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पटना उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय: बिना उचित प्रक्रिया के वारंट जारी करने पर रोक

पटना उच्च न्यायालय ने 14 अगस्त 2024 को एक महत्वपूर्ण मामले में फैसला सुनाते हुए निचली अदालत द्वारा जारी किए गए गैर-जमानती वारंट (धारा 82 और 83 सीआरपीसी) को रद्द कर दिया। यह फैसला न्यायमूर्ति पार्थ सारथी ने क्रिमिनल मिसलेनियस केस संख्या 66151/2023 में सुनाया। इस निर्णय में कानून की प्रक्रिया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संतुलन को बनाए रखने पर जोर दिया गया।

मामले का पृष्ठभूमि

यह मामला 2015 में औरंगाबाद जिले में दायर एक शिकायत पर आधारित था। शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि अभियुक्तों ने ट्रक के फर्जी दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सीमेंट की 820 बोरियां, जिनकी कीमत ₹2,53,122 थी, गबन की। शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि अभियुक्तों ने इन सामानों को गंतव्य तक नहीं पहुंचाया और दस्तावेज़ फर्जी पाए गए।

मामले में शिकायत दर्ज होने के बाद अदालत ने विभिन्न आदेश पारित किए, जिनमें समन, जमानती और गैर-जमानती वारंट, और बाद में धारा 82 और 83 के तहत प्रक्रिया शामिल थी।

उच्च न्यायालय का अवलोकन

याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय में यह दलील दी कि निचली अदालत ने बिना उचित सेवा रिपोर्ट के ही समन और वारंट जारी किए। याचिका में आरोप लगाया गया कि अदालत ने बिना यह सत्यापित किए कि अभियुक्त सेवा से बच रहे हैं, सीधे गैर-जमानती वारंट और बाद में धारा 82 व 83 सीआरपीसी के तहत आदेश पारित कर दिए।

न्यायालय ने पाया कि:

  1. समन और वारंट की सेवा की पुष्टि के बिना निचली अदालत ने सीधे अगले स्तर की कार्रवाई की।
  2. प्रक्रिया पूरी करने के लिए अनिवार्य कानूनों का पालन नहीं किया गया।
  3. निचली अदालत ने अपनी न्यायिक समझ का समुचित उपयोग नहीं किया और आदेश तंत्रात्मक रूप से पारित किए।

महत्वपूर्ण निष्कर्ष

न्यायमूर्ति पार्थ सारथी ने अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय के इंदर मोहन गोस्वामी बनाम राज्य मामले का उल्लेख किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी प्रकार का गैर-जमानती वारंट तभी जारी किया जाना चाहिए जब अदालत को यह पक्का हो जाए कि अभियुक्त जानबूझकर अदालत की प्रक्रिया से बच रहे हैं।

उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन गंभीर मामला है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। यदि समन और जमानती वारंट से काम चल सकता है, तो गैर-जमानती वारंट का सहारा नहीं लिया जाना चाहिए।

न्यायालय का आदेश

न्यायालय ने यह घोषित किया कि निचली अदालत द्वारा 20 जून 2023 और 24 अगस्त 2023 को पारित आदेश, जो धारा 82 और 83 सीआरपीसी के तहत थे, अवैध और असंवैधानिक हैं। इसे रद्द करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे आदेश कानून की प्रक्रिया का उल्लंघन हैं।

निष्कर्ष

यह फैसला कानून की प्रक्रिया के पालन और नागरिक अधिकारों की रक्षा के महत्व को रेखांकित करता है। यह निचली अदालतों के लिए एक संदेश है कि न्यायिक आदेश पारित करने से पहले तथ्यों और कानूनों का समुचित विश्लेषण अनिवार्य है।

यह निर्णय कानून के सिद्धांतों और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

Abhishek Kumar

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