निर्णय की सरल व्याख्या
पटना उच्च न्यायालय ने एक ही आंगनवाड़ी केंद्र की नियुक्ति प्रक्रिया से जुड़े दो मामलों पर एक साथ फैसला सुनाया। यह मामला नवादा जिले के भैरो बेलदारिया आंगनवाड़ी केंद्र (कोड संख्या 256) से संबंधित था।
दो महिलाओं ने इस केंद्र की सेविका पद के लिए आवेदन किया था। चयन प्रक्रिया 2016 में शुरू हुई और आम सभा (Aam Sabha) द्वारा एक उम्मीदवार को सेविका के रूप में चयनित कर नियुक्ति दी गई। दूसरी अभ्यर्थी ने इस चयन को चुनौती दी, यह कहते हुए कि चयनित उम्मीदवार उस केंद्र क्षेत्र की “स्थायी निवासी” नहीं है — जबकि यह आंगनवाड़ी सेविका बनने के लिए एक अनिवार्य शर्त है।
शिकायत पर जांच के बाद, जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (District Programme Officer – DPO), नवादा ने पाया कि चयनित उम्मीदवार के पति का नाम एक अन्य गाँव मंझोर बेलदारिया की मतदाता सूची में दर्ज है और कई सरकारी दस्तावेज़ (जैसे पुलिस मामला और राशन कार्ड) में भी यही पता दर्ज है। इस आधार पर, 30 जून 2017 को उसकी नियुक्ति रद्द कर दी गई।
रद्द की गई सेविका ने इस आदेश के खिलाफ जिला पदाधिकारी (District Magistrate – DM), नवादा के पास अपील की। लेकिन डीएम ने भी 18 मई 2018 को यह माना कि वह वास्तव में उस क्षेत्र की स्थायी निवासी नहीं है। हालांकि, डीएम ने यह निर्देश दिया कि चूंकि चयन सूची (panel) की वैधता एक वर्ष की होती है और वह समाप्त हो चुकी है, इसलिए नई विज्ञप्ति जारी कर ताज़ा चयन प्रक्रिया कराई जाए।
दूसरी अभ्यर्थी (जो मेरिट सूची में दूसरे स्थान पर थी) ने इस आदेश को अदालत में चुनौती दी। उसका कहना था कि जब पहली अभ्यर्थी की नियुक्ति रद्द हो गई, तो उसे (दूसरे स्थान वाली को) स्वचालित रूप से नियुक्त कर देना चाहिए था। उसने 2013 के संशोधित दिशा-निर्देशों (Guidelines 2011, संशोधन 2013) का हवाला दिया, जिसमें यह प्रावधान था कि पहली नियुक्ति रद्द होने पर दूसरी को अवसर दिया जाएगा।
राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि 2013 वाले दिशा-निर्देश अब लागू नहीं हैं, क्योंकि 2016 में नए दिशा-निर्देश (Guidelines 2016) जारी हुए थे, जिनके तहत यह चयन हुआ था। नए नियमों में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि दूसरी अभ्यर्थी को स्वतः नियुक्त किया जाए।
न्यायालय का निष्कर्ष:
माननीय न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह ने पाया कि जिला कार्यक्रम पदाधिकारी और जिला पदाधिकारी दोनों ने तथ्यों के आधार पर सही निर्णय लिया था कि चयनित उम्मीदवार उस क्षेत्र की स्थायी निवासी नहीं थी। अदालत ने कहा कि इस तरह के तथ्यात्मक विवादों की दोबारा जांच रिट याचिका (Article 226) के तहत नहीं की जा सकती।
न्यायालय ने कई सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला दिया — जैसे Punjab National Bank v. Atmanand Singh (2020), Krishnanand v. Director of Consolidation (2015), और State of U.P. v. Lakshmi Sugar & Oil Mills Ltd. (2013) — जिनमें यह स्पष्ट किया गया है कि उच्च न्यायालय तथ्यों की पुनः जांच नहीं कर सकता जब दो प्रशासनिक प्राधिकरणों ने पहले से निष्कर्ष दे दिया हो।
अंततः अदालत ने दोनों याचिकाएँ खारिज कर दीं, और जिला पदाधिकारी के आदेश को सही ठहराया जिसमें नई चयन प्रक्रिया कराने का निर्देश दिया गया था।
निर्णय का महत्व और प्रभाव आम जनता या सरकार पर
- स्थानीयता की अनिवार्यता को सुदृढ़ किया गया:
यह निर्णय बताता है कि आंगनवाड़ी सेविका पद पर वही व्यक्ति नियुक्त की जा सकती है जो केंद्र के सेवा क्षेत्र की स्थायी निवासी हो। इससे स्थानीय महिलाओं को प्राथमिकता मिलेगी और पारदर्शिता बनी रहेगी। - चयन सूची की वैधता सीमित:
चयन सूची (panel) केवल एक वर्ष के लिए वैध होती है। यदि उस अवधि में नियुक्ति नहीं हो पाती या विवाद चलता रहता है, तो पुरानी सूची से नियुक्ति नहीं की जा सकती। - स्वचालित नियुक्ति का कोई अधिकार नहीं:
यदि प्रथम अभ्यर्थी की नियुक्ति रद्द हो जाती है, तो दूसरी अभ्यर्थी को स्वतः नियुक्त करने का कोई प्रावधान नहीं है। नई भर्ती प्रक्रिया ही सही तरीका है। - रिट याचिका में तथ्य जांच नहीं:
यह फैसला याद दिलाता है कि रिट अदालत (Article 226) तथ्यों की पुनः जांच नहीं कर सकती जब प्रशासनिक अधिकारी पहले से पूरी जांच कर चुके हों। - प्रशासनिक दिशा-निर्देशों की स्पष्टता:
अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि नियुक्तियाँ हमेशा वर्तमान दिशा-निर्देशों के अनुसार हों। पुराने नियम स्वतः लागू नहीं रहते।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- क्या चयनित सेविका उस क्षेत्र की स्थायी निवासी थी?
❌ नहीं। दस्तावेज़ों से स्पष्ट हुआ कि उसका स्थायी पता दूसरे गाँव मंझोर बेलदारिया में है। - क्या दूसरे स्थान पर रही अभ्यर्थी को स्वतः नियुक्त किया जा सकता है?
❌ नहीं। 2016 के दिशा-निर्देशों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। - क्या नई चयन प्रक्रिया आवश्यक थी?
✅ हाँ। चयन सूची की एक वर्ष की वैधता समाप्त हो चुकी थी, इसलिए ताज़ा भर्ती ही कानूनी रास्ता था। - क्या उच्च न्यायालय तथ्यों की दोबारा समीक्षा कर सकता है?
❌ नहीं। ऐसे विवाद रिट क्षेत्राधिकार में नहीं आते।
पार्टियों द्वारा संदर्भित निर्णय
- State of U.P. v. Ram Swarup Saroj, (2000) 3 SCC 699 — यह सिद्धांत कि न्यायिक प्रक्रिया के चलते सूची समाप्त हो जाने पर भी वैध दावे को खारिज नहीं किया जा सकता।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
- Brahm Deo Singh v. State of Bihar, (1994) 2 PLJR 852 — चयन सूची की वैधता केवल एक वर्ष।
- Shankarsan Dash v. Union of India, AIR 1991 SC 1612 — पैनल में नाम होना नियुक्ति का अधिकार नहीं देता।
- Punjab National Bank v. Atmanand Singh, (2020) 6 SCC 256 — तथ्यात्मक विवादों पर रिट न्यायालय का हस्तक्षेप नहीं।
- State of U.P. v. Lakshmi Sugar & Oil Mills Ltd., (2013) 10 SCC 509 — उच्च न्यायालय को तथ्य पुनः नहीं परखना चाहिए।
- Krishnanand v. Director of Consolidation, (2015) 1 SCC 553 — समान सिद्धांत दोहराया गया।
मामले का शीर्षक
रंजू कुमारी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य
(संयुक्त मामला: अर्चना कुमारी बनाम बिहार राज्य एवं अन्य)
केस नंबर
CWJC No. 12462 of 2018 (साथ में CWJC No. 15178 of 2018)
उद्धरण (Citation)
2021(2) PLJR 761
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति मोहित कुमार शाह
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
- याचिकाकर्ता (CWJC 12462/2018) की ओर से: श्री सिधेंद्र नारायण सिंह, अधिवक्ता
- याचिकाकर्ता (CWJC 15178/2018) की ओर से: श्री मिथिलेश कुमार उपाध्याय, अधिवक्ता
- राज्य की ओर से: श्री सुनील कुमार मंडल (SC-3), सुश्री नीलम कुमारी एवं श्री बिपिन कुमार (ACs to SC-3)
- श्री ज्ञान प्रकाश ओझा, GA-7 (राज्य की ओर से, अन्य प्रकरण में)
निर्णय का लिंक
https://patnahighcourt.gov.in/viewjudgment/MTUjMTI0NjIjMjAxOCMxI04=-QeGrOzAzP9A=
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