पटना हाईकोर्ट ने लघु जल संसाधन विभाग द्वारा 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया

पटना हाईकोर्ट ने लघु जल संसाधन विभाग द्वारा 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग को रद्द किया

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने लघु जल संसाधन विभाग, बिहार सरकार द्वारा एक पंजीकृत ठेकेदार को 10 वर्षों के लिए ब्लैकलिस्ट करने के आदेश को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने विभाग को निर्देश दिया कि वह कानून के अनुसार और उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए मामले पर दोबारा निर्णय ले।

याचिकाकर्ता, एक प्रथम श्रेणी पंजीकृत ठेकेदार, ने 2022 में जारी टेंडर (निविदा संख्या 13/2021-22) में कई जिलों में सिंचाई योजनाओं के तहत मरम्मत और पुनर्निर्माण कार्यों के लिए भाग लिया था। तकनीकी बोली मूल्यांकन के दौरान, एक शिकायत आई कि कुछ ठेकेदारों ने “वर्क डन वैल्यू” प्रमाणपत्र में छेड़छाड़ या फर्जीवाड़ा किया है। इस आधार पर, तकनीकी समिति ने याचिकाकर्ता को अयोग्य घोषित कर विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की।

11 अक्टूबर 2022 को कार्यपालक अभियंता ने याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें प्रमाणपत्र में “इंटरपोलेशन” (तथ्यों में बदलाव) का आरोप लगाया गया। याचिकाकर्ता ने 5 दिसंबर 2022 को जवाब देकर आरोपों से इनकार किया और कार्यवाही खत्म करने का अनुरोध किया। इसके बावजूद, 20 फरवरी 2023 को प्रभारी मुख्य अभियंता ने बिहार ठेकेदार पंजीकरण नियमावली, 2007 की धारा 11(क)(vii) के तहत 10 साल के लिए ब्लैकलिस्ट कर दिया।

याचिकाकर्ता की दलीलें:

  • नोटिस जारी करने वाला अधिकारी सक्षम प्राधिकारी नहीं था, जबकि यह काम पंजीकरण प्राधिकारी का है।
  • नोटिस में यह नहीं बताया गया कि ब्लैकलिस्टिंग जैसी सजा दी जा सकती है, जिससे प्रभावी बचाव का मौका नहीं मिला।
  • आरोप स्पष्ट नहीं थे और कोई ठोस सबूत या दस्तावेज़ नहीं दिए गए।
  • अंतिम आदेश बिना कारण बताए दिया गया, यानि गैर-वक्तव्य आदेश
  • 10 साल की ब्लैकलिस्टिंग अनुपातहीन है, क्योंकि पंजीकरण की वैधता केवल 5 साल होती है, जिससे यह स्थायी प्रतिबंध जैसा है।
  • कई टेंडर ब्लैकलिस्टिंग से पहले दाखिल हो चुके थे, इसलिए इसे पिछली तारीख से लागू करना अनुचित है।

सरकार की दलीलें:

  • याचिकाकर्ता ने फर्जी प्रमाणपत्र दिया, जिसे संबंधित कार्यालय ने गलत बताया।
  • कई नोटिस देकर पर्याप्त अवसर दिया गया।
  • एनआईटी की शर्तों और नियमावली के तहत कार्रवाई सही थी।

हाईकोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां:

  1. नोटिस की कमी – जारी नोटिस में ब्लैकलिस्टिंग का उल्लेख ही नहीं था, जिससे सुप्रीम कोर्ट के Gorkha Security Services फैसले के निर्देशों का उल्लंघन हुआ।
  2. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन – याचिकाकर्ता की सफाई पर कोई विचार नहीं किया गया।
  3. गैर-वक्तव्य आदेश – अंतिम आदेश में स्वतंत्र कारण नहीं थे।
  4. अनुपातहीन सजा – 10 साल का प्रतिबंध अत्यधिक कठोर है, विशेषकर जब इसके गंभीर नागरिक और दंडात्मक परिणाम हों।

कोर्ट ने Erusian Equipment, Raghunath Thakur, Kulja Industries, UMC Technologies और M.P. Power Management जैसे फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि राज्य द्वारा ब्लैकलिस्टिंग का निर्णय न्यायसंगत, उचित और अनुपातिक होना चाहिए, और इसके पहले निष्पक्ष सुनवाई जरूरी है।

परिणाम:
20 फरवरी 2023 का ब्लैकलिस्टिंग आदेश रद्द किया गया। विभाग को तीन महीने में नई प्रक्रिया पूरी कर फैसला लेने का निर्देश दिया गया।

निर्णय का महत्व और प्रभाव

  • सरकारी विभाग को स्पष्ट और विस्तृत कारण बताओ नोटिस जारी करना चाहिए, जिसमें आरोप और प्रस्तावित दंड का उल्लेख हो।
  • गंभीर दंड जैसे ब्लैकलिस्टिंग से पहले ठेकेदार को वास्तविक अवसर दिया जाना आवश्यक है।
  • सभी ब्लैकलिस्टिंग आदेश स्पीकिंग ऑर्डर होने चाहिए, जिनमें कारण और बचाव पर विचार शामिल हो।
  • अनुपात का सिद्धांत (Doctrine of Proportionality) लागू होता है — अत्यधिक कठोर दंड बिना उचित कारण के अस्वीकार्य है।

ठेकेदारों के लिए यह फैसला बताता है कि बिना उचित प्रक्रिया के लगाए गए दंड को चुनौती देना संभव है। सरकारी विभागों के लिए यह चेतावनी है कि प्रक्रियागत चूक से सही निर्णय भी रद्द हो सकते हैं।

कानूनी मुद्दे और निर्णय

  • क्या नोटिस वैध और सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी था? — नहीं।
  • क्या प्राकृतिक न्याय का पालन हुआ? — नहीं।
  • क्या आदेश कारणयुक्त था? — नहीं।
  • क्या 10 साल की सजा अनुपातिक थी? — नहीं।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • Gorkha Security Services v. Govt. (NCT of Delhi), (2014) 9 SCC 105
  • Siemens Engineering, AIR 1976 SC 1785
  • S.L. Kapoor, AIR 1981 SC 136
  • S.N. Mukherjee, AIR 1990 SC 1984
  • Chandan Kumar Yadav, 2013 (2) PLJR 605

न्यायालय द्वारा उद्धृत निर्णय

  • Erusian Equipment, AIR 1975 SC 266
  • Raghunath Thakur, (1989) 1 SCC 229
  • Kulja Industries, (2014) 14 SCC 731
  • UMC Technologies, (2021) 2 SCC 551
  • M.P. Power Management, (2023) 2 SCC 703

मामले का शीर्षक
Rajiv Kumar बनाम State of Bihar & Ors.

केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3860 of 2023

न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता; श्री चंदन कुमार, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्री अजय कुमार, G.A.-9

निर्णय का लिंक
https://www.patnahighcourt.gov.in/ShowPdf/web/viewer.html?file=../../TEMP/578ea692-7ae7-4596-9625-c0c3c169fac3.pdf&search=Debarment

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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