निर्णय की सरल व्याख्या
यह मामला एक आपराधिक अपील का है, जिसमें अपीलकर्ता ने निचली अदालत द्वारा धारा 376 भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत बलात्कार के अपराध में दोषसिद्ध कर आजीवन कारावास और ₹25,000 के जुर्माने की सजा को चुनौती दी थी। घटना 26 सितंबर 2006 को भोजपुर जिले, बिहार में हुई बताई गई थी।
पृष्ठभूमि
अभियोजन के अनुसार, पीड़िता एक स्कूल के कुएं के पास बैटरी खोजने गई थी, तभी आरोपी ने मदद की पेशकश की और उसे पास के मंदिर के पास झाड़ियों में ले गया। वहां उसने कथित रूप से उसे दबोचकर, मुंह बंद कर, बलात्कार किया। पीड़िता ने दावा किया कि उसने दो गांववालों को घटना बताई, जिनमें से एक ने उसकी लिखित शिकायत लिखी।
जांच के बाद चार्जशीट दायर की गई और निचली अदालत ने पीड़िता की गवाही और कुछ दस्तावेजी साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया।
अपील में बचाव पक्ष की दलीलें
अमाइकस क्यूरी (न्यायालय द्वारा नियुक्त वकील) ने तर्क दिया कि—
- पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं थी, जबकि उसने कहा था कि खुरदरी जमीन पर जबरदस्ती बलात्कार हुआ।
- जिन दो गांववालों को घटना बताई गई, उन्हें गवाह के रूप में पेश नहीं किया गया।
- लिखित रिपोर्ट पर न तो लेखक का हस्ताक्षर था और न ही इसे साबित किया गया।
- पीड़िता के पिता, जो पास ही मौजूद थे, को गवाह नहीं बनाया गया।
- मेडिकल रिपोर्ट ने बलात्कार के आरोप की पुष्टि नहीं की।
- फोरेंसिक जांच में कपड़ों पर वीर्य मिला, लेकिन डीएनए परीक्षण कर आरोपी से मिलान नहीं किया गया।
अभियोजन का पक्ष
अभियोजन ने कहा कि पीड़िता का बयान सुसंगत है और कपड़ों पर मिले वीर्य धब्बे उसकी कहानी का समर्थन करते हैं।
उच्च न्यायालय की टिप्पणी
दो सदस्यीय पीठ ने कई खामियां पाईं—
- मेडिकल जांच में कोई बाहरी या आंतरिक चोट, संघर्ष के निशान, या जबरदस्ती यौन संबंध का सबूत नहीं मिला।
- फोरेंसिक रिपोर्ट ने केवल वीर्य की उपस्थिति बताई, लेकिन यह नहीं कि वह आरोपी का था; डीएनए मिलान की कोशिश नहीं की गई।
- महत्वपूर्ण गवाहों को पेश नहीं किया गया।
- घटना के बाद पीड़िता का आचरण—सीधे घर या पुलिस जाने के बजाय पड़ोसियों के पास जाना—प्राकृतिक व्यवहार के अनुरूप नहीं था।
- लिखित रिपोर्ट न तो साबित हुई और न ही लेखक के हस्ताक्षर थे।
अदालत का निर्णय
अदालत ने कहा कि अभियोजन आरोप को संदेह से परे साबित करने में असफल रहा। दोषसिद्धि और सजा को रद्द करते हुए अपीलकर्ता को बरी कर दिया गया और यदि किसी अन्य मामले में वांछित न हो तो तुरंत रिहाई का आदेश दिया गया।
निर्णय का महत्व और प्रभाव
- यह फैसला दोहराता है कि बलात्कार जैसे गंभीर अपराध में दोषसिद्धि केवल विश्वसनीय और पुष्ट साक्ष्य पर ही हो सकती है।
- फोरेंसिक प्रक्रिया, विशेषकर डीएनए परीक्षण, समय पर और पूर्ण होनी चाहिए।
- सभी महत्वपूर्ण गवाहों की गवाही आवश्यक है ताकि मुकदमा निष्पक्ष हो।
- संदेह होने पर अदालत दोषसिद्धि बरकरार नहीं रखेगी।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या अभियोजन ने बलात्कार का अपराध संदेह से परे साबित किया?
✘ नहीं। चोट के अभाव, डीएनए साक्ष्य की कमी, गवाहों के न पेश होने और असंगतियों के कारण संदेह बना रहा। - क्या निचली अदालत द्वारा दी गई आजीवन कारावास की सजा टिकाऊ थी?
✘ नहीं। दोषसिद्धि रद्द कर दी गई और अपीलकर्ता को बरी कर दिया गया।
मामले का शीर्षक
Munna Upadhyay @ Munan Upadhyay @ Manish Kumar Upadhyay बनाम बिहार राज्य
केस नंबर
Criminal Appeal (DB) No. 1112 of 2012
उद्धरण (Citation)
2020 (3) PLJR 251
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति राकेश कुमार
माननीय श्री न्यायमूर्ति प्रकाश चंद्र जायसवाल
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
अपीलकर्ता की ओर से: सुश्री दिव्या वर्मा, अमाइकस क्यूरी
राज्य की ओर से: श्री अजय मिश्रा, अपर लोक अभियोजक
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/NSMxMTEyIzIwMTIjMSNO-WFtq6O4mqqg=
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