सेवानिवृत्त अभियंता को मिलेगा प्रोन्नति का लाभ: पटना हाईकोर्ट ने विभाग की चूक मानी

सेवानिवृत्त अभियंता को मिलेगा प्रोन्नति का लाभ: पटना हाईकोर्ट ने विभाग की चूक मानी

निर्णय की सरल व्याख्या

पटना हाईकोर्ट ने एक सेवानिवृत्त कार्यपालक अभियंता (Executive Engineer) को राहत देते हुए आदेश दिया है कि उन्हें मुख्य अभियंता (Chief Engineer) के पद पर नॉटियनल प्रोन्नति (notional promotion) दी जाए, क्योंकि विभाग ने बिना सूचना दिए उनकी गोपनीय रिपोर्ट (ACR) में की गई नकारात्मक प्रविष्टि (adverse entry) के आधार पर उनकी प्रोन्नति रोक दी थी।

याचिकाकर्ता 1962 से बिहार सिंचाई विभाग (अब जल संसाधन विभाग) में कार्यरत थे और नियमित रूप से विभिन्न पदों पर पदोन्नत होते रहे। लेकिन जब 1995 में मुख्य अभियंता के पद पर उनकी पदोन्नति का समय आया, तो यह कहकर मना कर दिया गया कि उनकी ACR में 1992-93 के लिए प्रतिकूल प्रविष्टि है।

मुख्य बिंदु:

  • याचिकाकर्ता को 1990 में अधीक्षण अभियंता (Superintending Engineer) के पद पर पदोन्नति दी गई थी।
  • उनके खिलाफ पूर्व में एक निलंबन और आपराधिक मामला था जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था।
  • 2009 में सरकार ने कोर्ट में स्वीकार किया था कि याचिकाकर्ता दोनों पदों के लिए योग्य थे।
  • अधीक्षण अभियंता का लाभ उन्हें दे दिया गया लेकिन मुख्य अभियंता की प्रोन्नति रोक दी गई।

मामले की सुनवाई के दौरान, हाईकोर्ट ने पाया कि:

  • जिस प्रतिकूल प्रविष्टि का हवाला दिया गया, वह न तो प्रमाणित रूप से याचिकाकर्ता को दी गई थी और न ही उस पर कोई स्पष्टीकरण मांगा गया।
  • ACR में टिप्पणी विभागीय कोड के अनुसार मुख्य अभियंता को करनी थी, लेकिन यह सचिव द्वारा की गई थी।
  • बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) और राज्य सरकार के तर्क आपस में मेल नहीं खाते थे – एक कहती है रिपोर्ट उपलब्ध नहीं, दूसरी कहती है रिपोर्ट प्रतिकूल है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने दोहराया कि:

  • कोई भी प्रतिकूल टिप्पणी यदि कर्मचारी को नहीं दी गई है, तो उसका उपयोग प्रोन्नति रोकने के लिए नहीं किया जा सकता।
  • यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और सेवा नियमों का उल्लंघन है।

अतः कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को 1 दिसंबर 1995 से मुख्य अभियंता के पद पर नॉटियनल प्रोन्नति दी जाए और इसके साथ सभी वित्तीय लाभों का भुगतान भी तीन महीने के भीतर किया जाए।

निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर

यह फैसला उन सरकारी कर्मचारियों के लिए एक मिसाल है जिन्हें बिना सूचना के उनके करियर में बाधा पहुंचाई जाती है। यह न्यायपालिका द्वारा यह स्पष्ट करने का एक सशक्त उदाहरण है कि:

  • बिना सूचना दिए कोई प्रतिकूल प्रविष्टि वैध नहीं मानी जा सकती।
  • सेवानिवृत्त कर्मचारी भी न्याय पाने के हकदार हैं यदि उनके साथ अन्याय हुआ हो।
  • विभागों को अपने ही नियमों और कोड का पालन करना अनिवार्य है।

सरकारी विभागों के लिए यह एक सख्त संदेश है कि वे ACR और प्रोन्नति से जुड़े मामलों में लापरवाही न बरतें।

कानूनी मुद्दे और निर्णय (बुलेट में)

  • क्या बिना सूचना दी गई प्रतिकूल प्रविष्टि के आधार पर प्रोन्नति रोकी जा सकती है?
    • नहीं। यह प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन है।
  • क्या प्रतिकूल प्रविष्टि विधिवत दर्ज की गई थी?
    • नहीं। न तो वह सही अधिकारी द्वारा की गई थी और न ही उसका प्रमाण है।
  • क्या याचिकाकर्ता सेवानिवृत्ति के बाद प्रोन्नति के हकदार हैं?
    • हाँ। क्योंकि विभागीय गलती से उन्हें लाभ नहीं मिल पाया।

न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय

  • Dev Dutt v. Union of India, (2008) 8 SCC 725
  • Gurdial Singh Fijji v. State of Punjab, (1979) 2 SCC 368
  • Amar Singh v. Union of India, (2011) 7 SCC 69
  • Maneka Gandhi v. Union of India, (1978) 1 SCC 248

मामले का शीर्षक

Bateshwar Sharma v. The State of Bihar & Ors.

केस नंबर

CWJC No. 16563 of 2011

उद्धरण (Citation)

2021(1)PLJR 171

न्यायमूर्ति गण का नाम

माननीय न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह

वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए

  • श्री सियाराम शाही — याचिकाकर्ता की ओर से
  • श्री अमरेश कुमार सिन्हा (राज्य सरकार के लिए)
  • श्री कौशल कुमार झा — BPSC की ओर से

निर्णय का लिंक

https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTY1NjMjMjAxMSMxI04=-XcipMX–am1–omEo=

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Aditya Kumar

Aditya Kumar is a dedicated and detail-oriented legal intern with a strong academic foundation in law and a growing interest in legal research and writing. He is currently pursuing his legal education with a focus on litigation, policy, and public law. Aditya has interned with reputed law offices and assisted in drafting legal documents, conducting research, and understanding court procedures, particularly in the High Court of Patna. Known for his clarity of thought and commitment to learning, Aditya contributes to Samvida Law Associates by simplifying complex legal topics for public understanding through well-researched blog posts.

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