राप्त करने वाले अस्थायी कर्मचारियों के लिए केंद्र सरकार द्वारा एक योजना (scheme) बनाई गई है, जिसके तहत यदि कोई कर्मचारी तीन साल की अस्थायी सेवा पूरी कर लेता है, तो उसे Group ‘D’ कर्मचारियों के बराबर सभी लाभ मिलते हैं—जिसमें पेंशन भी शामिल है।
न्यायालय ने कहा कि भले ही 1972 के नियमों में स्पष्ट संशोधन नहीं हुआ हो, लेकिन नियमों की ‘beneficial interpretation’ (कल्याणकारी व्याख्या) के सिद्धांत के अनुसार, ऐसे नियमों को जनता के हित में लचीले और व्यापक तरीके से पढ़ा जाना चाहिए। कोर्ट ने कई पुराने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया और कहा कि अस्थायी कर्मचारी के परिवार को लाभ न देना कानून के उद्देश्य के खिलाफ होगा।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला हजारों ऐसे अस्थायी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए राहत लेकर आया है जो बिना नियमित हुए वर्षों तक सरकार की सेवा करते हैं। इस निर्णय से यह स्पष्ट होता है कि सेवा के दौरान मृत्यु होने पर ऐसे कर्मचारियों के परिजनों को पेंशन और अन्य लाभ देने से इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार के लिए भी यह संदेश है कि नियमों और योजनाओं को स्पष्ट और पारदर्शी बनाया जाए, ताकि ज़मीनी स्तर पर कर्मचारियों के साथ न्याय हो सके।
कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)
- क्या अस्थायी सरकारी कर्मचारी की मृत्यु पर उनके परिजनों को पारिवारिक पेंशन का अधिकार है?
✔ हाँ, 1965 के अस्थायी सेवा नियमों के अनुसार उन्हें वही लाभ मिलते हैं जो स्थायी कर्मचारियों को मिलते हैं। - क्या 1972 के पेंशन नियमों में संशोधन न होने से यह लाभ नहीं दिया जा सकता?
❌ नहीं, कोर्ट ने कहा कि कानून की उद्देश्यपूर्ण और कल्याणकारी व्याख्या की जानी चाहिए। - क्या केवल नियमित कर्मचारी ही पेंशन के पात्र हैं?
❌ नहीं, ‘temporary status’ प्राप्त कर चुके और तीन वर्ष सेवा कर चुके कर्मचारी भी लाभ के पात्र हैं।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- CIT बनाम हिंदुस्तान बल्क कैरियर्स
- वेंकटारमण देवेरु बनाम मैसूर राज्य (AIR 1958 SC 255)
- कलकत्ता गैस कंपनी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (AIR 1962 SC 1044)
- कमिश्नर ऑफ़ सेल्स टैक्स, MP बनाम राधाकृष्ण (1979) 2 SCC 249
- सिरसिल्क लिमिटेड बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (AIR 1964 SC 160)
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रभाकरण विजय कुमार (2008) 9 SCC 527
- विजय एल. मेहरोत्रा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2001) 9 SCC 687
मामले का शीर्षक
Union of India & Ors. बनाम Meena Devi @ Meena Kunwar
केस नंबर
CWJC No. 7760 of 2015
उद्धरण (Citation)– 2023 (1) PLJR 506
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजन्त्री
माननीय श्री न्यायमूर्ति पुर्णेन्दु सिंह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री के. एन. सिंह (ASG-1), श्री राकेश कुमार सिन्हा (CGC)
प्रत्यर्थी की ओर से: श्री जयंती कुमार कर्ण, श्री हेमंत कुमार कर्ण, श्री सुजीत कुमार
निर्णय का लिंक
MTUjNzc2MCMyMDE1IzEjTg==-KGaN6pcQFe8=
“यदि आपको यह जानकारी उपयोगी लगी और आप बिहार में कानूनी बदलावों से जुड़े रहना चाहते हैं, तो Samvida Law Associates को फॉलो कर सकते हैं।”