पटना हाई कोर्ट का फैसला: क्लर्कों से एसीपी/एमएसीपी लाभ की वसूली गैरकानूनी (2021)

पटना हाई कोर्ट का फैसला: क्लर्कों से एसीपी/एमएसीपी लाभ की वसूली गैरकानूनी (2021)

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाई कोर्ट ने एक अहम मामले में यह स्पष्ट किया कि राज्य सरकार कर्मचारियों से पहले से दिए गए एसीपी (Assured Career Progression) और एमएसीपी (Modified Assured Career Progression) लाभों की वसूली नहीं कर सकती, अगर कर्मचारियों ने कोई धोखाधड़ी नहीं की हो और परीक्षा न हो पाने की वजह सरकारी विभाग की लापरवाही रही हो।

यह मामला बिहार सरकार के सड़क निर्माण विभाग में कार्यरत चार संवाद लिपिकों (Correspondence Clerks) से जुड़ा था। इनकी नियुक्ति 1990 से 1994 के बीच हुई थी।

एसीपी और एमएसीपी नियम

  • एसीपी नियम, 2003 (ACP Rules, 2003): 9 अगस्त 1999 से लागू हुए। इसके अनुसार, अगर कोई सरकारी कर्मचारी 12 साल तक पदोन्नति नहीं पाता तो उसे प्रथम एसीपी और 24 साल पर द्वितीय एसीपी मिलना चाहिए।
  • एमएसीपी नियम, 2010 (MACP Rules, 2010): इसके तहत 10, 20 और 30 साल की सेवा पूरी होने पर वित्तीय प्रगति का लाभ मिलता है।

विवाद कैसे शुरू हुआ

इन लाभों के लिए क्लर्कों को विभागीय लेखा परीक्षा पास करना जरूरी था। लेकिन 1996 से 2004 तक आठ सालों तक कोई परीक्षा कराई ही नहीं गई। ऐसे में कर्मचारी चाहकर भी परीक्षा नहीं दे सके। फिर भी सरकार ने कई कर्मचारियों को अधिसूचना जारी कर लाभ दिए।

बाद में, 2020 में अचानक विभाग ने आदेश जारी कर (19.02.2020 और 12.05.2020) इन लाभों की तिथि बदल दी और कहा कि कर्मचारियों ने जो “ज्यादा वेतन” पाया है, उसकी वसूली की जाएगी। यहां तक कि उनकी तनख्वाह भी रोक दी गई।

कर्मचारियों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कहा:

  • परीक्षा न होने की गलती सरकार की है, न कि कर्मचारियों की।
  • उन्हें जानबूझकर कोई लाभ गलत तरीके से नहीं दिया गया।
  • सालों बाद पैसा वसूलना अनुचित है।

राज्य सरकार का पक्ष

सरकार ने कहा कि परीक्षा कराई गई थी और कर्मचारियों ने कोर्ट को गुमराह किया है। उन्होंने पिछले फैसले (प्रणव कांत बाब्बन बनाम बिहार राज्य, 2016) को भी चुनौती दी।

हाई कोर्ट का निर्णय

हाई कोर्ट ने तथ्यों और दस्तावेजों की समीक्षा करने के बाद कहा:

  1. यह स्पष्ट है कि 1996 से 2004 तक कोई परीक्षा आयोजित नहीं हुई थी, इसलिए कर्मचारी दोषी नहीं हैं।
  2. कर्मचारियों ने कोई धोखाधड़ी नहीं की और लाभ उन्हें सरकारी अधिसूचना के माध्यम से मिला।
  3. कई साल बाद तिथि बदलकर लाभ वापस लेना और पैसा वसूलना अत्यंत अनुचित और गैरकानूनी है।

अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफीक मसीह (2015) 4 SCC 334 का हवाला दिया। इसमें कहा गया है कि कुछ स्थितियों में कर्मचारियों से वसूली नहीं की जा सकती, जैसे:

  • वर्ग 3 और वर्ग 4 के कर्मचारियों से वसूली
  • 5 साल से ज्यादा पुराने भुगतान की वसूली
  • रिटायर या रिटायर होने वाले कर्मचारियों से वसूली
  • ऐसे मामले जहां वसूली अन्यायपूर्ण और कठोर हो

हाई कोर्ट ने आदेश दिया कि विभाग द्वारा जारी किए गए आदेश (फरवरी और मई 2020) रद्द किए जाएं और जो राशि वसूली गई है, उसे 8 हफ्तों के भीतर वापस किया जाए

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

कर्मचारियों के लिए

  • यह फैसला क्लास 3 और क्लास 4 के कर्मचारियों के लिए बड़ी राहत है।
  • अगर विभाग परीक्षा कराने में असफल रहता है, तो कर्मचारी इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।
  • अब कर्मचारी सुरक्षित हैं कि सरकार सालों बाद उनसे पेंशन या वेतन के लाभ की वसूली नहीं कर सकती।

सरकार और विभागों के लिए

  • विभाग को यह सुनिश्चित करना होगा कि समय पर विभागीय परीक्षाएं आयोजित हों
  • एक बार अगर लाभ अधिसूचना के माध्यम से दिया गया है, तो बाद में वसूली करने का अधिकार नहीं है।
  • यह फैसला विभागों को चेतावनी है कि प्रशासनिक लापरवाही का बोझ कर्मचारियों पर नहीं डाला जा सकता।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बिंदुवार)

  • क्या कर्मचारियों से लाभ छीना जा सकता है, अगर परीक्षा न होने की वजह विभाग की हो?
    • नहीं। कर्मचारी जिम्मेदार नहीं होंगे।
  • क्या एसीपी/एमएसीपी के तहत मिले लाभ की वसूली कई साल बाद की जा सकती है?
    • नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि ऐसी वसूली अनुचित है।
  • क्या कर्मचारियों ने धोखाधड़ी की थी?
    • नहीं। लाभ अधिसूचना से मिला था, धोखे से नहीं।

पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय

  • प्रणव कांत बाब्बन बनाम बिहार राज्य, CWJC No. 6867 of 2016 (पटना हाई कोर्ट, 04.07.2016)
  • LPA No. 1695 of 2016 (पटना हाई कोर्ट, 11.12.2017)

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • स्टेट ऑफ पंजाब बनाम रफीक मसीह, (2015) 4 SCC 334

मामले का शीर्षक

Shiv Shankar Prasad & Ors. v. State of Bihar & Ors.

केस नंबर

Civil Writ Jurisdiction Case No. 7277 of 2020

उद्धरण (Citation)

2021(2) PLJR 93

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रभात कुमार सिंह (दिनांक 22-02-2021)

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • याचिकाकर्ताओं की ओर से: श्री शशि भूषण कुमार मंगला, अधिवक्ता
  • प्रतिवादियों (संख्या 2 से 7) की ओर से: श्री आर. के. चंद्रम, AC to GP 19

निर्णय का लिंक

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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