निर्णय की सरल व्याख्या
पटना हाईकोर्ट ने ग्रामीण कार्य विभाग का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक ठेकेदार को अनिश्चितकालीन रूप से भविष्य की निविदाओं में भाग लेने से रोक दिया गया था।
याचिकाकर्ता, जो एक पंजीकृत ठेकेदार है, दो आदेशों से आहत था:
- दिनांक 07.07.2021 का आदेश — जिसमें बिना किसी शो कॉज़ नोटिस दिए और बिना उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाए, उसे अनिश्चितकाल के लिए भविष्य के अनुबंधों से वंचित कर दिया गया।
- दिनांक 11.01.2023 का आदेश — अभियंता प्रमुख द्वारा पारित, जिसमें पहले के डिबारमेंट आदेश को बरकरार रखा गया, जबकि पहले ही हाईकोर्ट इस मामले को पुनर्विचार के लिए विभाग को वापस भेज चुका था।
यह मुकदमे का दूसरा चरण था। पहले चरण में, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि मामले पर पुनः विचार करते हुए याचिकाकर्ता को सुनवाई का अवसर दिया जाए। याचिकाकर्ता ने 08.09.2022 को लिखित जवाब में अपने रखरखाव कार्य और उससे संबंधित भुगतानों का एक चार्ट प्रस्तुत किया था ताकि यह दिखाया जा सके कि उसने अनुबंध की जिम्मेदारियां पूरी कीं।
लेकिन, 11.01.2023 के अंतिम आदेश में इस चार्ट या भुगतान के किसी भी विवरण का न तो उल्लेख किया गया और न ही विश्लेषण। अदालत ने माना कि यह याचिकाकर्ता के बचाव पर विचार न करने के बराबर है।
अदालत ने राज्य अधिकारियों की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि बार-बार नोटिस को महज़ औपचारिकता के रूप में जारी किया जाता है और जवाब पर वास्तविक विचार नहीं किया जाता। यह प्रणालीगत खामी लगातार मुकदमों को जन्म दे रही है, जिससे राज्य सबसे बड़े वादियों में से एक बन गया है।
अदालत ने:
- याचिका स्वीकार की।
- राज्य पर ₹10,000 का खर्च लगाया, जो चार हफ्तों के भीतर पटना हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी में जमा करना होगा।
- प्राधिकरण को निर्देश दिया कि एक नया, विस्तृत शो कॉज़ नोटिस जारी करें, जिसमें सभी आवश्यक तथ्य हों, और यह एक महीने के भीतर किया जाए।
- याचिकाकर्ता को जवाब देने के लिए एक महीने का समय देने और उसके बाद तीन महीने के भीतर कारणयुक्त आदेश पारित करने का निर्देश दिया, जिसमें याचिकाकर्ता के प्रत्येक तर्क — खासकर रखरखाव कार्य का चार्ट — पर विचार हो और यह तय किया जाए कि वास्तव में कोई कमी थी या नहीं।
निर्णय का महत्व और इसका प्रभाव आम जनता या सरकार पर
यह फैसला बिहार के ठेकेदारों और सरकारी विभागों दोनों के लिए महत्वपूर्ण है:
- ठेकेदारों के लिए: यह पुष्टि करता है कि ब्लैकलिस्टिंग आदेश उचित प्रक्रिया के बाद ही पारित हो सकता है और ठेकेदार के बचाव पर गंभीर विचार जरूरी है।
- अधिकारियों के लिए: यह चेतावनी है कि शो कॉज़ नोटिस के जवाब की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और प्रक्रिया में कमी होने पर अदालत हस्तक्षेप कर सकती है और आर्थिक दंड भी लगा सकती है।
- प्रशासन के लिए: यह सरकारी निर्णय लेने की प्रक्रिया में मौजूद प्रणालीगत खामियों को उजागर करता है और अनावश्यक मुकदमों से बचने के लिए सही प्रक्रिया अपनाने पर जोर देता है।
कानूनी मुद्दे और निर्णय
- मुद्दा 1: क्या बिना वैध शो कॉज़ नोटिस और बचाव पर विचार किए ठेकेदार को अनिश्चितकालीन रूप से डिबार किया जा सकता है?
निर्णय: नहीं। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है। - मुद्दा 2: क्या सिर्फ नोटिस जारी करना और जवाब पर विचार न करना पर्याप्त है?
निर्णय: नहीं। प्राधिकारी को प्रत्येक तर्क पर विचार कर आदेश में उल्लेख करना चाहिए। - मुद्दा 3: क्या विस्तृत और तथ्य-विशिष्ट शो कॉज़ नोटिस जारी करना जरूरी है?
निर्णय: हां। अदालत ने निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए विस्तृत नोटिस अनिवार्य किया।
न्यायालय द्वारा उपयोग में लाए गए निर्णय
कोई विशिष्ट उद्धरण नहीं, लेकिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत केंद्र में रहे।
मामले का शीर्षक
Parmar Enterprises v. State of Bihar & Others
केस नंबर
Civil Writ Jurisdiction Case No. 3280 of 2023
न्यायमूर्ति गण का नाम
माननीय श्री न्यायमूर्ति पी. बी. बजंथरी
माननीय श्री न्यायमूर्ति अरुण कुमार झा
वकीलों के नाम और किनकी ओर से पेश हुए
याचिकाकर्ता की ओर से: श्री प्रभात रंजन, अधिवक्ता; श्री चंदन कुमार, अधिवक्ता
प्रतिवादी की ओर से: श्री अजय, GA-5
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